जानिए कैसे मुंबई स्थित यह स्टार्टअप पर्यावरण के साथ फुटवियर कारीगरों की आजीविका में भी कर रहा है सुधार
मुंबई स्थित Desi Hangover नाम का यह स्टार्टअप न केवल पर्यावरण के अनुकूल फुटवियर तैयार कर रहा है, बल्कि इस व्यापार में लगे कारीगरों की आजीविका में सुधार लाकर उनके जीवन स्तर को भी ऊपर उठाया है।
वे दिन गए, जब लोग किसी उत्पाद की खरीदारी और उसके उपयोग को लेकर बहुत अधिक जागरूक नहीं हुआ करते थे। लेकिन, अब समय बदल चुका है। वर्तमान समय में उपभोक्ता बेहद ही सोच-समझकर निर्णय ले रहे हैं और स्थिरता की ओर बढ़ रहे हैं।
यहां तक कि फुटवियर उद्योग भी पर्यावरण के अनुकूल होने की ओर कदम बढ़ा रहा है। इस दिशा मुंबई स्थित
नाम का स्टार्टअप उपभोक्ताओं के लिए ऐसे प्रोडक्ट उपलब्ध कराने का काम कर रहा है और इसी कड़ी में कारीगरों के जीवन का भी उत्थान कर रहा है।इसकी शुरुआत हितेश केंजले, लक्ष्य अरोड़ा और आभा अग्रवाल द्वारा वर्ष 2014 में गई थी। इस डायरेक्ट टू कंज्यूमर (D2C) फुटवियर ब्रांड का संचालन अब तक काफी सफल रहा है। महामारी के समय में भी इस वेंचर ने शानदार उछाल हासिल की और इनदिनों अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं को पूरा करने के लिए मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है।
Desi Hangover खुद को न केवल एक भारतीय फुटवियर ब्रांड के रूप में स्थापित की कोशिश कर रहा है, बल्कि इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को सुखी व समृद्ध भी बना रहा है। इसके स्वस्थ्य प्रयासों से ये कारीगर अब पहले की तुलना में बहुत अधिक कमा रहे हैं।
हितेश कहते हैं, "हमने उन कारीगरों की मदद करने के लिए शुरुआत की,जो फुटवियर बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं और उन्हें थोड़ा अधिक पैसा कमाने में मदद मिले।”
पर्यावरण के अनुकूल
पहले दिन से ही स्टार्टअप का उद्देश्य स्पष्ट था कि उसके उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल होंगे और नैतिक प्रक्रिया का पालन करेंगे। जिसका सीधा मतलब यह है कि अक्सर जूते बनाने के लिए जिस चमड़े का प्रयोग किया जाता है, उसे प्राकृतिक कारणों मर जाने वाले जानवरों की खाल से प्राप्त किया जा रहा है, जिसे अब वनस्पति टैनिंग प्रक्रिया के आधार पर निकाला जाएगा।
आभा कहती हैं, "ग्राहक कई बार हमारे जूतों के रंगन के बारे में पूछते थे और हमने उन्हें बताया कि यह हल्दी जैसी प्राकृतिक सामग्री के उपयोग के कारण है, जिसके बाद उन्होंने हमारी काफी सराहना की और हमारे पक्ष में निर्णय लिया।"
कंपनी के फाउंडर्स ने उन इकोसिस्टम के भीतर चमड़े के स्रोत और कारीगरों से जुड़ने के लिए नेटवर्क तैयार किया, जो जूते बनाने के लिए पारंपरिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का उपयोग करते हैं। बाद में उन्होंने इन उत्पादों को देश भर की विभिन्न प्रदर्शनियों जैसे बेंगलुरु में सौल-संथे और मुंबई में काला-घोड़ा आदि में बेचना शुरू किया।
हितेश कहते हैं, "हमने देखा कि एक ग्राहकों में इस तरह के फुटवियर की भी मांग थी और तब मुझे एहसास हुआ कि इसके बाजार में काफी प्रबल संभावनाएं हैं।"
Desi Hangover ने इन प्रदर्शनियों में अपने उत्पादों का प्रदर्शन शुरू किया और लोगों का अच्छा ध्यान आकर्षित किया। परिचालन के रूप से लाभदायक होने के अलावा सालाना 80 प्रतिशत की राजस्व वृद्धि दर्ज की। यह लगभग चार वर्षों तक चला बावजूद इसके हमें अपना व्यवसाय चलाने के लिए बैंकों से उधार लेना पड़ा।
एक लंबे वक्त के दौरान कंपनी को रिटेल चैन व्यापारियों के अलावा डिस्ट्रीब्यूटर्स व अन्य मालिकों से अपने उत्पादों की मांग मिलनी शुरू हुई और उनके आउटलेट्स के भीतर अपने ब्रांड के जूते रखे दिखाई देने लगे। उसी समय, हमने स्वयं के आउट्लेट बनाने का फैसला किया, लेकिन यह काफी महंगा साबित हुआ। क्योंकि इस तरह के आउटलेट को चलाने की लागत, उस समय प्राप्त होने वाले रिवेन्यू से कहीं अधिक थी।
