ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना: समृद्धि के स्थायी मार्ग के लिए ‘बाला विकासा’ का सफल प्रयास
एक अभिनव और टिकाऊ दृष्टिकोण के साथ, पिछले कुछ वर्षों में, बाला विकासा ग्रामीण भारत में अपने हस्तक्षेपों में सफल रहा है, जिससे समुदायों को अपनी मदद करने में मदद मिली है.
अक्सर यह कहा जाता है कि गाँव किसी भी राष्ट्र की जीवनरेखा होते हैं. वे हमें आवश्यक भोजन उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
लेकिन बदलते परिवेश और जलवायु के साथ, ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं पर गहरा असर पड़ा है. हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए एक स्थायी दृष्टिकोण के साथ गांव के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, कृषि और संबद्ध गतिविधियों में उचित तकनीक को प्रदान करके गांवों को और अधिक समृद्ध बनाने की जरूरत है.
इन्हीं उद्देश्यों के साथ भारत के 7 राज्यों में समुदाय-संचालित सतत् विकास पहल के दृष्टिकोण के साथ, बाला विकासा, एक उल्लेखनीय गैर-लाभकारी संगठन, कदम बढ़ा रहा है. एक अभिनव और टिकाऊ दृष्टिकोण के साथ, पिछले कुछ वर्षों में, बाला विकासा ग्रामीण भारत में अपने हस्तक्षेपों में सफल रहा है, जिससे समुदायों को अपनी मदद करने में मदद मिली है.
भारत में 70 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण परिवार कृषि और संबंधित गतिविधियों पर निर्भर हैं. संयुक्त राष्ट्र के खाद्यान और कृषि संगठन की हाल ही के रिपोर्ट अनुसार, उनमें से लगभग 81.9% छोटे और सीमांत किसान हैं. जिनके पास आय का कोई अन्य स्रोत नहीं होने और महंगे रासायनिक उर्वरकों की खरीदी के कारण बढ़ रहे कर्ज को चुकाने का कोई साधन नहीं है. दुख की बात है कि कई किसान आत्महत्या तक का रास्ता अपना लेते हैं, जिससे उनके परिवार में उथल-पुथल मच जाती है.
उदाहरण के लिए, येल्लम्मा को लें. वह तेलंगाना के गार्नेपल्ली की एक किसान हैं. चार लोगों के परिवार के भरण-पोषण के लिए, वह रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खेती की अन्य ज़रूरतों के लिए ऋण हासिल करने के लिए हर संभव कोशिश करती थी. उसने अपना कर्ज चुकाने और गुजारा करने के लिए बेहतर उपज हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
तभी बाला विकासा (www.balavikasa.org) उनके जीवन में आए, और उन्हें जैविक खेती के तरीकों से परिचित कराया, जिनमें न्यूनतम या किसी निवेश की आवश्यकता नहीं होती है और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादन का वादा मिलता है. उसके आश्चर्य की कल्पना कीजिए जब उसे पता चला कि वह केले, गाय के गोबर और नीम के पत्तों जैसी रोजमर्रा की वस्तुओं का उपयोग करके जैविक खाद बना सकती है. यह बाला विकासा संगठन के जागरूकता कार्यक्रमों का ही परिणाम है कि येल्लम्मा जैसे किसान अक्सर आर्थिक सुरक्षा के अंतिम उपाय के रूप में जैविक खेती की ओर कदम बढ़ा रहे हैं.
लेकिन जैविक खेती के फायदे यहीं नहीं रुकते. किसानों को जैविक उत्पादों को अक्सर रासायनिक कृषि उत्पादों की तुलना में अधिक कीमत मिलती है. येल्लम्मा गर्व से कहती हैं, "चार साल पहले, मैंने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए जैविक खेती करने का जोखिम उठाया. आज, मैं न केवल आराम से और आर्थिक रूप से सुरक्षित रह रही हूं, बल्कि एक आत्मविश्वासी महिला भी हूं."
बाला विकासा के निरंतर प्रयासों के माध्यम से, लगभग 1500 एकड़ भूमि जैविक खेती में परिवर्तित हुआ है, जहां किसानों को महंगी रासायनिक खेती से पर्यावरण-अनुकूल कृषि में संक्रमण के लिए इनपुट प्रदान किए जाते हैं. यह गहन क्षमता निर्माण, सूचनात्मक सामग्रियों के वितरण और विभिन्न प्रकार के जैविक इनपुट साझा करने से हासिल किया गया है. इसके अलावा, बेहतर परिणामों वाले खेतों को डेमो फार्म में बदल दिया जाता है, जो अन्य किसानों को जैविक खेती आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं.
