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पर पीड़ा को हरने घर-बार बेचकर बनाया अस्पताल,खुद किराना दुकान चलाकर करते हैं गुज़ारा

हनुमान सहाय ने अस्पताल खोलने के लिए अपना पुश्तैनी घर बेच दिया...ज़मीन बेचदी... अस्पताल के निर्माण में अपनी कमाई भी लगाई...डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए काटे सरकारी दफ्तरों के चक्कर...उनकी मेहनत देखकर गाँववाले भी हुए जागरूक

पर पीड़ा को हरने घर-बार बेचकर बनाया अस्पताल,खुद किराना दुकान चलाकर करते हैं गुज़ारा

Monday January 04, 2016 , 4 min Read


समय, समाज और इतिहास उन लोगों को याद नहीं रखता, जो खुद के लिए ही जिये जाते हैं। इतिहास उन्हें याद रखता है जिनके पास सबकुछ होता है फिर भी वो अपना सर्वस्व देश पर न्यौछावन कर देते हैं। ऐसे लोगों को इस बात को खुद की चिंता नहीं होती। उनके सामने सिर्फ एक ही लक्ष्य होता है, कुछ ऐसा करना, जिससे दूसरों के चेहरे पर खुशी आए। हम आपकी मुलाकात एक ऐसे ही शख्स से कराने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने कारनामे से सबको चकित कर दिया। नाम है हनुमान सहाय। जयपुर से करीब 70 किमी दूर शाहपुरा कस्बे के पास के गाँव लुहाकना में, कहने को तो वे एक साधारण किराना दुकानदार, लेकिन सहाय ने जो काम किया वो वाकई असाधारण है। 

बात पांच साल पुरानी है। बिहार के पटना में दुकान चलाने वाले हनुमान सहाय अपने बीमार पिता जी को देखने अपने गांव आए थे। पड़ोस के घर की महिला प्रसव पीड़ा से छटपटा रही थी और दूर-दूर तक कोई अस्पताल नही था। साथ में वो भी अस्पताल पहुंचाने गए थे और महिला रास्ते भर चीखती रही थी। तब पिता जी ने भी कहा कि गांव में एक अस्पताल होता तो अच्छा होता। तभी हनुमान सहाय ने ठान लिया कि गांव में माता-पिता के नाम पर अस्पताल बनवाएँगे। बस ज़िद ये थी कि प्राईवेट अस्पताल नहीं बल्कि सरकारी अस्पताल होगा, जिसमें मुफ्त इलाज हो सके। योरस्टोरी को हनुमान सहाय ने बताया,

मेरा पुश्तैनी घर था जिसे मैंने बेच दिया। एक जयपुर में दुकान भी थी, वो भी बेच दी और फिर जमीन खरीद कर गांव में अस्पताल बनवाया। इसके लिए जयपुर में भी खूब चक्कर काटा। मदद के लिए अकसर मैं उस समय के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जनता दरबार में मिलने चला जाता था। उनके कहने पर मेडिकल विभाग ने भी सहयोग किया।
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काम तो अच्छा था पर इसके लिए पैसे कहाँ से आते। एक साधारण आदमी के लिए अस्पताल का ये सफर आसान नही था। सहाय के दिमाग में एक आइडिया कौंधा। आइडिया पर अमल करते हुए उन्होंने गांव से सटे शाहपुरा कस्बे में दिल्ली-जयपुर हाईवे पर एक हजार गज में बने पुश्तैनी मकान को 70 लाख रुपए में बेच दिया और बाकि के अपने पैसे मिलाकर अपने गांव में करीब एक करोड़ की लागत से अस्पताल खोला। अस्पताल में 27 कमरे हैं। डाक्टरों और नर्सिंग स्टाफ के लिए अलग से आवास है। पानी-बिजली की पूरी व्यवस्था है। अस्पताल बनकर तैयार तो हो गया पर इसमें इलाज के डॉक्टर कहाँ से आते। हनुमान सहाय की नि:स्वार्थ मेहनत को देखकर गांव वाले भी उनके साथ जुड़ने लगे। गांव वालों ने सरकार पर दबाव बनाया। 6 महीने से लगातार चिकित्सा विभाग के चक्कर काटने का नतीजा है कि राज्य सरकार की तरफ से डाक्टर और महिला डाक्टर की नियुक्ति का आश्वासन मिल गया है। चिकित्सा विभाग ने कहा है कि जल्द ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इसका उद्घाटन कर सकती हैं। गांव वाले हनुमान सहाय के इस समाजसेवी काम से बेहद खुश हैं। गांव के सरपंच दरियावद सिंह बताते हैं, 

ये जो हनुमान जी ने अभियान शुरु किया है गांव के लोग बहुत खुश हैं। हमने भी डाक्टर लगाने के लिए यहां इनके साथ जयपुर जाकर-जगह-जगह मुलाकात में इनका पूरा साथ दिया है। गांव में अस्पताल है इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।

इस अस्पताल के खुलने से आस पास के गांवों के करीब 25 हजार लोगों को लाभ मिलेगा और खासकर महिलाओं को। लोगों का कहना है कि बरसात में पानी आ जाए तो गांव पूरी तरह से कट जाता है। ऐसे में शहर जाना भी मुश्किल हो जाता है। गांव के स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर भगवत सिंह शेखावत हनुमान सहाय के इस कार्य को सबसे बड़ी समाज सेवा मानते हैं,

आजकल कौन करता है समाज के लिए इन्होंने तो अपना सबकुछ बेच दिया हम गांव वालों के लिए। हमलोग इनका अहसान कभी नही भूलेंगे। रोज स्कूटर से चले आते हैं अपने दुकान से और बैठकर अस्पताल बनवाते हैं...
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कहते हैं बड़ा काम वही करता है जिसकी सोच बड़ी होती है। हालांकि कई लोग बड़ा सोचते तो हैं पर उसको करने के लिए सही दिशा में कदम नहीं बढ़ाते हैं। ऐसे में हनुमान सहाय ऐसे तमाम लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जिन्होंने न सिर्फ बड़ा सपना देखा, बल्कि उसको अंजाम तक पहुंचाया। योर स्टोरी की तरफ से हनुमान सहाय के जज़्बे को सलाम।