मध्य प्रदेश के स्टार्टअप्स के लिए 'गॉडफादर' बना यह युवा, कई स्टार्टअप्स को दिला चुका है करोड़ों की फंडिंग
आज हम बात करने जा रहे हैं भोपाल के रहने वाले रितेश रंगारे की, जिनका सपना है कि छोटे शहरों का अपना स्टार्टअप ईको-सिस्टम हो, क्योंकि इन शहरों में भी अपार संभावनाएं हैं।
रितेश भोपाल में 'स्टार्टअप स्पेस स्टेशन' नाम से एक इनक्यूबेशन सेंटर चला रहे हैं और अभी तक वह कुल 8 स्टार्टअप्स को 3-4 करोड़ रुपए तक की फंडिंग दिला चुके हैं।
पिछले कुछ सालों के ट्रेंड को देखा जाए तो भारत में स्टार्टअप इंडस्ट्री में बड़ी ग्रोथ देखने को मिलती है, लेकिन इनमें से ज्यादातर स्टार्टअप्स या तो मेट्रो सिटी में ही काम कर रहे हैं या फिर छोटे शहरों के स्टार्टअप्स को अपने ऑपरेशन्स के लिए बड़े शहरों पर निर्भर रहना पड़ता है। आज हम बात करने जा रहे हैं भोपाल के रहने वाले रितेश रंगारे की, जिनका सपना है कि छोटे शहरों का अपना स्टार्टअप ईको-सिस्टम हो, क्योंकि इन शहरों में भी अपार संभावनाएं हैं। शायद यही वजह रही कि पिछले एक दशक से रितेश अपने लक्ष्य के लिए मेहनत कर रहे हैं और उन्हें आम चुनौतियों के साथ-साथ लोगों की मानसिकता में बदलाव के लिए भी बेहिसाब कोशिशें करनी पड़ी हैं।
फिलहाल, रितेश भोपाल में 'स्टार्टअप स्पेस स्टेशन' नाम से एक इनक्यूबेशन सेंटर चला रहे हैं और अभी तक वह कुल 8 स्टार्टअप्स को 3-4 करोड़ रुपए तक की फंडिंग दिला चुके हैं।
कॉलेज से ही शुरू कर दिया था बिजनस
रितेश के संघर्ष या सफलता को किसी एक स्टार्टअप से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। उन्हें एक सीरियल ऑन्त्रप्रन्योर कहना ही बेहतर होगा। वक्त की जरूरतों के साथ-साथ रितेश अपने बिजनस और कार्यक्षेत्र दोनों में ही बदलाव करते रहे। उनके ऑन्त्रप्रन्योर बनने की कहानी शुरू होती है, एनआईटी (कालीकट) से, जहां पर वह सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। इस दौरान वह डायरेक्ट सेलिंग इंडस्ट्री के बिजनस से जुड़े थे और अच्छी कमाई कर लेते थे। कॉलेज मैनेजमेंट को यह नागवार गुजरा और उन्हें यह काम बंद करना पड़ा।
इस रुकावट का रितेश के जुनून पर कोई फर्क नहीं पड़ा और उन्होंने आगे का सफर शुरू किया। रितेश ने बताया कि आखिरी सेमेस्टर की छुट्टियों में उन्होंने अपनी पहली नॉवेल लिखी, 'द इवॉल्यूशन ऑफ ऐन इनग्लोरियस मोरॉन'। पिता जी की बीमारी की वजह से यह नॉवेल उस वक्त पब्लिश नहीं हो सकी। हालांकि, 2013 में यह नॉवेल प्रकाशित हुई और इसे शानदार प्रतिक्रिया मिली। तीन दिनों के लिए उनकी नॉवेल, ऑनलाइन सेलिंग प्लेटफॉर्म फ्लिपकार्ट पर बेस्ट सेलर रही।
पहले स्टार्टअप की शुरूआत
