मां-बेटी ने कैसे लिखी भारत की नामी एचआर कंसल्टेंसी को सफल बनाने की इबारत
देश की नामी एचआर कंसल्टेंसी को सफल बनाने वाली मां-बेटी...
प्रतिभा एक ऐसा बिजनेस तैयार करना चाहती थीं जो कंपनियों को अच्छे कर्मचारी उपलब्ध करा सके। उनकी कंपनी का नाम है शिल्पुत्सी। उन्होंने यह नाम अपनी तीन बेटियों, शिल्पा, अत्सी और पूर्वी के नाम पर रखा था। प्रतिभा ने सोचा था कि कभी उनकी ये बेटियां उनका यह बिजनेस संभालेंगी।
पूर्वी ने कॉलेज के वक्त शिल्पुत्सी में इंटर्नशिप की थी। उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की थी, लेकिन बाद में एचआर के क्षेत्र में अपना करियर बनाया। पूर्वी ने कंपनी में काफी नीचे से शुरुआत की थी।
जिंदगी के 81 बसंत देख चुकीं प्रतिभा सेठ को भारत में ह्यूमन रिसोर्स कंसल्टिंग का अगुआ कहा जा सकता है। उन्होंने आज से करीब चालीस साल पहले 1978 में एक स्ट्रैटिजिक एचआर कंसल्टिंग फर्म की स्थापना की थी। भारत में ऐसा करने वाली वह संभवत: वह पहली महिला थीं। प्रतिभा एक ऐसा बिजनेस तैयार करना चाहती थीं जो कंपनियों को अच्छे कर्मचारी उपलब्ध करा सके। उनकी कंपनी का नाम है शिल्पुत्सी। उन्होंने यह नाम अपनी तीन बेटियों, शिल्पा, अत्सी और पूर्वी के नाम पर रखा था। प्रतिभा ने सोचा था कि कभी उनकी ये बेटियां उनका यह बिजनेस संभालेंगी।
शिल्पा ने एमबीए करने के बाद अपनी मां की जिद पर इस पारिवारिक बिजनेस को जॉइन किया। इसके पहले वह छह सालों तक ब्रिटानिया कंपनी के साथ काम कर रही थीं। वह अमेरिका में शिल्पुत्सी के लिए एसोसिएट कंसल्टेंट के तौर पर काम करती हैं। वहीं अत्सी ने पॉलिटिकल इकॉनमी की पढ़ाई करने के बाद अमेरिका में मूडीज सोवरीयन रिस्क ग्रुप के साथ काम कर रही हैं। पूर्वी ने कॉलेज के वक्त शिल्पुत्सी में इंटर्नशिप की थी। उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की थी, लेकिन बाद में एचआर के क्षेत्र में अपना करियर बनाया। पूर्वी ने कंपनी में काफी नीचे से शुरुआत की थी।
पूर्वी ने वॉर्टन बिजनेस स्कूल से सीपीडी का सर्टिफिकेशन लिया और बाद में शिल्पुत्सी की सीईओ बनीं। प्रतिभा कहती हैं, 'मैंने फ्रीलांसर के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। मैं कई कंपनियों के लिए लीडरशिप कम्यूनिकेशन, टीम बिल्डिंग जैसी चीजों पर काम करती थी।' कई कंपनियों ने तो उन्हें अपने यहां एचआर डिपार्टमेंट में ऊंचे पदों पर जॉब भी ऑफर की। एक दिलचस्प वाकये के बारे में बताते हुए वह कहती हैं, 'मेरा एक क्लाइंट अपनी खुद की कंपनी शुरू कर रहा था और उसकी एक सह-कंपनी का एक मल्टीनेशनल कंपनी के साथ साझेदारी थी। वे चाहते थे कि मैं उनके लिए काम करूं।'
इससे प्रतिभा को लगा कि क्यों न खुद की एक कंसल्टेंट कंपनी बनाई जाए जो ऐसी कंपनियों को एचआर की पूरी सर्विस मुहैया करा सके। इसी सोच से शिल्पुत्सी की स्थापना हुई। हालांकि शुरुआत के दिन काफी संघर्षपूर्ण रहे। उस वक्त लोगों का माइंडसेट उतना डेवलप नहीं था और ये काम एचआर को ही करना पड़ता था। प्रतिभा बताती हैं, 'शिल्पुत्सी ने बिजनेस को डेवलप करने के मामले में टैलेंट एक्विजीशन और टैलेंट मैनेजमेंट की उपयोगिता साबित की। इस बिजनेस में इकलौती महिला होने के नाते मुझे कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। क्योंकि सारे क्लाइंट्स पुरुष हुआ करते थे और किसी महिला सहायक या सलाहकार के साथ वे असहज महसूस करते थे।'
