आरामदायक और किफ़ायती फ़ुटवियर्स के साथ-साथ ग्राहकों को सोल बदलने का विकल्प भी देता है हैदराबाद का यह फ़ुटवियर ब्रैंड
इस बात में कोई दोराय नहीं है कि आरामदायक और स्टाइलिश फ़ुटविर्यस का शौक़ सभी को होता है। आज की तारीख़ में, फ़ुटवियर्स, फ़ैशन इंडस्ट्री का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं और इनका एक बड़ा मार्केट देश में मौजूद है। डिज़ाइनर फ़ुटवियर्स का प्रचलन और मांग लगातार समय के साथ बढ़ रही है, लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि हमारे फ़ुटवियर्स बनाने में जिन चीज़ों का इस्तेमाल हो रहा है, उनके उत्पादन से लेकर निस्तारण तक की प्रक्रिया का पर्यावरण पर क्या असर पड़ रहा है? माइक्रोसॉफ़्ट द्वारा कराए गए एक शोध के मुताबिक़, अकेले भारत में एक साल में लगभग 2 अरब जोड़ी जूते बनते हैं। करीब 11 लाख लोग फ़ुटवियर्स मैनुफ़ैक्चरिंग इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं और इंडस्ट्री द्वारा उत्पादित माल के 95 प्रतिशत हिस्से की खपत हमारे ही देश में हो जा रही है।
एक और गंभीर पहलू यह है कि इस सेक्टर में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर कोई नियंत्रण नहीं है। भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फ़ुटवियर मार्केट है।
भारत में मौजूद फ़ुटवियर इंडस्ट्री से जुड़े आंकड़े जानने के बाद आप इस बात का अंदाज़ा लगा सकेंगे इतनी विस्तृत इंडस्ट्री में होने वाली मैनुफ़ैक्चरिंग की प्रक्रिया से निकलने वाले वेस्ट की मात्रा भी उसी अनुपात में होगी और यह तथ्य, स्थिति को गंभीर बनाता है। भारत में फ़ुटवियर इंडस्ट्री से सालाना 6 करोड़ 20 लाख टन वेस्ट निकलता है। इसमें से सिर्फ़ 30 प्रतिशत वेस्ट का ट्रीटमेंट होता है और बचा हुआ हिस्सा ऐसे ही फेंक दिया जाता है, जिसको डीकम्पोज़ होने या ख़त्म होने में 40 से 50 सालों का समय लगता है। बिना ट्रीटमेंट के इतना अधिक वेस्ट, आबादी के लिए स्वास्थ्य संबंधी अनेकों समस्याएं पैदा कर सकता है और लोगों को सांस की बीमारी से लेकर कैंसर तक हो सकता है।
यहीं से शुरुआत होती है मर्टल मॉड्युलर फ़ैशन की भूमिका की, जिसकी शुरुआत शशांक पवार ने की थी। हैदराबाद का स्टार्टअप, मर्टल मॉड्युलर फ़ैशन ऐसे फ़ुटवियर्स बनाता है, जो स्टाइलिश तो हों ही और साथ ही किफ़ायती भी हो। साथ ही, इन जूतों में एक ख़ास बात यह भी है कि इनमें जो मटीरियल इस्तेमाल हो रहा है, वह पर्यावरण की सकुशलता को ध्यान में रखते हुए चुना गया है। इन जूतों में मुलायम और हल्के कॉर्क का इस्तेमाल होता है, फ़ूटबेड के तौर पर, जिसे चेंज की जा सकने वाली स्ट्रैप्स के साथ लगाया जा सकता है। इस तरीक़े से मर्टल 80 प्रतिशत तक कम वेस्ट पैदा करता है, ऐसा कंपनी का दावा है।
शशांक ने योर स्टोरी को बताया,