इसके बाद रितेश ने अपने दो दोस्तों, हर्शल गोंडाने और आशीष मुडकर के साथ मिलकर जून, 2015 में 'वेलेंटो' नाम से एक ऑनलाइन वेंचर शुरू किया। इसे शुरू करने के लिए तीनों ने खुद ही निवेश का इंतजाम किया। इस प्लेटफॉर्म के जरिए, वे कस्टमाइज्ड डिजाइनर टी-शर्ट्स बेचते थे। यह प्रयोग काफी सफल रहा और इसने उन्हें आगे काम करने की काफी हिम्मत दी। शुरूआत में तीनों मिलकर इसे नागपुर से ऑपरेट करते थे, लेकिन वहां के ईको-सिस्टम से सपोर्ट न मिलने की वजह से वे भोपाल आ गए। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन इस दौरान ही हर्शल के ऊपर परिवार का दबाव पड़ा और उन्हें रितेश का साथ छोड़कर नौकरी करनी पड़ी। नए प्रयोग के तौर पर रितेश ने भोपाल के स्ट्रीट वेंडर्स को एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए सॉफ्टवेयर बनाया, लेकिन उनका यह प्रयोग सफल नहीं रहा।
दूसरों की मदद को बनाया प्राथमिकता
भोपाल में अपना स्टार्टअप जमाने की मशक्कत के दौरान रितेश यहां के माहौल से परिचित हो गए और उन्होंने नए स्टार्टअप्स की मदद करने का फैसला लिया। रितेश कहते हैं कि लोगों के पास अच्छे आइडिया होते हैं लेकिन सही मार्गदर्शन के अभाव में वे सफल नहीं हो पाते। इस चुनौती से जीतने के लिए रितेश ने 25 सितम्बर, 2016 को 'स्टार्टअप स्पेस स्टेशन' नाम से इनक्यूबेशन सेंटर की शुरूआत की। इस श्रृंखला में उन्होंने पूरे भारत के निवेशकों का ध्यान भोपाल की ओर आकर्षित करने की कोशिश शुरू की। इस कोशिश को पहली बड़ी सफलता मिली, जब रितेश ने अपनी टीम के साथ मिलकर भोपाल में 'स्टार्टअप महाकुंभ' नाम से मई-2017 में एक बड़ा इवेंट आयोजित किया।
इसमें देश के 15 बड़े निवेशकों ने हिस्सा लिया। पूरे मध्य प्रदेश के स्टार्टअप्स इसमें शामिल हुए और एक स्टार्टअप को विजेता के तौर पर चुनकर उसे निवेश मुहैया कराया गया। मध्य प्रदेश के स्टार्टअप ईको-सिस्टम के लिए यह एक ऐतिहासिक इवेंट साबित हुआ। रितेश मानते हैं कि भोपाल जैसे शहर में ऐसा करना, बंजर जमीन पर फसल उगाने जितना चुनौतीपूर्ण था, लेकिन फिर भी लगातार प्रयासों से वह ऐसा करने में सफल हुए।
स्टार्टअप स्टेशन ने सबसे पहले भोपाल के ही मेडिक्लाउड और पूगली स्टार्टअप्स को सीड-फंडिंग के तौर पर 40 लाख रुपए दिलाए थे। इसके बाद रितेश अभी तक कुल 7 स्टार्टअप्स को फंडिंग उपलब्ध करा चुके हैं। हाल ही में आयोजित एक इवेंट में रितेश की मदद से ई-ट्रकेज (etruckage.com) नाम के स्टार्टअप को 2.5 करोड़ रुपयों का निवेश मिला है, जो कि एक ऑनलाइन लोडिंग सर्विस है।
'स्टार्टअप यूनिवर्सिटी' शुरू करने की योजना
भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए रितेश कहते हैं कि वह एक ग्लोबल लेवल का स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं और उसके आइडिया पर वह पिछले काफी वक्त से काम कर रहे हैं। इसके अलावा वह एक स्टार्टअप यूनिवर्सिटी शुरू करने की योजना भी बना रहे हैं। रितेश को उम्मीद है कि ये यूनिवर्सिटी 8-10 महीनों में शुरू हो जाएगी। रितेश का कहना है कि इनक्यूबेशन या स्टार्टअप काउंसलिंग के नाम पर लोग सिर्फ एक को-वर्किंग स्पेस की सुविधा उपलब्ध कराते हैं, जबकि वह चाहते हैं कि लोगों को स्टार्टअप शुरू करने और उसे लीड करने की पूरी मूलभूत जानकारी पहले ही से हो। यूनिवर्सिटी के माध्यम से वह इस अप्रोच को ही साकार करना चाहते हैं।
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