इंजीनियर से आंत्रप्रेन्योर और मंत्री बनने तक: IT मंत्री राजीव चंद्रशेखर के सफर की कहानी
IT मंत्री ने इंजीनियरिंग, आंत्रप्रेन्योरशिप और उसके बाद राजनीति... हर जगह खुद को बेहतर साबित करते हुए अपनी निरंतर सफलता का परचम लहराया है.
हाइलाइट्स
- सफल होने के लिए आपको प्रभावशाली समर्थकों या पैसों की जरूरत नहीं है. आपको केवल अपने आइडिया में गहरी आस्था और विश्वास की जरूरत है.
- आप ना कहने वालों को बातों से नहीं बल्कि कर्मों से गलत साबित कर सकते हैं. उन्हें अपनी असली वैल्यू दिखाएं.
- एक लेवल तक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पैसों की जरूरत होती है. लेकिन पैसे को जीवन का अर्थ मत बनाओ.
शानदार पारिवारिक पृष्ठभूमि, मशहूर उपनाम (surname), या प्रभावशाली संपन्नता. 1980 और 1990 के दशक के भारत में, इन्हें बिजनेस में सफल होने के लिए परिभाषित मानदंड माना जाता था. राजीव चंद्रशेखर ने इनमें से किसी भी बॉक्स को चेक नहीं किया; उन्हें तोहफा मिला था, लेकिन, एक खास चीज के साथ. अंतर्ज्ञान की समझ और किसी भी अवसर पर छलांग लगाने के दृढ़ संकल्प ने राजीव चंद्रशेखर को उस शख्सियत के रूप में ढाला है जो वे अब हैं. इंजीनियर से आंत्रप्रेन्योर बने, और आगे चलकर राजनीति की ओर रुख किया, वे धैर्य और लचीलेपन की परिवर्तनकारी शक्तियों के उदाहरण हैं.
उन्होंने भारत में एक इंजीनियर के रूप में शुरुआत की. लेकिन बाद में अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए वे नौकरी छोड़कर अमेरिका चले गए. वहां उन्होंने पढ़ाई के बाद Intel में नौकरी की. और अंततः आंत्रप्रेन्योर बनने के लिए भारत वापस आ गए. राजनीति में उनके कदम ने टेक्नोलॉजी पॉलिसी को नए आयाम देने की नई संभावनाएं खोलीं. यह एक ऐसा सेक्टर है जिसको लेकर वे बेहद भावुक हैं.
YourStory को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "मैंने कभी पैटर्न या परंपराओं का पालन नहीं किया है. यह ज्ञान और दृढ़ संकल्प था जो मुझे आज यहां लाया है."
उनकी कहानी साहस, दृढ़ संकल्प, सामाजिक मानदंडों की अवहेलना करने, अनछुए पानी पर चलने और बाहर निकलने के उपयुक्त समय को जानने की कहानी है. राजीव चंद्रशेखर, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी, कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री भले ही कई प्रतिभाओं के धनी हों, लेकिन आज वे एक लोक सेवक के रूप में अपने अवतार में सबसे अधिक संतुष्ट हैं.
आंत्रप्रेन्योर बनने की चाह
एक एयर फोर्स पायलट का बेटा होने के नाते, चंद्रशेखर ने अपना बचपन 1960 और 1970 के दशक में देश भर की यात्रा करने और विभिन्न संस्कृतियों का अनुभव करने में बिताया. 1981 में ग्रेजुएशन होने के बाद, उन्होंने दिल्ली स्थित एक आईटी स्टार्टअप Softech में जॉब हासिल की. ये वो दौर था जब स्टार्टअप्स अनसुने थे. उन्हें महीने में बतौर सैलरी 1,700 रुपये मिलते थे. लेकिन उनके पिता चाहते थे कि उनकी बड़ी आकांक्षाएं हों और उन्होंने उन्हें अमेरिका जाकर पढ़ने के लिए प्रेरित किया.
याद रखें, यह 1980 का दशक था जब छात्रवृत्ति (scholarships) बहुत कम हुआ करती थी. चंद्रशेखर पहले सेमेस्टर से चूक गए थे क्योंकि उन्होंने देर से आवेदन किया था. मंत्री भावनात्मक रूप से उस पल को याद करते हैं जब उनके पिता ने अपनी 8 लाख रुपये की पूरी बचत निकालकर उन्हें सौंप दी थी. उनके पिता ने उन पर दांव लगाने का फैसला किया था.
