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वित्तीय प्रबंधन की रेस में मात खाता महिला उद्यम

अपने बिजनेस आइडिया पर काम करने के लिए महिलाओं को सौ तरह की मुश्किलें पार करनी पड़ती हैं। लेकिन महिलाओं का दृढ़ निश्चय ही आज उन्हें क्षेत्र में अग्रणी ला रहा है।

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)


देश की आबादी का लगभग 49 प्रतिशत महिलाओं का है जिन्हें पुरुषों के समान तरक्की करने के अवसर और विकल्प मिलने चाहिए ताकि वे खुद अपनी तकदीर बना सकें।

 महिलाएं वो घास हैं, जिनको जितना रौंदा जाता है वो उतनी ही तेजी से दोबारा उग आती हैं। महिला के उद्यमी बनने के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा आज भी पैसा जुटाना है।

सोशल मीडिया पर एक स्केच आपने जरूर देखा होगा, रेस का एक ट्रैक है जिसमें महिला और पुरुष दौड़ लगाने के लिए तैयार हैं। महिला के पैरों में सामाजिक जिम्मेदारियों की बेड़ी है और साथ ही उसके ट्रैक में बच्चों की परवरिश, पैसे का प्रबंधन, लैंगिक भेदभाव जैसे कई अवरोध खड़े हैं। वहीं पुरुष के ट्रैक में रास्ता एकदम साफ है। ये स्केच ही महिला उद्यम के आज की सच्चाई है। अपने बिजनेस आइडिया पर काम करने के लिए महिलाओं को सौ तरह की मुश्किलें पार करनी पड़ती हैं। लेकिन महिलाओं का दृढ़ निश्चय ही आज उन्हें क्षेत्र में अग्रणी ला रहा है। महिलाएं वो घास हैं, जिनको जितना रौंदा जाता है वो उतनी ही तेजी से दोबारा उग आती हैं। महिला के उद्यमी बनने के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा आज भी पैसा जुटाना है।

वित्तीय संस्थान, यहां तक कि बैंक भी उद्यम शुरू करने के लिए महिलाओं को कर्ज देने से कतराते हैं, खासकर यदि महिला व्यावसायिक घराने की न हो या बिल्कुल नए क्षेत्र में कदम रखना चाहती हो। वैसे तो जमाना बहुत बदला है। खासकर शहरों में महिलाओं के काम पर जाने की पाबंदी दूर हुई है। पर जहां तक एक महिला के खुद के काम करने की बात हो दूसरे दर्जे के नगरों और शहरों में आज भी लोगों की मानसिकता नहीं बदली है। देश तरक्की करे इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं शिक्षा और प्रशिक्षण पा कर सशक्त हो जाएं। देश की आबादी का लगभग 49 प्रतिशत महिलाओं का है जिन्हें पुरुषों के समान तरक्की करने के अवसर और विकल्प मिलने चाहिए ताकि वे खुद अपनी तकदीर बना सकें।

बाधाएं ही बाधाएं

कॉर्पोरेट जगत में भी महिलाओं के प्रति भेदभाव है जबकि हमें जरूरत है कि कम्पनी के निदेशक मंडल में महिलाओं की भागीदारी बढ़े। एक सफल उद्यमी बनने के लिए असीम साहस, कुछ करने की उमंग, आत्मविश्वास, दूरदर्शिता, प्रबंधन का कौशल और चुनौती स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए। साथ ही एक उद्यमी बन जाना ही काफी नहीं है, एक अच्छा नेता होना भी जरूरी है। ऐसा नेता जो साथ काम करने वालों और संगठन का ख्याल रख सके। उनका मानना है कि एक महिला में ये सभी गुण हैं और वह जो ठान ले कर सकती है।

