'स्टोरकिंग', गांव के लाखों लोगों के लिए ऑनलाइन शॉपिंग का पहला अनुभव...
लंदन से आईटी और ई-काॅमर्स की पढ़ाई कर श्रीधर गुंडैया ने वर्ष 2012 की स्टोरकिंग की शुरुआतग्रामीण उपभोक्ताओं की सुविधा के लिये वेबसाइट को तमिल, कन्नड़ और मलयालम इत्यादि जैसी स्थानीय भाषाओं में किया तैयारगांवों की मौजूदा फुटकर दुकानों को अपने साथ जोड़ा और उपभोक्ताओं को आॅनलाइन शाॅपिंग के लिये किया प्रेरितफिलहाल 45 हजार कियोस्क के द्वारा प्रतिमाह 75 हजार से अधिक उपभोक्ताओं के आॅर्डर कर रहे हैं पूरे
कर्नाटक के एक सुदूर इलाके के एक छोटे से गांव से आने वाले छात्र ने जब चमकीले पीले रंग के जूते पहनकर काॅलेज में पहला कदम रखा था तब उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कुछ दिनों के बाद ही उसके 114 अन्य सहपाठी उसके जैसे जूते पहनकर काॅलेज आना प्रारंभ कर देंगे।
अब अगला तार्किक सवाल जो किसी के भी मस्तिष्क में आ सकता है वह होगा, ‘‘ आखिरकार सुदूर ग्रामीण इलाके में रहने वाले ये सैंकड़ों ग्रामीणों इन फैंसी जूतों तक अपनी पहुंच बनाने में कैसे कामयाब रहे? फ्लिपकार्ट, मंत्रा या जैबोंग?’’
बेशक जवाब ‘ना’ में है। एक ताजा अध्ययन बताता है कि हमारे देश में 91 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण उपभोक्ता अंग्रेजी में अपना पता तक लिखना नहीं जानते हैं, आॅनलाइन शाॅपिंग की तो बात ही अलग है। ऐसा सिर्फ इसलिये संभव हो पाया क्योंकि जिस ई-काॅमर्स वेबसाइट से उन्होंने इन जूतों को खरीदा था वह पूर्णतः उनकी अपनी भाषा कन्नड़ में संचालित होती थी।
बैंगलोर स्थित ई-काॅमर्स स्टार्टअप स्टोरकिंग ने स्थानीय भाषा की शक्ति का उपयोग करते हुए बीते तीन वर्षों में एक मिलियन से भी अधिक ग्रामीण उपभोक्ताओं को आॅनलाइन शाॅपिंग करने के समर्थ बनाया है।
स्टोरकिंग के संस्थापक और सीईओ श्रीधर गुंडैया कहते हैं, ‘‘हमें वास्तव में इसे तैयार करने की आवश्यकता थी। कुछ समय पहले हमारे द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण से हमें यह मालूम हुआ।’’
बीते दौर की बातें
बैंगलोर का रहना वाले इस युवा के लिये स्टार्टअप्स कोई अजूबी चीज नहीं हैं। लंदन के मशहूर ग्रीनविच विश्वविद्यालय से आईटी और ई-काॅमर्स के क्षेत्र में परस्नातक करने के बाद उन्होंने वर्ष 2007 में यूलोप नामक एक स्टार्टअप की स्थापना की थी। उनकी यह स्टार्टअप अपने उपभोक्ताओं को लोकेशन आधारित सेवाएं उपलब्ध करवाने वाली पहली भारतीय कंपनी थी। उन्होंने वर्ष 2009 में यूलोप को अलविदा कहा और भारत में जमीनी स्तर पर मौजूद समस्याओं का हल पाने की दिशा में प्रयास करने का फैसला किया।
प्रमुख क्षण
स्टोरकिंग की अवधारणा को अमली जामा पहनाने वाले क्षण के बारे में बात करते हुए श्रीधर कहते हैं, ‘‘पड़ोसी देश चीन की अपनी यात्रा के दौरान मैंने ध्यान दिया कि वे लोग आपस के प्रत्येक संवाद के लिये विशेष रूप से मंदारिन का प्रयोग करते हैं और मैं उनकी इस विशेषता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इस वजह से उनका हर काम बिल्कुल आसान और स्थानीय हो गया था। मैसेज करना, ई-काॅमर्स, ईमेलिंग .... यहां तक की सबकुछ।’’ आखिरकार वर्ष 2012 के प्रारंभ में स्टोरकिंग सपनों से उतरकर धरातल पर आया।
कैसे काम करता है?
