स्टार्टअप चित्रकारी का: 4.76 अरब रुपए में बिकी एक पेंटिंग
पेंटिंग प्रोफेशन ही नहीं, सामाजिक सरोकार भी है। कौन कहता है कि आज पेंटिंग रोजगार का माध्यम नहीं। यूपी के शिवम गुप्ता हों, हरियाणा के हरिश्चंद्र अथवा चीन के चित्रकार जाओ वाउ-की, जिनको सिर्फ एक पेंटिंग से मिल गए 4.76 अरब रुपए।
कैनवास पर जब शिवम की कूंची चलती है तो एक संदेश भी देती है। उनकी छह चित्रकार साथियों की टीम है। पेंटिंग से उन सबको रोजगार मिल रहा है, कमाई हो रही है।
पेंटिंग को भी व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सकता है, यह बात जल्दी किसी के गले नहीं उतरती है। खासकर आज के युवाओं को इसमें कामयाबी की कोई बड़ी संभावना नजर नहीं आती है, जबकि इस कला को वैश्विक स्तर पर पहुंचाकर एक बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है। सच जानने के लिए यह सुनकर किसी को भी हैरत हो सकती है कि चीनी-फ्रांसीसी चित्रकार जाओ वाउ-की की एक पेंटिंग 4 अरब 76 करोड़ रुपए में बिक चुकी है, जो एशियाई कलाकारों द्वारा नीलामी में बेची गई अब तक की सबसे महंगी पेंटिंग रही है। सच ये भी है कि हर युवा ऐसा नहीं सोचता कि पेंटिंग को रोजगार का जरिया नहीं बनाया जा सकता है। कम-से-कम सिद्धार्थनगर (उ.प्र.) के युवा पेंटिंग प्रोफेशनल शिवम तो यही साबित कर रहे हैं।
एक सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी करते हुए शिवम ने पेंटिंग को ही अपने रोजगार का जरिया बना लिया है। आइए, पहले जानते हैं कि वह चित्रकार कौन है, जिसकी पेंटिंग नीलामी के दौरान पौने पांच अरब में खरीदी गई। वह हैं चीन के चित्रकार जओ वाउ-की। अब उनका नाम डे कूनिंग, मार्क रोथको और बार्नेट न्यूमैन जैसे समकालीन चित्रकारों की कतार में शुमार हो गया है। ताइवान के कारोबारी चांग क्यूयू डुन ने जाओ की पेंटिंग (शीर्षक-'जून-अक्तूबर 1985') 2.3 मिलियन डॉलर में खरीदी। खरीदार डुन पीएंडएफ ब्रदर इंडस्ट्रियल कॉर्प के मालिक हैं। बात काफी पहले की है, लेकिन है बड़े काम की। जओ की वह पेंटिंग बिकने के दौरान ही नीलामी में प्रदर्शित कुल दो सौ मिलियन डॉलर की कलाकृतियां बिकीं। उस नीलामी ने वैश्विक कला दृश्य के क्षेत्र में बढ़ते महत्व के नए आयाम स्थापित किए। चित्रकार जाओ का निधन हो चुका है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बीजिंग में पैदा हुए ज़ाओ को चीनी चित्रकला तकनीकों को संजोकर कर रखने के लिए जाना जाता है।
जाओ की इतनी महंगी पेंटिंग तो सिर्फ एक नजीर भर है। सिद्धार्थनगर के पर्ती बाजार निवासी शिवम गुप्ता गोरखपुर विश्वविद्यालय से चित्रकला में परास्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। उनके पिता प्रेम पुजारी इलेक्ट्रिक सामानों के दुकानदा हैं। मां शंकलावती गृहिणी हैं। शिवम को चित्रकारी का शौक बचपन से रहा है। वह पढ़ाई के साथ-साथ एक सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी भी करते हैं। सुबह पैसेंजर ट्रेन से गोरखपुर आने में तीन घंटे लगते हैं। इस समय का उपयोग वे स्केच बनाने में करते हैं। वे ज्यादातर पेंटिंग प्रकृति की सुंदरता पर ही बनाते हैं। पेंटिंग को पेशेवर तौर पर लेते हुए शिवम ने अपनी टीम बनाई है। उस टीम में दक्षिण भारत के भी कई एक युवा जुड़े हैं।