महिलाएं कमर कस कर अपने बिजनेस में जी-जान से जुट जाएं। सपनों को अधूरा मत छोड़ें। आप अपने उद्यम में जितना पैर फैलाएंगे आपकी सफलता उतनी ऊंची होगी। महिला जैसे ही काम-काजी हो जाती है, जिन्दगी का उसका नजरिया ही बदल जाता है। वह एक नए आत्मविश्वास से भर जाती हैं। खुद पर भरोसा बढ़ जाता है। स्त्री शक्ति का अहसास होता है और अपनी दिनचर्या पर हमारा वश चलता हैं। इससे न केवल परिवार की आमदनी बढ़ती है बल्कि परिवार में आर्थिक सहयोग देने का संतोष भी होता है।

सेहत है सबसे जरूरी

हालांकि, एक महिला के लिए काम और स्वास्थ्य के बीच सही संतुलन पर ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है। अपनी सेहत का ख्याल रखना भी जरूरी है। उद्योग में महिलाएं हमेशा कोई न कोई राह पकड़ लेती है। हाल ही के समय में, टेक्नोलॉजी, शिक्षा और फंडिंग व मार्केटिंग के बढ़े हुए चैनल्स की वजह से यह महिलाएं उद्यमी बनना चाहती है और अपना खुद का कारोबार शुरू करना चाहती है। इन प्रयासों में कई स्तरों पर और कई तरह की समस्याएं हैं। इसमें एक बड़ा कारण है महत्व न देना। फंडिंग संसाधनों की कम जानकारी और उनके कारोबार को मदद देने वाली योजनाओं के बारे में जानकारी न होना भी एक कारण है। सहयोगी परिवार न होना तो जैसे सबसे बड़ी बाधा है।

सबसे महत्वपूर्ण, हमारा सामाजिक नजरिया भी एक कारण है जो महिला के स्टार्टअप के मुकाबले पुरुष के स्टार्टअप को चुनने को कहता है। जागरुकता, प्रोत्साहन देने वाला नजरिया और मूल्य व्यवस्था में जमीनी बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। महिला उद्यमियों के खिलाफ होने वाले भेदभाव को बदलना बेहद जरूरी है। महिला सशक्तिकरण के लिए सबसे जरूरी है उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता। पैरों पर खड़ा होने की ताकत से ही ठोस निर्णय लेने की ताकत मिलती है।

बनें आर्थिक आत्म निर्भर

आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला को खुद के सक्षम होने का अहसास रहता है और अपनी काबिलियत पर भरोसा भी। भारत में आज भी महिला उद्यमी बहुत कम हैं। देश में इच्छुक महिला उद्यमियों को वित्तीय सहयोग प्रदान करने और उन्हें औपचारिक बैंकिंग संस्थानों से जोड़ने के लिए 2013 में भारतीय महिला बैंक लिमिटेड (बीएमबीएल) की स्थापना की गई थी। इस बैंक के उद्देश्यों में से प्रमुख है- भारतीय महिलाओं को नॉन-बैंकिंग फाइनेंसर्स और साहूकारों से दूर रखना। इनमें छोटे-छोटे दलाल और निजी संस्थान शामिल है। जो पारंपरिक तौर पर महिलाओं की बचत को खत्म कर देते हैं और कर्ज के बदले मोटी रकम वसूलते हैं। ऐसी घटनाओं में महिलाओँ के साथ धोखाधड़ी और उच्च ब्याज दर वसूलने की आशंका ज्यादा रहती है।

महिलाओं की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए एक विशेषीकृत बैंक नई उद्यमियों के लिए बड़ी उम्मीद बनकर आया है। भारत दुनिया का ऐसा तीसरा देश है, जहां महिलाओं को केंद्र में रखकर बैंक बनाया गया है। बीएमबीएल की अब 100 शाखाएं हो चुकी हैं। इस महीने की शुरुआत में, एसबीआई बोर्ड ने भारतीय महिला बैंक के अधिग्रहण को मंजूरी दे दी है। इसका मतलब यह हुआ कि बीएमबीएल जल्द ही देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक का हिस्सा होगा और महिला उद्यमियों के लिए वहां से वित्तीय सेवाओं को हासिल करना आसान हो जाएगा।

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