स्टोरकिंग एक ई-काॅमर्स वेबसाइट है जिसकी सूची पर 50 हजार 500 से भी अधिक उत्पाद बिक्री के लिये मौजूद हैं। दूसरों से सह सिर्फ इस मायने में अलग है कि इसका समस्त यूज़र इंटरफेस अंग्रेजीभाषी नहीं है और फिलहाल यह तमिल, तेलगु, कन्नड़ और मलयालम भाषाओं में उपलब्ध है। हाल ही में इन्होंने गोवन भाषा को भी सफलतापूर्वक शामिल किया है।
श्रीधर आगे कहते हैं, ‘‘जैसा कि आप जानते हैं हमारे देश के गांवों में घरों के विशिष्ट पते नहीं होते हैं। असल में चिट्ठियां इत्यादि सबकुछ डाकिये द्वारा वितरित की जाती हैं और उसे अपने अनुभव के आधार पर सिर्फ प्राप्तकर्ता के पूरे नाम की आवश्यकता होती है। चूंकि हमें अंदाजा था कि सिर्फ पते के आधार पर वितरण का काम गांवों में सफल नहीं होगा इसलिये हमने अपने एक विशेष माॅडल की स्थापना की और उसे अपनाया।’’
यह स्टार्टअप गांव में तैनात किसी भी खुदरा दुकान के साथ संपर्क करता फिर चाहे वह स्थानीय मोबाइल रीचार्जिंग की दुकान हो या फिर किराने की दुकान। इसके बाद ये लोग उस दुकान संचालक को अपनी दुकान में स्टोरकिंग टैबलेट या कियोस्क खरीदकर उसे स्थापित करने के लिये तैयार करते। दुकानदार को उनकी इस डिवाइस को स्थापित करने के लिये अधिक निवेश भी नहीं करना पड़ता क्योंकि वे इसे सिर्फ 10 हजार रुपये में उनके लिये उपलब्ध करवा रहे थे।
श्रीधर कहते हैं, ‘‘हमारी कोशिश होती है कि हम गांव के प्रतिष्ठित दुकानदार को अपने साथ जोड़े जिसके पास लोग अपनी आवश्यक्ता की हर वस्तु खरीदने आते हों और वे लोग उस उत्पाद की पूरी कीमत चुकाने को भी तैयार हों।’’
दुकानदार खरीददारी के लिये आने वाले उपभोक्ता को आॅनलाइन शाॅपिंग का अनुभव बेहतरीन तरीके से करवाने के अलावा आवश्यक जांच-प्रक्रिया के दौरान भी उनकी पूरी मदद करते हैं। एक बार उपभोक्ता का आॅर्डर पुष्ट होने के बाद उन्हें दुकानदार को उतपाद के पूरे मूल्य का भुगतान करना होता है और बदले में तुरंत ही उनके मोबाइल पर उनके द्वारा चुनी गई स्थानीय भाषा में स्टोरकिंग द्वारा भेजा गया पुष्टि का एक एसएमएस प्राप्त होता है।
श्रीधर बताते हैं, ‘‘हम अपने उपभोक्ता की पहचान करने के लिये उनसे सिर्फ एक चीज की अपेक्षा करते हैं और वह है उनका फोन नंबर। इसके बाद हम वितरण इत्यादि से संबंधित प्रत्येक सूचना उनके द्वारा उपलब्ध करवाये गए मोबाइल नंबर पर साझा करते हैं।’’
बैंगलोर में अपने गोदाम के साथ संचालित होने वाला स्टोरकिंग उत्पाद वितरित करने के लिये एफएमजीसी वितरण चैनल का प्रयोग करते हुए आॅर्डर मिलने के 48 घंटों के भीतर उपभोक्ता के दरवाजे पर उत्पाद पहुंचाने का दावा करता है। चूंकि अभी ये अपने प्रारंभिक दौर में हैं और अभी बाजार में प्रतिस्पर्धी भी नहीं हैं इसलिये इन्हें उपभोक्ताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिये भारी छूट देने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। हाँ, इन्हें अपने खुदरा विक्रेताओं को प्रत्येक सौदे की एवज में 6 से 10 प्रतिशत तक का कमीशन जरूर देना पड़ता है।
श्रीधर आगे जोड़ते हैं, ‘‘यह हर किसी के लिये मुनाफे का सौदा है।’’
असल में भारतीय ग्रामीण उपभोक्ता क्या खरीदना पसंद करते हैं?
