सार्वजनिक जगहों पर शिक्षा प्रदान कर हज़ारों ग़रीब बच्चों की ज़िंदगी संवार रहा है मुंबई का एंजल एक्सप्रेस फाउंडेशन
एक सुबह मुंबई के काडर रोड घुमने निकली अनुभा शर्मा ने देखा कि एक जगह पर कुछ गरीब बच्चे बैठे हुए हैं और कुछ पढ़े लिखे बुजुर्ग लोग उन बच्चों को पढ़ा रहे हैं। पेशे से फाइनेंशियल प्रोफेशनल अनुभा ने जब जानकारी जुटाई तो उनको पता चला कि ये आस पास के स्लम में रहने वाले बच्चे हैं, जिनके माता पिता पढ़े लिखे नहीं हैं इस कारण ये बुजुर्ग लोग इन बच्चों की मदद कर रहे हैं। अनुभा इस बात से काफी प्रभावित हुई और वो भी इन बच्चों को पढाने लगीं। आज अनुभा शर्मा मुंबई में ‘एंजल एक्सप्रेस फाउंडेशन’ के जरिये स्लम में रहने वाले आठ सौ गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं। खास बात ये है कि ये उन बच्चों को सार्वजनिक जगहों पर पढ़ाती हैं। इन जगहों में पार्क, किसी मॉल के पास, स्कूल या कॉर्पोरेट ऑफिस के आसपास की खाली जगह या फिर वो कोई घूमने फिरने की जगह भी हो सकती है।
करीब 10 साल तक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम करने वाली अनुभा ने कुछ नीजि वजहों से साल 2011 में अपनी नौकरी से ब्रेक लिया। तभी उनकी नज़र ऐसे बच्चों पर पड़ी जो पढ़ना चाहते थे, लेकिन उनको पढ़ाने वाला कोई नहीं था। इस दौरान उनको पता चला कि स्कूलों में सही तरीके से पढाई ना होने के कारण 6-7 वीं के बच्चों को अंग्रेजी और गणित का बेसिक ज्ञान भी नहीं है। ये बच्चे बहुत ही गरीब परिवारों से आते थे। वही दूसरी ओर उनकी आर्थिक हालत इतनी खराब थी कि जनवरी के महीने में भी ये बच्चे हॉफ पेंट और टीशर्ट में आते थे, क्योंकि उनके पास गरम कपड़े नहीं थे। ये देखकर अनुभा ने उनकी मदद करने का फैसला किया और अपने फेसबुक अकाउंट में उन बच्चों की मदद के लिए रिकवेस्ट डाली। अनुभा बताती हैं ,
“10 दिनों के अंदर ही मेरे पास 3 हजार फोन आये, जो कि अलग अलग तरीके से उन बच्चों की मदद करना चाहते थे। तब मुझे इस बात का अहसास हुआ कि ऐसे काफी सारे लोग हैं जो ग़रीब बच्चों की मदद तो करना चाहते हैं, लेकिन उनको ये मालूम नहीं होता कि वो ये मदद कहां पर करें। इस बीच एक दिन उनको बीना अडवाणी का भी फोन आया, जो कि बच्चों के लिये स्कूल चलातीं थीं। इससे पहले हम एक दूसरे को जानते तक नहीं थे, लेकिन इसके बाद ऐसे जुड़े कि हम ने मिलकर अप्रैल, 2012 में ‘एंजल एक्सप्रेस फाउंडेशन’ की स्थापना की।
अनुभा ने अपने इस काम की शुरूआत मुंबई के बांद्रा बैंड स्टैंड से की। शुरूआत में उनके पास करीब 15 बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे, लेकिन अगले दो महीने के अंदर ही ये संख्या 80 तक पहुंच गई। इसके बाद उन्होने सांताक्रूज के एक पार्क में बच्चों को पढ़ना शुरू किया, जहां दो महीने के अंदर ही 150 बच्चे हो गये। उनके इस काम से प्रभावित होकर कई स्कूलों के प्रिसिंपल ने उनसे कहा कि वो बहुत अच्छा काम कर रही हैं और वो भी इस काम में उनकी मदद करना चाहते हैं। तब स्कूल वालों ने उनके