वे बताते हैं, “कल्पना कीजिए, मेरे पिता अपनी 35 साल की सेवा के दौरान जो कुछ भी बचाते थे, वह देने के लिए तैयार थे. इसने मुझे पारंपरिक भारतीय परिवार प्रणाली की ताकत की याद दिला दी. ये कुछ ऐसा है जो आपको पश्चिम में शायद ही मिलेगा. मैंने उन पैसों को कभी हाथ नहीं लगाया, लेकिन 30 साल की उम्र तक खुद से 10 लाख रुपये बचाने का वादा किया था.” मंत्री तब 21 साल के थे.
उन्होंने इलिनोइस इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो (Illinois Institute of Chicago) से कंप्यूटर साइंस में मास्टर की डिग्री हासिल की और इंटेल में शामिल हो गए. चिप कंपनी में एक डिज़ाइन इंजीनियर के रूप में, मंत्री उस 30-सदस्यीय टीम का हिस्सा थे जिसने 1988 में i486 माइक्रोप्रोसेसर चिप को डिज़ाइन किया था.
लेकिन तीन साल बाद, जब वे शादी करने के लिए घर लौटे, तो वे भारत से मोहित हो गए और उन्होंने फैसला किया कि वे देश नहीं छोड़ेंगे बल्कि यहीं रहकर राष्ट्र निर्माण में भाग लेंगे. यह साल 1991 था जब सरकार ने सेल फोन के बारे में चर्चा शुरू की थी. चंद्रशेखर ने पहले कभी मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं किया था, लेकिन फोन कॉल करने की मुश्किलों से वे वाकिफ़ थे. जब वे अमेरिका में थे तब उन्हें अपने प्रियजनों की आवाज सुनने के लिए संघर्ष करना पड़ा था.
1994 में उन्होंने बीपीएल मोबाइल (BPL Mobile) की स्थापना की. उस दौर में एक पथ प्रदर्शक जहां स्टार्टअप एक विदेशी शब्द था और फंडिंग के रास्ते न के बराबर थे.
मंत्री ने BPL को बढ़ाया और इस लेवल तक बढ़ाया कि इसे भारत के सबसे बड़े मोबाइल ऑपरेटरों में गिना जाने लगा. जब BPL Mobile यूनिकॉर्न बन गया, तो चंद्रशेखर को एहसास हुआ कि अब वह कंपनी को दूसरों को सौंप सकते हैं और अपने बच्चे को अपने पैरों पर खड़े होने दे सकते हैं.
चुनौतीपूर्ण अवसरों को गले लगाने में मंत्री माहिर हैं, लेकिन उनके पास प्रतिकूल परिस्थितियों से दूर चलने की दूरदर्शिता भी है. एक उदाहरण है जब उन्होंने 2005 में BPL Mobile को Hutchison (कई मर्जर के बाद अब इसे वोडाफोन आइडिया के नाम से जाना जाता है) को करीब 1 अरब डॉलर में बेच दिया.
वे कहते हैं, “मैं उस पत्रकार को स्पष्ट रूप से याद करता हूं जिसने मुझे टेलीकॉम सेक्टर से जल्दी निकलने के लिए प्रेरित किया था, खासकर तब जब यह अनुमान लगाया गया था कि यह बढ़कर 5 बिलियन डॉलर हो जाएगा. लेकिन मैं बहुत स्पष्ट था कि नई दिल्ली में टेलीकॉम स्पेक्ट्रम के लिए पैरवी करने की न तो मेरी क्षमता है और न ही इसमें रुचि है.”
इसे अरुचि कहें या शुद्ध प्रवृत्ति, लेकिन BPL से मंत्री के बाहर निकलने के दो साल बाद ही 2G स्पेक्ट्रम की नीलामी शुरू हो गई. नीलामी में ऐसी घटना के लिए आक्रामक बोली शामिल थी जिसने देश के सर्वोच्च लेखापरीक्षा निकाय से आलोचना झेलनी पड़ी.
इस घटना ने पैसे के बारे में एक अहसास भी जगाया. वे कहते हैं, "एक लेवल तक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पैसों की जरूरत होती है. लेकिन पैसे को जीवन का अर्थ मत बनाओ."
राजनीति का बुलावा
राजीव चंद्रशेखर के लिए देश पहले है. पश्चिम में रहने और काम करने के बाद, वे भारत से जुड़ी पूर्वकल्पित धारणाओं से अवगत थे. वे उन मिथकों को तोड़ना चाहते थे. वे सिस्टम में रहना चाहते थे और उसका पुनर्निर्माण करना चाहते थे.
