बौखलाई भीड़ के सामने जब पुलिस की मददगार बनीं बुजुर्ग फ़रीन बानो

बौखलाई भीड़ के सामने जब पुलिस की मददगार बनीं बुजुर्ग फ़रीन बानो

Tuesday December 24, 2019,

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अहमदाबाद में जब बौखलाई हजारो की भीड़ वर्दी वालों की जान लेने पर आमादा हो उठी थी, महानगर के शाह-ए-आलम इलाक़े की साहसी बुजुर्ग मुस्लिम महिला फ़रीन बानो उनकी हिफाजत में उठ खड़ी हुईं। कुछ युवकों की मदद से घायल पुलिस वालो को अपने घर में छिपा लिया, उनकी मरहम-पट्टी की, माहौल थमने पर जाने दिया।


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फ़रीन बानो, फोटो साभार: सोशल मीडिया


कानून अपने हाथ में लेकर पुलिस और थानों, चौकियों पर बम, हथगोलों, पत्थरों से अटैक करने का दुस्साहस किस हद तक जा चुका है, इसकी कई खुली तस्वीरें हाल के नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरी भीड़ में देखने को मिली हैं लेकिन हिंसा के एक ऐसे ही तांडव के बीच गुजरात की फ़रीन बानो पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गई हैं।


गौरतलब है कि सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) के विरोध में कानपुर में पुलिस की चार बाइकें जला देने के साथ ही पुलिस पर पथराव, तमंचे-हथगोलों से हमले किए गए। दिल्ली में बड़ी हिंसक वारदात होते-होते बची। पूरी राजधानी को दंगे की आग में झोक देने की कोशिश हुई।


गुजरात के अहमदाबाद शहर में भीड़ ने पुलिस पर पथराव किए। पुलिस जान बचा कर भागने लगी तो हज़ारों लोग उस पर पत्थर फेंकने लगे। पुलिस आत्मरक्षा के लिए दुकानों और छोटे लॉरियों की आड़ में छिपने लगी। उसी दौरान शह के शाह-ए-आलम इलाक़े में कुछ लोग भीड़ से पुलिस को बचाने के लिए ढाल बन गए। उन्हीं में एक रहीं फ़रीन बानो।





फ़रीन उस भयानक वाकये का जिक्र करती हुई बताती हैं कि जब पुलिस पर पथराव किया जा रहा था, उन्होंने कुछ पुलिसकर्मियों को पास की एक दुकान में छिपा दिया। उनके घर के पास खड़े कुछ लड़के उन पुलिसकर्मियों को अंदर ले आए। उन्होंने उनके सिर पर बर्फ़ रगड़ कर उनका इलाज किया तो उन्हें कुछ राहत मिली। उन घायलों में एक महिला कांस्टेबल भी उनके घर आई। वह तो बहुत डरी हुई थी। उसके सिर पर पत्थर लगा था। वह लगातार रोए जा रही थी। एक अन्य पुलिस अधिकारी के हाथ पर पत्थर लगा था। वह भी काफी घबराए हुए थे। पहले तो उन्हें किसी तरह सामान्य किया गया। उनमें से एक अन्य पुलिस अधिकारी के सिर में गंभीर चोट थी। लगातार खून रिस रहा था। हमने कुछ रुई लगा दी और अपने रूमाल से उसे बांध दिया।


फ़रीन बानो ने बताया कि उनके इलाके में जब प्रदर्शनकारियों की भीड़ हिंसा पर आमादा थी, बड़े-बड़े ईंट-पत्थर पुलिस पर बरसा रही थी, पत्थर लगने से एक पुलिसकर्मी लड़खड़ा गिर गया तो भीड़ उस पर बेरहमी से टूट पड़ी। खुदा खैर करे कि ऐन उसी मौके पर उनके मोहल्ले के सात युवकों ने खुद की जान जोखिम में डालकर उस पुलिसवाले को बचा लिया।


वे कहती हैं,

‘‘हमने अपने घर में दो पुलिसकर्मियों और एक महिला कांस्टेबल को रोक लिया, बाकी तीन को मकान के पिछले वाले कमरे में भेज दिया क्योंकि वे बहुत ज्यादा घबरा गए थे। हालात संभलने पर ही उन्हें जाने दिया गया।’’


फ़रीन बानो कहती हैं,

‘‘इस बात से कोई फर्क़ नहीं पड़ता, हमारे सामने कौन है, उन्हे तो उस वक़्त घायलों के साथ मानवता से पेश आना था, सो वैसा ही किया। वह उनकी मदद के लिए आगे नहीं आतीं तो उस समय कुछ भी हो सकता था।’’