जैविक खेती के इनपुट के अलावा, बाला विकासा ने तेलंगाना के 8 गांवों में मवेशियों के लिए डेयरी हॉस्टल सुविधाएं प्रदान करने के लिए एक अभिनव परियोजना शुरू की है, जिसका लक्ष्य गांव में स्वच्छता में सुधार करना, दूध उत्पादन में वृद्धि करना और इस तरह छोटे और सीमांत किसानों की आय में वृद्धि लाना है. प्रत्येक डेयरी हॉस्टल उच्च गुणवत्ता वाली एकीकृत सेवाएं प्रदान करने के लिए बनाया गया है जो लगभग 200 से अधिक मवेशियों को सर्वोत्तम सुविधाएं प्रदान करता है, मवेशी मालिकों को प्रबंधन के सर्वोत्तम उपकरण प्रदान करता है और इससे लाभान्वित होने के लिए कई अन्य मूल्यवर्धन भी होते हैं.
डेयरी हॉस्टल का उपयोग करने वाले युवा किसान प्रशांत कहते हैं, “सरकारी योजनाएं मवेशियों के पालन-पोषण में हमारी मदद करती हैं, लेकिन मवेशियों के रखरखाव की देखभाल के लिए हमारे पास पर्याप्त जमीन या वित्तीय संसाधन नहीं होने के कारण हम उनके स्वास्थ्य को सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं, जिससे उनके दूध उत्पादन पर असर पड़ रहा है और परिणामस्वरूप हमारी आय पर असर पड़ रहा है. समय पर भोजन, सफाई, पशु चिकित्सा सेवाओं की सभी सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं और देखभाल करने वालों द्वारा सुनिश्चित की जाती हैं की वह समय पर मले, जिससे हम अपना समय अन्य उत्पादक कार्यों पर खर्च कर सकते हैं.”
समुदायों के लिए सुरक्षित जल पहुंचाने में सहयोग करना भी बाला विकासा के लिए एक महत्वपूर्ण बात है. उनके सुरक्षित जल कार्यक्रम ने विभिन्न प्रकार की जल अवसंरचना प्रदान करके हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है. इससे न केवल समय और भौतिक ऊर्जा की बचत हुई है बल्कि कभी-कभी पानी लाने में खर्च होने वाले पैसे की भी बचत होती है. करीब 130 आदिवासी समुदायों के 30,200 से अधिक लोगों ने तीन अलग-अलग प्रकार के बोरवेल-आधारित जल बुनियादी ढांचे जैसे हैंडपंप, ओवरहेड टैंक और पाइपलाइन जल आपूर्ति के माध्यम से सुरक्षित पानी तक पहुंच प्राप्त की है.
लेकिन यह यहीं नहीं रुकता! बाला विकासा ने रिकॉर्ड संख्या (1500) में कम्युनिटी वाटर प्यूरिफिकेशन प्लांट स्थापित किए हैं, जो अधिक फ्लोराइड मात्रा से जूझ रहे समुदायों के लिए सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करते हैं. संगठन ने कुछ अनोखा कार्य भी किया है - एनी टाइम वॉटर (एटीडब्ल्यू) प्रीपेड कार्ड का उपयोग करके समुदायों के लिए आर.ओ. शुद्ध पानी केवल 3 रुपये प्रति 20 लीटर पर उपलब्ध किया है. यह नवाचार जल वितरण में चौबीसों घंटे पहुंच, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है. अब तक, बाला विकासा की जल पहल ने 30 लाख लोगों के जीवन को प्रभावित किया है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि उन्हें सुरक्षित पेयजल उपलब्ध हो सके.
अपने प्रयासों के माध्यम से, बाला विकासा मॉडल गांव भी बना रहा है जहां समुदाय अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने, सामाजिक मुद्दों को खत्म करने और विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक बदलाव लाने के लिए अपनी स्थानीय संसाधनों और मानव क्षमता का उपयोग करते हैं.
पिछले कुछ वर्षों में, बाला विकासा ने कई समुदाय-संचालित विकास कार्यक्रमों का नेतृत्व किया है जो ग्रामीण समुदायों को नवीन और अत्यधिक टिकाऊ विकास परियोजनाओं के डिजाइन, कार्यान्वयन और प्रबंधन में भाग लेकर अपने स्वयं के विकास को चलाने के लिए सशक्त बनाते हैं. 45 साल की विरासत के साथ, बाला विकासा संगठन ने 7 राज्यों के 8000 गांवों में 8 मिलियन लोगों के जीवन को प्रभावित किया है. गांवों में बाला विकासा के कुछ प्रमुख हस्तक्षेप साफ एवं सुरक्षित पानी तक पहुंच, कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए छोटे सिंचाई टैंकों को बहाल करने, कम लागत वाली जैविक खेती को बढ़ावा देने, सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सुविधा, सामुदायिक नेतृत्व को बढ़ावा देना, महिलाओं को सशक्त बनाने और अंततः यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं कि गाँव सशक्त और समृद्ध हो.
(लेखक Bala Vikasa के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)
Edited by रविकांत पारीक