प्रतिभा बताती हैं, 'एक बार मैं एक नए क्लाइंट से मिली तो वह हक्का-बक्का रह गया। उसने अपने एचआर को बुलाकर पूछा कि तुमने तो किसी कंसल्टैंट को बुलाने को कहा था और ये तो महिला है।' प्रतिभा ने कहा कि उसे यकीन नहीं हुआ कि एक महिला भी उसकी सलाहकार हो सकती है। लेकिन बाद में वही क्लाइंट प्रतिभा की कंपनी के लिए सबसे बड़ा रेवेन्यू क्लाइंट बना। प्रतिभा की बेटियों ने बाद में उनकी कंपनी का जिम्मा संभाला और पूर्वी सीईओ बन गईं। इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि बेटियां अपनी मां को बखूबी जानती थीं और काम करने का अंदाज उन्होंने अपनी मां से ही सीखा।
पूर्वी कहती हैं, 'एक साथ मिलकर काम करना आसान भी हो सकता है और मुश्किल भी। यह आप पर निर्भर करता है। हमारी मां ने हमें एक आत्मनिर्भर इंसान बनाने की कोशिश की। उन्होंने हमारे साथ हमेशा से दोस्तों की तरह व्यवहार किया और कभी भी हम पर कोई बंदिश थोपने की कोशइश नहीं की। हम आपस में दोस्त की तरह ही बात करते हैं, लेकिन एक आपसी सम्मान जुड़ा होता है। इसलिए साथ काम करना आसान हो जाता है। अगर आप एक दूसरे को समझते हैं और जानते हैं कि सामने वाला क्या कहना चाह रहा है तो फिर काम करना काफी आसान हो जाता है।' पूर्वी का कहना है कि मां-बेटी का साथ में काम करना इसलिए भी आसान हो जाता है क्योंकि दोनों का आपसी भरोसा काफी ज्यादा मजबूत है। इस भरोसे के साथ प्यार और दुलार भी जुड़ा ही है।
प्रतिभा के पास काम करने का 40 साल का अनुभव है और वह लोगों के व्यवहार को काफी अच्छे से पहचानती हैं। एचआर बिजनेस में यह स्किल काफी मायने रखती है। पूर्वी क्लाइंट्स को मैनेज करती हैं और प्रतिभा उन्हें सलाह देती हैं। किसी मुद्दे पर असहमति के प्रश्न पर पूर्वी बताती हैं कि हमारे अपने-अपने विचार जरूर होते हैं, लेकिन हम एक दूसरे के विचारों का सम्मान भी करते हैं। अगर हम क्लाइंट्स के मुद्दे पर असहमत होते हैं तो हम ध्यानपूर्वक सुनते हैं और फिर ये समझने की कोशिश करते हैं कि हमारे लिए क्या सही है। हमें साथ काम करने में मजा आता है और कई बार तो हम खाने की टेबल पर ही चर्चा शुरू कर देते हैं।
पूर्वी के पास कई सारे दिलचस्प अनुभव हैं। काफी पहले की बातों को याद करते हुए वह बताती हैं, '1995 की बात है हम एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी के पांच संयुक्त उपक्रमों को भारत में स्थापित करने में मदद कर रहे थे। उस वक्त इंटरनेट नहीं हुआ करता था। कंपनी का ग्लोबल सीईओ पुणे आने वाला था और उसके सामने एचआर प्रेजेंटेशन देनी थी। शिल्पुत्सी ने सारी प्रेजेंटेशन डिजाइन कर ली। यह प्रेजेंटेशन ग्लोबल एचआर हेड को देनी थी।' वह आगे बताती हैं कि ऐन मौके पर प्रिंटर खराब हो गया। इसके बाद उन्होंने किसी तरह प्रिंटर को रिपेयर कराया। प्रेजेंटेशन की कई सारी प्रतियां प्रिंट कराईं और रात 11 बजे पुणे जाने का फैसला किया। उस वक्त रात में दो महिलाएं एक कार ड्राइव करते हुए पुणे पहुंचीं और 3 बजे रात में होटल पहुंचकर प्रेजेंटेशन दिया। पूर्वी कहती हैं कि कंपनी को 40 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी कई सारी चुनौतियां सामने आती रहती हैं। प्रतिभा ने कहा, 'हमने इस कंपनी को भारत की सबसे प्रसिद्ध औऱ अलग कंपनी बनाने का सपना देखा था। हम आज टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग कर रहे हैं।'
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