वालंटियर को ट्रेनिंग देने का काम शुरू किया। साथ ही पीटीएम के माध्यम से उन्होने अपने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता पिता को उनके इस काम के बारे में बताया। तब कुछ बच्चों के माता पिता भी वालंटियर के रूप में काम करने लगे। धीरे धीरे आस पास के क्लब और दूसरी जगहों से भी लोग उनके साथ वालंटियर के तौर पर जुड़ने लगे। इस समय में ‘एंजल एक्सप्रेस फाउंडेशन’ के मुंबई में 8 सेंटर चल रहे हैं और जल्द ही 2 और सेंटर शुरू होने वाले हैं। फिलहाल जहां पर ‘एंजल एक्सप्रेस फाउंडेशन’ के सेंटर चल रहे हैं उनमें बांद्रा, सांताक्रूज, अंधेरी ईस्ट, जुहू, मलाड प्रमुख हैं।
अनुभा का कहना है कि “हमारे इस काम का सबसे बड़ा उद्देश्य था कि इस काम को करने के लिए लोग स्वेच्छा से आगे आयें और वालंटियर के रूप में काम करें। इन 4 सालों में कई वॉलनटियर आये और उनमें से कई आज भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं। हमारे इन वालंटियर में 70 साल से ज्यादा उम्र की महिलाएं भी हैं। जो कहती हैं कि हमारा घर पर समय ही नहीं कट रहा था, लेकिन अब हमें इतना अच्छा प्लेटफार्म मिल गया है।”
‘एंजल एक्सप्रेस फाउंडेशन’ के अलग अलग सेंटर में स्लम के इन बच्चों को स्कूली पढ़ाई नहीं कराई जाती। यहां पर सिर्फ सिर्फ गणित, अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान की जानकारी दी जाती है। वालंटियर के तौर पर इनके साथ ना सिर्फ बुजुर्ग लोग जुड़े हैं बल्कि स्कूल और कॉलेज के छात्र भी इन गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए आते हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए वालंटियर को क्लास के हिसाब से बांटा जाता है। जो बच्चे पढ़ने में कमजोर होते हैं उन पर कॉलेज के छात्र ज्यादा ध्यान देते हैं। जबकि दूसरे बच्चों को पढ़ाने का काम स्कूली बच्चे और बुजुर्ग लोग संभालते हैं। इनके यहां आने वाले बच्चे दूसरी कक्षा से लेकर 9 वीं कक्षा तक के होते है। ये लोग हफ्ते में 5 दिन कक्षाएं चलाते हैं, लेकिन अब कुछ कामकाजी लोग भी इनसे जुड़ रहे हैं और उनकी मांग पर ये कुछ जगहों पर शनिवार और रविवार के दिन भी कक्षाएं चलाते हैं। इनके साथ अब कई गायक भी जुडे हैं जो कि सांताक्रूज और अंधेरी में इन बच्चों को गाना सिखाते हैं। प्रतिभावान बच्चों का दाखिला ये स्कॉलरशिप के माध्यम से सिंगिंग स्कूलों में करा देते हैं।
अनुभा के मुताबिक “ये बच्चे गरीब घरों से आते हैं इसलिए ये सिर्फ घर से स्कूल ही जाते हैं। इसलिए हम इन बच्चों को समय समय पर पार्क, फिल्म, म्यूजियम, सर्कस, एम्यूजमेंट पार्क भी ले जाते हैं। इन बच्चों में इन 4 सालों में बहुत सुधार आया है पहले ये बच्चे साफ सफाई से भी नहीं रहते थे। साथ ही अपशब्दों का काफी इस्तेमाल करते थे, लेकिन आज इनके व्यवहार में परिवर्तन आ गया है और ये बच्चे साफ सफाई के साथ पहले से ज्यादा समझदार हो गये हैं। बच्चों में इस तरह के बदलाव से इन्हें पढाने वाले वॉलनटियर भी बहुत खुश हैं।”
वेबसाइट : www.angelxpress.org