बचपन में चली गई आंखों की रोशनी, अब पहली ही कोशिश में आईएएस बनीं तपस्विनी
ओडिशा की तपस्विनी दास ने वह कर दिखाया है, जो हर किसी के लिए कत्तई आसान नहीं हो सकता है। डॉक्टर की गलती से उनकी सेकंड क्लास में ही आंख की रोशनी चली गई थी। वह ब्रेल लिपि, ऑडियो रिकार्डिंग से पढ़ती रहीं और अब उन्हे पहली ही कोशिश में ओडिशा सिविल सर्विसेस परीक्षा में 161वीं रैंक मिली है।
अपने माता-पिता के लिए तपस्वनी दास बेटी कम, बेटा ज्यादा हैं। भुवनेश्वर की उत्कल यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहीं तेईस साल की दृष्टिबाधित तपस्विनी ने पहली ही कोशिश में ओडिशा सिविल सर्विसेस परीक्षा 2018 में 161वीं रैंक हासिल की है।
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए आरक्षण होने के बावजूद तपस्विनी ओडिशा सिविल सर्विसेस की परीक्षा में सामान्य उम्मीदवार के तौर पर शामिल हुईं और कामयाबी मिल गई। ओडिशा में ऐसा दूसरी बार है, जब किसी दृष्टिबाधित उम्मीदवार ने सिविल सर्विसेस एग्जाम पास किया है। इससे पहले 2017 में ओडिशा सिविल सर्विसेस परीक्षा में आठ दृष्टिबाधित उम्मीदवार उत्तीर्ण हुए थे।
तपस्विनी के पिता अरुण कुमार दास ओडिशा कॉपरेटिव हाउसिंग कॉर्पोरेशन के रिटायर्ड डिप्टी मैनेजर हैं और मां कृष्णप्रिय मोहंती टीचर हैं। पिता अरुण कुमार बताते हैं कि उनके बेटे जैसी तपस्विनी शुरू से ही पढ़ाई में तेज रही हैं। वह 12वीं क्लास में भी टॉपर्स की लिस्ट में शामिल रहीं और स्नातक परीक्षा में भी अच्छे अंक मिले।
वह 2003 का साल था, जब तपस्विनी दूसरी क्लास में पढ़ रही थीं। एक वाकया उनकी जिंदगी में अंधेरा बिछा गया। ओडिशा के एक बड़े हॉस्पिटल में डॉक्टर की लापरवाही के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई। तभी उन्होंने सोच लिया था कि वह अपने नाम को सार्थक करेंगी। बड़ा हासिल करने के लिए तपस्या करेंगी, साधना करेंगी, खुद को हर तरह से साधेंगी।
तपस्विनी दास बताती हैं कि 2003 की उस भयानक आपबीती ने उन्हे एक तरह से तोड़कर रख दिया था। उनके माता-पिता भी उससे लंबे समय तक यह सोचकर परेशान रहे कि बेटी अब क्या करेगी, कैसे पढ़े-लिखेगी, कैसे उसका शादी-ब्याह होगा लेकिन पता नहीं किस अंदरूनी शक्ति ने उन्हे थाम लिया। उतनी कम उम्र में ही उन्होंने अंदर से संकल्प लिया कि वह न स्वयं को, न अपने माता-पिता कभी निराश होंगी। वह वक़्त से लड़ेंगी और अब अपनी जिंदगी में कुछ बहुत बड़ा हासिल करके रहेंगी। उसके बाद से अब तक उन्होंने कभी चुनौतियों से हार नहीं मानी है। हर खराब वक़्त में वह अपने आप से कहती हैं कि बेहतर पाने के लिए एक कोशिश करके देखा जाए।
आंखों की रोशनी चले जाने के बाद तपस्विनी आम छात्रों की तरह पढ़ाई नहीं कर सकती थीं लेकिन खुद को संभाला और ब्रेल लिपि से पढ़ाई करने लगीं। फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब वह अच्छे नंबरों से मैट्रिक पास हो गईं। उनका का कहना है कि दृढ़ निश्चय और धैर्य से कोई भी सफलता प्राप्त की जा सकती है। उनको अंदर से पूरा विश्वास था कि उनको पहली बार में ही सफलता मिल सकती है। इस समय वह भुवनेश्वर की उत्कल यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हैं।
तपस्विनी बताती हैं कि जब वह 9वीं क्लास में थीं, तभी सोच लिया था कि सिविल परीक्षा में जरूर बैठेंगी। उनका लक्ष्य तो यूपीएससी एग्जॉम क्वालिफाई करना था लेकिन ओडिशा सिविल सर्विसेज एग्जाम का विज्ञापन देखने के बाद वह इसकी परीक्षा की तैयारियों में जुट गईं। वह बताती हैं कि जो देख सकते हैं, वे किताबे पढ़ सकते हैं लेकिन उनके लिए इतने कठिन एग्जॉम की तैयारी करना सचमुच ही बहुत मुश्किल था। उसके बाद उन्होंने अपनी तैयारी का एक अलग तरीका निकाला। वह किताबों की ऑडियो रिकॉर्डिंग बनाकर जोर-शोर से पढ़ाई करने लगीं।
चूंकि ऑडियो रिकॉर्डिंग उन्होंने अपने लैपटॉप में सेव कर रखी थीं। इसलिए जब चाहा, पढ़ लिया। किताबों के पन्नों को स्कैन करके इन्हें ऑडियो में तब्दील करने के बाद वह सब्जेक्ट को आसानी से समझ लिया करती थीं। चूंकि यह एक नए तरह का प्रयोग था, पढ़ाई का नार्मल तरीका नहीं था, मुश्किलें आईं लेकिन उन्होंने कभी अपने को अपने सपनो से दूर नहीं होने दिया और कामयाबी मिल गई।