इस भावना ने आंत्रप्रेन्योर राजीव चंद्रशेखर को राजनीति पर गंभीरता से ध्यान देने के लिए प्रेरित किया. इसलिए जब उन्हें डुबकी लगाने का मौका मिला, तो उन्होंने ऐसा ही किया. 2006 में, वह अर्बन बेंगलुरु का प्रतिनिधित्व करते हुए राज्यसभा के लिए चुने गए. लेकिन राजनीति में स्विच करना इतना आसान भी नहीं था.
मंत्री बताते हैं, “मेरे शपथ ग्रहण समारोह के दिन, मैंने दो वरिष्ठ राजनेताओं को टिप्पणी करते हुए सुना, ‘देखो, एक और बिजनेसमैन है जो राज्यसभा में प्रवेश कर गया है.’ उन्होंने सोचा होगा कि मैंने इसके लिए पैसे दिए होंगे. लेकिन इससे मेरा उत्साह कम नहीं हुआ. वास्तव में, इसने सार्वजनिक सेवा के प्रति मेरी प्रतिबद्धता को मजबूत किया. मैं उन्हें गलत साबित करना चाहता था."
चंद्रशेखर कहते हैं, "मैं नए भारत के विजन में सार्थक योगदान देना चाहता हूं. एक केंद्रीय मंत्री के रूप में मेरे पास ऐसा करने का अवसर है, जो मुझे 2021 से पहले नहीं मिला था."
अब, भले ही एक सांसद के रूप में उनकी ज़िम्मेदारियां केंद्र में हों, राजीव चंद्रशेखर ने अपनी आंत्रप्रेन्योरशिप को नहीं खोया है. वे Jupiter Capital के फाउंडर हैं. ये एक प्राइवेट इक्विटी और डेट (debt) इन्वेस्टमेंट फर्म है जो टेक्नोलॉजी और इससे जुड़े सेक्टर में स्टार्टअप का समर्थन करती है. अपने मंत्रिस्तरीय कर्तव्यों से परिचित, राजीव चंद्रशेखर ने Jupiter के इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो को एक लीडरशिप टीम को सौंप दिया है.
खुद पर विश्वास और मेहनत के संकल्प के साथ आगे बढ़ें
भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इस विकास में चंद्रशेखर को पहली पंक्ति में जगह मिली है.
वे कहते हैं, “हमने खुद को इस नेरेटिव से दूर कर लिया है कि भारत गरीबों का देश है. दुनिया ने चीन का समर्थन करने की गलती की और अब हम मानसिकता में बदलाव देख रहे हैं. मुझे खुशी है कि हम अपने अतीत के गौरव को फिर से हासिल करने के लिए अभूतपूर्व ऊर्जा के साथ वापस लौट रहे हैं."
उन्होंने कहा, "हम एक देश के रूप में अभूतपूर्व ऊर्जा और आत्मविश्वास के साथ वापसी कर रहे हैं."
देश के टेक्नोलॉजी लैंडस्केप में क्रांति लाने के लिए निर्णय लेने की उचित मात्रा चंद्रशेखर की नीति-निर्माण क्षमताओं पर टिकी हुई है. वे वर्तमान में डिजिटल इंडिया (Digital India) की महत्वाकांक्षाओं को अनुकूल बनाने के लिए 22 साल पुराने आईटी अधिनियम (IT Act ) में संशोधन करने में लगे हुए है. साथ ही मंत्री कर्नाटक चुनाव के लिए प्रचार भी कर रहे हैं. काफी कुछ दांव पर लगा है, लेकिन उन्होंने हमेशा खुद को बेहतर साबित किया है.
राजीव चंद्रशेखर को इस बात पर गर्व है कि उनके बूटस्ट्रैप्ड करियर ने चुनौतीपूर्ण कार्यों का सामना करने वाले युवा उद्यमियों के लिए आशा की किरण के रूप में काम किया है.
मंत्री कहते हैं, "मेरी यात्रा आज के उद्यमियों के लिए एक उदाहरण के रूप में काम कर सकती है. जब तक आपके पास आत्म-विश्वास है, तब तक आपको किसी खास पृष्ठभूमि से संबंधित होने की आवश्यकता नहीं है."
उन्होंने आगे कहा, "जब तक आपमें आत्म-विश्वास है, तब तक आपको एक प्रतिष्ठित परिवार से संबंधित होने की आवश्यकता नहीं है. आपके आइडिया में गहरी आस्था और विश्वास ही मायने रखता है."
इस तरह सदियों से भारत का निर्माण हुआ है. खुद पर विश्वास और सबसे ज्यादा मेहनत करने के संकल्प के साथ.
(Translated by: रविकांत पारीक)