श्रीधर कहते हैं, ‘‘आप विश्वास नहीं करेंगे कि स्टोरकिंग पर सबसे अधिक बिकने वाला उत्पाद एंटी एजिंग क्रीम है। वे आते हैं और कहते हैं, ‘हम फलाने विज्ञापन की माधुरी दीक्षित के जैसे दिखना चाहते हैं।’ हमें इन क्रीमों के प्रतिदिन सैंकड़ों आॅर्डर मिलते हैं। इससे भी आगे, क्या आप गांव में एक ही घर में दो डिशवाशर होने की कल्पना कर सकते हैं? हमारे एक उपभोक्ता ने अपनी माँ और पत्नी दोनों को एक-एक डिशवाशर उपहार में दिया है।’’
इसके अलावा ग्रामीण उपभोक्ता भी अब समय के साथ चलने के मामले में किसी से पीछे नहीं है और वतमन में स्मार्टफोन की मांग बहुत करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिला है। विशेषकर आईफोन-6 के आर्डरों की तो जैसे बाढ़ ही आ गई है।
फिलहाल तक तो सब बढि़या है
पूरे दक्षिण भारत में स्टोरकिंग के 45 हजार कियोस्क का एक विस्तृत जाल फैला हुआ है जिसकी मदद से से वे प्रतिमाह 75 हजार से अधिक आॅर्डर का सफलतापूर्वक वितरण कर पा रहे हैं। हालांकि हमारे यहां न्यूनतम 500 रुपये का उतपाद मंगाना आवयक होता है लेकिन आमतौर पर औसतन उपभोक्ता 1200 रुपये का सामान आॅर्डर करते हैं।
अबतक इस कंपनी को कई दौर का निवेश भी प्राप्त हो चुका है और अबतक ये लक्ज़मबर्ग स्थित मैन्ग्रोव कैपिटल पार्टनर्स नामक वीसी फर्म से 6 मिलियन डाॅलर का निवेश प्राप्त करने में सफल रही है। उन्होंने हाल ही में दिसंबर 2014 में निवेश का सबसे हालिया दौर पाने में सफलता पाई थी।
भविष्य की योजनाएं
आने वाले कुछ महीनों में यह स्टार्टअप महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में विस्तार करते हुए इन राज्यों के ग्रामीण इलाकों के उपभोक्ताओं को लक्षित करेगी।
अंत में श्रीधर कहते हैं, ‘‘मेरा इरादा आने वाले कुछ वर्षों के भीतर 500 मिलियन लोगों तक अपनी पहुंच बनाने का है क्योंकि मुझे यकीन है कि जिस तरह से हम ग्रामीण क्षेत्रों के अंदरूनी इलाकों तक पहुंच सकते हैं फ्लिपकार्ट और अमेज़न उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।’’