Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

इस दौर में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के मायने, किन चुनौतियों का सामना करेंगे ऋषि सुनक

इस दौर में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के मायने, किन चुनौतियों का सामना करेंगे ऋषि सुनक

Tuesday October 25, 2022 , 4 min Read

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुने जाने के ठीक बाद ऋषि सुनक ने कहा कि ब्रिटेन के लिए “स्टेबीलिटी और यूनिटी” उनकी पहली प्राथमिकता रहेगी. 42 वर्षीय सुनक का सबसे बड़ा चैलेन्ज ब्रिटेन की इकॉनमी को पटरी पर लाने की रहेगी. इसी साल 6 सितंबर को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाली लिज़ ट्रस को देश की इकॉनमी को ठीक से मैनेज नहीं कर पाने के कारण ही 45 दिन में ही इस्तीफा देना पड़ गया था. अपना इस्तीफ़ा सौंपते हुए ट्रस ने कहा था कि जिस दौर में उनका चुनाव प्रधानमंत्री के पद पर हुआ वो "आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अस्थिरता का दौर" था. ट्रस के जाने के बाद भी ब्रिटेन का यह दौर कायम है और देश की कमान अब सुनक के हाथ में है. ज़ाहिर है, ये सारी चुनौतियां अब सुनक को देखनी हैं.


बोरिस जॉनसन को इसी साल जुलाई में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद से उस वक्त इस्तीफा देना पड़ा था, जब ‘पार्टीगेट’ कांड के बाद उनके खिलाफ उनके ही मंत्रियों ने बगावत कर दी थी. जॉनसन पर कथित रूप से कोविड-19 से जुड़े कानून तोड़ने का आरोप लगा था. उनके खिलाफ एक के बाद इस्तीफा देने वाले मंत्रियों में ऋषि सुनक भी शामिल थे, जो उस वक्त वित्त मंत्री की अहम जिम्मेदारी संभाल रहे थे. अब उम्मीद की जा रही है कि आर्थिक मामलों की अच्छी जानकारी के कारण ऋषि सुनक ब्रिटिश इकॉनमी को संभालने का वो काम कर पाएंगे, जो बोरिस जॉनसन और लिज़ ट्रस नहीं कर सके.

क्या चैलेंजेज होगे सुनक के सामने?

राजनीतिक:

पहला तो यह कि भयानक आतंरिक डिबेट का सामना कर रही कंजर्वेटिव पार्टी को एकजुट करना होगा. यह वही पार्टी जिसके इन्टरनल फ्रैक्शन की वजह से ट्रस को इस्तीफा तक पड़ गया था. सुनक को इमिग्रेशन के मसले पर भी कंजर्वेटिव पार्टी के रुख का सामना करना पड़ेगा.


देश भर में ऋषि सुनक की लोकप्रियता लिज़ ट्रस से कहीं अधिक महसूस होती है. अगर ये आम चुनाव होता तो ऋषि सुनक आसानी से जीत जाते.  लेकिन आम चुनाव जनवरी 2025 में चुनाव होने हैं. सुनक वैसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें डाइरेक्ट चुनाव में बहुमत नहीं मिला है.


प्रधानमंत्री बनाने के बाद उनके कैबिनेट पर सबकी नज़र रहेगी. ये देखने वाली बात होगी की सुनक के कैबिनेट में जेरेमी हंट को चांसलर ऑफ़ द एक्सचेकर के पद पर रखेंगे या नहीं.

इकॉनोमिक:

नए प्रधानमंत्री के सामने सबसे मुश्किल चुनौती होगी ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को संभालना. ब्रिटेन में परिवार और कंपनियां ख़र्च पूरे करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और कईयों को लगता है कि जो वित्तीय मुश्किलें वो झेल रहे हैं उनके लिए कंज़रवेटिव पार्टी ज़िम्मेदार है. नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) गंभीर दबाव में है, परिवर्तन और ऊर्जा आपूर्ति की समस्या भी है. हाउसिंग की समस्या ब्रिटेन की सदैव से एक समस्या रही है.


ब्रिटेन में इंटरेस्ट रेट लगातार बढ़ रहे हैं, इन्फ्लेशन बढ़ रहा है. वहीँ, वहां के लोगों की आमदनी कम हो रही है लेकिन मंहगाई बढ़ती जा रही है. ऐसे हालात में सुनक के पास सेवाओं पर ख़र्च करने के लिए कम पैसा होगा. और जनता के लिए बजट कम होने से कई सरकारी विभागों के लिए वो काम करने मुश्किल हो जाएंगे जो जनता के लिए करने ज़रूरी हैं. ऐसा करने से जनता गुस्सा हो सकती है. वहीँ, हेल्थ और डिफेंस के बजट में कटौती होने से कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्य नारा  हो सकते हैं.


साथ ही, ब्रिटेन को अपना अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिबिलिटी भी स्थापित करना है. विदेशी मोर्चे पर, ब्रिटेन का यूक्रेन का समर्थन जारी रखने से पीछे हटने का सवाल ही नहीं है. अभी इन सवालों का जवाब भी नहीं मिला है कि ये युद्ध कब तक खिंचेगा और इसका नतीजा क्या होगा या ये कैसे समाप्त होगा.