दूसरा झटका तब और लगा, जब कोविड-19 महामारी के प्रभाव के चलते उत्पादों को ऑफलाइन बेचना मुश्किल होता जा रहा था। हालांकि, यह ऐसा दौर भी ऐसा ही था जब ग्राहकों ने ऑफलाइन की जगह ऑनलाइन खरीददारी का रास्ता अधिक चुना। चूंकि यह एक प्रसिद्ध ब्रांड था, जिसमें दोनों माध्यम पहले से ही मौजूद थे।
लक्ष्य अरोड़ा कहते हैं, "हमने कॉन्सेप्ट अवधारणा पेश की थी, उसमें आसानी से डिजिटल रूप से नहीं बेचा जा सकता था क्योंकि खरीदार शायद पहली बार तो ऑफ़लाइन खरीदारी करेगा पर बाद में ऑनलाइन ही शिफ्ट हो जाएगा।"
बाजार और फंडिंग
एक बूटस्टार्टप उघोग से शुरू होने वाले Desi Hangover ने हाल ही में सोशल अल्फा, CIIE.co, और Be An Angel Network से फंडिंग के अपने पहले सीड राउंड में 180 हजार डॉलर जुटाए हैं। इसके संस्थापकों का मानना है कि यह उनके स्थिर व्यवसाय मॉडल के समर्थन का परिणाम है। इस निवेश का उपयोग मुख्य रूप से विभिन्न विकास पहलों के लिए किया जाएगा। फाउंडर्स के अनुसार, कंपनी का राजस्व समान विकास दर से अब महामारी के पहले की स्थिति पर वापस पहुंच गया है।
इस फुटवियर ब्रांड ने अपने उत्पादों की कीमत 2,500 से लेकर 3,000 रुपये के बीच रखी है और कंपनी का कहना है कि इस तरह के उत्पादों के लिए अभी तक इसका कोई सीधा मुकाबला करने वाला नहीं है। हालांकि, यह बाजार में स्थापित अन्य फुटवियर ब्रांडों को अपनी तत्काल प्रतिस्पर्धा के रूप में जरूर देखता है।
इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के अनुसार, भारत 12 अरब डॉलर के बाजार के साथ विश्व स्तर पर फुटवियर का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इस बाजार के ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर का भाग लगभग 30 प्रतिशत है जबकि शेष अनऑर्गेनाइज्ड क्षेत्र के पास है।
आभा के अनुसार, एक नैतिक और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ फुटवियर ब्रांड के साथ आने के लिए Desi Hangover की प्रक्रिया को दोहराना चुनौतीपूर्ण होगा।
अगला बड़ा लक्ष्य क्या होगा
स्टार्टअप के लिए अब अगला बड़ा लक्ष्य उन कारीगरों के लिए एक स्थायी आजीविका प्रदान करना है,जो इन जूतों को बनाने में शामिल हैं और जिनकी कमाई न के बराबर थी। यह कर्नाटक के बेलगाम जिले के अथानी में ऐसे ही एक समूह के साथ जुड़ा हुआ है और लगभग 111 परिवार इस स्टार्टअप के नेटवर्क का हिस्सा हैं।
हितेश कहते हैं, "जिन कारीगरों के साथ हम काम करते हैं, उनकी कमाई में 2.7 गुना वृद्धि हुई है और वे अब एक पेशेवर संगठन का हिस्सा हैं, जहां आय का अनुमान लगाया जा सकता है।"
अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं, Desi Hangover भारत के बाजार पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखेगा। हालांकि इसके उत्पादों को सिंगापुर, मलेशिया, दुबई और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में भी खरीदार मिल रहे हैं।
कंपनी के संस्थापकों का मानना है कि भारत में एक एथनिक शू ब्रांड की जरूरत है, जहां उपभोक्ता ऑफिस के माहौल में भी सेमी फॉर्मल फुटवियर पहनने में सहज महसूस करें।
Desi Hangover का लक्ष्य पूरे इकोसिस्टम के साथ एक मजबूत संबंध बनाना है, जिसका अर्थ है अपनी ऑनलाइन उपस्थिति को मजबूत करना। साथ ही अपनी रिटेल साझेदारी का विस्तार करना और बिजनेस को बिजनेस नेटवर्क में बढ़ाना।
स्टार्टअप ने अपनी पूरी अब तक की यात्रा केदौरान काफी कुछ सीखा भी है। जिसमें सबसे पहले, व्यापार में कैश साइकल पर ध्यान देना बेहद ही जरूरी है। दूसरा, देश में कारीगर समुदाय की एक मजबूत क्षमता है और अंत में, इस प्रयोग को अन्य उद्योगों में भी दोहराया जा सकता है।
हितेश कहते हैं, "हमारा लक्ष्य पारंपरिक कारीगरों के कौशल का इस्तेमाल करके ऐसे उत्पाद तैयार करना है, जिन्हें आधुनिक बाजार में बेचा जा सके।"
Edited by रविकांत पारीक