पत्रकार राजन राय लिखते हैं कि कैनवास पर जब शिवम की कूंची चलती है तो एक संदेश भी देती है। उनकी छह चित्रकार साथियों की टीम है। पेंटिंग से उन सबको रोजगार मिल रहा है, कमाई हो रही है। पेंटिंग को रोजगार बनाने में शिवम को सोशल मीडिया से मदद मिली है। उनके साथ जुड़ी वृशाली, रामपाल, हिमांशु, राम, प्रीति, मनिंद्रा, धर्मराज की टीम वेबसाइट और यू-ट्यूब पर पेंटिंग्स को अपलोड करती रहती है। यही वजह है कि शिवम को छह महीने में ही गोरखपुर, लखनऊ, दिल्ली और उड़ीसा से 87 आर्डर मिल चुके हैं। शिवम चाहते हैं कि उनकी टीम पूरी तरह प्रोफेशनल बने, इसके लिए वे दूसरे चित्रकारों के ग्रुप से भी संपर्क करने में जुटे हैं। शिवम अब तक सार्टक्लब डॉट कॉम पर तीन सौ से ज्यादा पेंटिंग पोस्ट कर चुके हैं, जिसे पांच लाख से ज्यादा लोगों ने पसंद किया है। ढाई हजार लोगों ने तो गहरी दिलचस्पी दिखाते हुए उस पर कमेंट भी किए हैं। पेंटिंग को पेशेवर बनाने के हुनर सिखाते हुए शिवम कहते हैं कि इस रोजगार में अपने हुनर, कलात्मक रुझान के अलावा और कोई ज्यादा खर्च भी नहीं आता है। पेंटिंग के लिए 299 रुपये में पेंसिल स्केच, 499 रुपये में कलर स्केच, 1000 रुपये में ऑयल पेंटिंग की शुरुआती जरूरत रहती है।
पेंटिंग सिर्फ पेशा नहीं, इसके अपने सामाजिक सरोकार भी होते हैं। अब देखिए न कि बिहार में मधुबनी के चित्रकारों ने रेलवे स्टेशन को अपनी पेंटिंग से सजाया तो उन्हें देश में पहले नंबर की पेंटिंग के खिताब से रेलवे ने नवाजा है। इसी तरह हिसार (हरियाणा) के डाबड़ा पुल पर उकेरी गई चित्रकार हरिचंद्र की पेंटिंग लोग मुग्ध होकर देख रहे हैं। उनकी चित्रकारी हिसार शहर की दीवारों पर सामाजिक संदेश देती रहती हैं। हरिचंद्र अपने चित्रों से बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, नारी सशक्तीकरण, खुले में शौच मुक्त और स्वच्छता के संदेश देते हैं। हरिचंद्र पूरे शहर में ऐसे चित्र बनाना चाहते हैं, मगर आर्थिक स्थिति बेहतर न होने के कारण वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। दुखद ये भी है कि इस काम में प्रशासन भी उनका साथ नहीं दे रहा है। फिर भी वह हौसला हारे नहीं हैं। ऐसा तब है, जबकि एडीसी कार्यालय और नगर निगम को सरकार स्वच्छता अभियान के तहत विज्ञापन के लिए लाखों रुपये दे रही है।
इस मद में स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 और 2019 में तीन करोड़ रुपये से ज्यादा मिले हैं। हैरानी की बात यह है कि निगम की सफाई शाखा को शहर के मुख्य एंट्री प्वाइंट से लेकर अन्य प्वाइंटों पर वॉल पेंटिंग करानी थी लेकिन निगम ने इस पैसे में से आज तक एक रुपये भी वॉल पेंटिंग पर खर्च नहीं किया है। हरिचंद्र बताते हैं कि वह मात्र पांचवीं क्लास तक पढ़े हैं। उन्होंने दिल्ली के मिश्रा आर्ट्स से पेंटिंग और जहांगीर पुरी से संगीत की शिक्षा ली है। अब वह जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में दोनों तरह की शिक्षा दे रहे हैं। उन्होंने लगभग तीन साल पहले अपने शहर के लिए कुछ करने का संकल्प लिया। पेंटिंग ब्रुश से शहर की बदसूरत दीवारों को खूबसूरत बनाने लगे, जिसको लोगों की भरपूर प्रशंसा मिलने लगी। इससे उन्हे जेब खर्च और साथियों की मदद से जज्बा भी मिला। आज सिरसा रोड से दिल्ली रोड, राजगढ़ रोड तक दीवारों पर उनकी पेंटिंग्स सामाजिक संदेश देती नजर आती हैं। हरिचंद्र कहते हैं कि वह प्रशासन से पैसा नहीं चाहते हैं, सिर्फ इतनी उम्मीद करते हैं कि वह उनको रंग आदि खरीदने में मददगार बने। मदद नहीं मिली तो वह लोन लेकर इस काम को रुकने नहीं देंगे।
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