पहले राष्ट्र गान तब जनता का काम, एक महिला अधिकारी ने बदल दिया पूरे ज़िले में काम काज का तरीका
बिहार के वैशाली ज़िले में सरकारी दफ्तरों में नियम लागू...
सबसे पहले राष्ट्र गान फिर जनता का काम...
राष्ट्र गान में शामिल न होने वाले कर्मचारी के लिए ऑफिस का गेट बंद हो जाता है...
राष्ट्र गान का काम काज पर सकारात्मक असर दिख रहा है...
अकसर कहा जाता है कि व्यक्ति चाहे जिस भी रुप में काम करे, उसका सीधा असर देश पर पड़ता है। हालांकि लोगों को सीधे तौर पर यह दिखता नहीं पर सच यही है कि किसी न किसी स्थिति में उसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में असर देश पर पड़ता है। देश, व्यक्ति और समाज से ही मिलकर बनता है। हां, ये बात और है कि लोग अकसर देश को ध्यान में बाद में लाते हैं और खुद का ध्यान पहले करते हैं। लेकिन सीमा पर तैनात सैनिकों के अलावा कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें देश का ख्याल सबसे पहले होता है। उन्हें इस बात का अंदाजा होता है कि अगर हर कार्य से पहले देश की गरिमा, इज्जत, आन और बान को ध्यान में रखा जाए तो शायद बहुत सारी समस्याओं में कमी आने लगेगी। ऐसी ही हैं वैशाली की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) रचना पाटिल।
एक अनोखी शुरुआत के तहत वैशाली की डीएम ने जिला भर के सरकारी दफ्तरों में सराहनीय बदलाव किया है। लोकतंत्र की जननी वैशाली वर्ष 2016 में राष्ट्र गान और जनता के काम के तरीके में मौन क्रांति का गवाह बन रही है। रचना पाटिल ने ये सुनिश्चित करवाया है कि सरकारी दफ्तरों में कामकाज शुरू होने से पहले सारे कर्मचारी मिलकर राष्ट्रगान गाते हैं। इस अनोखे प्रयोग का क्रेडिट वैशाली की कलक्टर रचना पाटिल को जाता है। पूरे मुल्क में सरकारी दफ्तर में शायद ही ऐसा कोई दूसरा उदाहरण मिले,जहां किसी सरकारी कार्यालय में प्रतिदिन सबसे पहले सभी मिलकर ‘जन गण मन..’ गाते हों फिर लगती है हाजिरी। साथ ही लेटकमर्स के लिए दफ्तर का गेट बंद साथ ही बोर्ड पर रोज नया ‘थॉट्स आफ द डे’ । इसके बाद जनता-जनार्दन का काम । तेजी से सरकने लगी हैं फाइलें । कम हो रहीं हैं शिकायतें ।
अपने इस अनोखे प्रयोग से 2010 बैच की आईएएस अधिकारी वैशाली की डीएम रचना पाटिल भी खुश हैं। वो सकारात्मक बदलाव महसूस करती हैं । इस बाबत रचना पाटिल ने योरस्टोरी को बताया,
"मैं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में पली-बढ़ी । बचपन में स्कूल जाती थी,तो सबसे पहले प्रार्थना होती थी । हम सभी मिलकर ‘जन गण मन..’ गाते थे । आगे की जिंदगी में ऐसे मौके कम आते हैं । पर,जब मैं आईएएस बनी और वैशाली में कलेक्टर बनकर आई तो लगा कि राष्ट्रगान ‘जन गण मन..’ के दैनिक गायन से प्रतिदिन न सिर्फ हम अपने भीतर ऊर्जा का संचार कर सकते हैं बल्कि स्वयं को अनुशासित भी कर सकते हैं । इसलिए 1 जनवरी,2016 से वैशाली में इसकी शुरुआत कर दी।"
‘जन गण मन…’ के सामूहिक गायन के मौके पर कभी शामिल होने को आमंत्रित करती पाटिल कहती हैं,
"आपको देखकर अच्छा लगेगा कि कलेक्टरेट में कोई पांच सौ सरकारी कर्मचारी तय समय पर साथ मिलकर राष्ट्रगान को गा रहे हैं । यहां कोई बड़ा-छोटा नहीं होता । सभी के बोल साथ-साथ चलते हैं।"
कलेक्टरेट के बाद रचना पाटिल ने पूरे वैशाली के अधीनस्थ सरकारी दफ्तरों में भी इसे आवश्यक कर दिया है ।
रचना पाटिल कहती हैं कि ‘जन गण मन…’ की क्लास के कई फायदे मिले हैं ।
"समय से दफ्तर में हाजिरी बढ़ गई है । राष्ट्रगान के बाद लेटकमर्स के लिए गेट बंद कर दिए जाते हैं । फिर लेट आए कर्मी को कारण बताना होता है । समझ सकते हैं, रोज बहाने नहीं गढ़े जा सकते हैं।"
रचना पाटिल बताती हैं कि ‘थॉट्स आफ द डे’ को भी उन्होंने रोज के काम का हिस्सा बना लिया है । बोर्ड पर ‘आज का सुविचार’ कोई भी लिख सकता है। तैयार होकर आने वालों की संख्या बढ़ रही है ।
जिलाधिकारी की मानें,तो अधिकारी-कर्मचारी के बीच नए प्रयोग से न सिर्फ ‘कम्युनिकेशन गैप’ , बल्कि ‘मेंटल गैप’ भी कम हुआ है । हां,सही है कि इस दैनिक अभ्यास में थोड़ा वक्त लगता है । लेकिन आगे की हकीकत और बड़ी जीत यह है कि कार्यालय में काम का संस्कार बदल गया है । सभी निश्चित समय से अपने दफ्तर में होते हैं । काम तेजी से होने लगा है । पेंडिंग काम कम हुआ है । संचिकाओं के निष्पादन ने तेजी पकड़ ली है । आफिस से ‘बाबू’ के गायब होने की जनता की शिकायतें अब कम मिलती हैं ।
हां,’जन गण मन…’ के दैनिक गायन की सुखद दिनचर्या के अलावा रचना पाटिल ने सबों के लिए सरकारी ‘ड्रेस कोड’ को भी अनिवार्य कर दिया है । कैजुअल ड्रेस में आने की मनाही कर दी गई है । मतलब जिंस-टीशर्ट वैशाली के कलेक्टरेट में अब नहीं चलेगा । धोती-कुर्ता पर रोक नहीं है । रचना कहती हैं कि यह जरुरी है । आप काम करने को दफ्तर जा रहे हैं, तो फिर कैजुअल तो कुछ भी नहीं चलेगा । सब कुछ अनुशासित दिखना चाहिए । हां, ‘ड्रेस कोड’ को लेकर पीछे-पीछे कुछ मरमरिंग है,ऐसा हमें वैशाली से पता चलता है । लेकिन जब इस बाबत कलक्टर से पूछता हूं तो वे कहती हैं कि बदलाव बेहतरी के लिए है । आगे सबको अच्छा लगेगा। मैं स्वयं मानीटर करती हूं। बच्चे जब ड्रेस में स्कूल जाते हैं,तो आवश्यक काम करने को आप दफ्तर क्यों कैजुअली जायेंगे ?
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