"हम डेली फ़ुटवियर ब्रैंड बनना चाहते हैं कि लेकिन हम ग्राहकों छूट देना चाहते हैं कि वे अपने फ़ुटवियर्स को अपग्रेड कर सकें। हमारे फ़ुटवियर्स में इस्तेमाल होने वाले चेंजिंग स्ट्रैप्स ग्राहकों को अपना स्टाइल बरकरार रखने और फ़ैशन के साथ चलने में मदद करते हैं।"
शशांक ने एनआईटी, वारंगल से पढ़ाई की है और बतौर ऑन्त्रप्रन्योर उनकी यात्रा इस दौरान ही शुरू हो गई थी। वे टी-शर्ट्स बनाते थे और उसे वोज़ हाई नाम के ब्रैंड से बेचते थे। उनके इस वेंचर को इस कदर सफलता मिली कि बहुचर्चित फ़िल्म बाहुबली में उनके ब्रैंड को ऑफ़िशल मर्चैंडाइज़ बनाया गया और अपने पहले आम चुनाव में कैंपेनिंग के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी उनकी ब्रैंड के कपड़े पहने।
शशांक बताते हैं कि सफलता मिलने के बाद उन्हें फ़ैशन इंडस्ट्री में और नए प्रयोग करने की प्रेरणा मिली, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि जैसे-जैसे उनका उत्पादन बढ़ेगा, वैसे-वैसे वेस्ट भी बढ़ेगा। इस बात को समझने के बाद, उन्हें फ़ुटवियर्स में चेंजेबल स्ट्रैप्स के इस्तेमाल का आइडिया आया और उन्होंने मर्टल की शुरुआत करने के बारे में सोचा। ढाई सालों की लंबी रिसर्च के बाद मर्टल ब्रैंड ने अपने उत्पाद तय किए। ये स्ट्रैप्स बायोडिग्रेडेबल मटीरियल्स जैसे कि सफ़ेद कॉटन से बनते हैं।
शशांक बताते हैं,
"एक बार इस्तेमाल पूरा होने के बाद हम बाहर के सोल को बदल देते हैं और उसे ग्राहक को दे देते हैं और इसकी बदौलत वह कचड़े में जाने से बच जाता है। हम सेल से लेकर डिस्पोज़ल तक काम कर रहे हैं।"
मर्टल के प्रोडक्ट्स की प्राइस रेंज 999 रुपए से लेकर 1,999 रुपए तक है। एक एक्स्ट्रा स्ट्रैप की क़ीमत लगभग 200 रुपए तक आती है। कंपनी छोटे स्तर पर काम करने वाले कलाकारों के हस्तशिल्प को भी भुना रही है और उनके आर्थिक स्तर में सुधार लाने का प्रयास कर रही है।
मर्टल अभी तक 2 हज़ार जोड़ी फ़ुटवियर्स बेच चुका है। अपने निजी ई-कॉमर्स प्लैटफ़ॉर्म के अलावा मर्टल के प्रोडक्ट्स ऐमज़ॉन पर भी उपलब्ध हैं। कंपनी का लक्ष्य है कि अगले साल तक 5 हज़ार जोड़ी फ़ुटवियर्स बेचे जाएं। कंपनी ने जानकारी दी कि चेंजेबल स्ट्रैप्स का पेटेंट लेना अभी बाक़ी है।
कंपनी ने 30 लाख रुपए की बूटस्ट्रैप्ड फ़ंडिंग के साथ शुरुआत की थी। कंपनी को भारत में ग्लोबल वर्कप्लेस सॉल्यूशन्स फ़ॉर सीबीआरई के मैनेजिंग डायरेक्टर राजेश पंडित के मारफ़त 50 लाख रुपए की ऐंजल राउंड फ़ंडिंग भी मिल चुकी है। स्टार्टअप की योजना है कि अगले महीने एक ख़ास तरह के स्ट्रैप्स की रेंज लॉन्च की जाए, जो पूरी तरह से लोगों द्वारा फेंक दिए गए कपड़ों से बनाई गई हो।
शशांक का मानना है कि मर्टल जिस सोच के साथ काम कर रहा है, अगर अन्य संगठन भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ें तो मैनुफ़ैक्चरिंग इंडस्ट्री पर्यावरण को बचाने की दिशा में बड़ा योगदान दे सकती है।