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संगीत अश्लील नहीं होता शब्द अश्लील होते हैं : लता मंगेशकर

लता मंगेशकर को अश्लील गीतों से गुरेज आज से ही नहीं, बल्कि अपने कैरियर के शुरूआती दौर से था और कई बार तो उन्होंने गीतों के बोल ही बदलवा दिये।

संगीत अश्लील नहीं होता शब्द अश्लील होते हैं : लता मंगेशकर

Friday October 14, 2016 , 5 min Read

सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ अनुभवों को अपनी नयी किताब ‘लता मंगेशकर : ऐसा कहां से लाउं’ में समेटने वाली डोगरी कवयित्री और हिन्दी की मशहूर लेखिका पद्मा सचदेव ने ऐसे कई वाक्यात को कलमबद्ध किया है जब इस महान पाश्र्वगायिका ने गीतों के गिरते स्तर पर चिंता जताई । सत्तर के दशक में शंकर जयकिशन के साथ ‘आंखों आंखों में ’ के एक गीत की रिकार्डिंग थी लेकिन लता ने पंक्ति में ‘चोली’ शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति जताकर गाने से इनकार कर दिया । इसके बाद निर्माता जे ओमप्रकाश ने गाने के बोल ही बदलवा दिये।

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सात दशक से अधिक के अपने संगीतमय सफर में लता मंगेशकर ने अपने बनाये मानदंडों के साथ कभी समझौता नहीं किया ।

अश्लील गीतों के बारे में लता ने कहा ,‘‘ संगीत अश्लील नहीं होता, शब्द अश्लील होते हैं । कवियों को गीत के बोल चुनते समय सावधानी बरतनी चाहिये । कई गायक इस तरह के गीत गा लेते हैं लिहाजा मेरे अकेले के ना गाने से कोई फर्क नहीं पड़ता ।’’ उन्होंने उस दौर में अहमदाबाद में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था ,‘‘ जहां तक बन पड़ता है, मैं अश्लील गीत नहीं गाती । लेकिन मैं दूसरों को कैसे रोक सकती हूं।’’ किताब में मोहम्मद रफी, हेमंत कुमार, मन्ना डे, आशा भोसले, आर डी बर्मन जैसे कलाकारों के साथ रिकार्डिंग के अनुभव और आलोचनाओं पर लता के नजरिये को भी लेखिका ने पूरी शिद्दत से लिखा है।

अब भले ही किसी को यकीन ना हो लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब महीने भर रिहर्सल के बाद भी गाना लता से गवाया नहीं जाता था । इसका जिक्र करते हुए लता ने किताब में कहा है ,‘‘ जब मैं इंडस्ट्री में नई आई थी तब कितनी ही नामी गायिकायें थी । उन दिनों एक गाने की रिहर्सल महीने भर तक होती थी । इसके बाद भी गाना कोई और गा लेता था तो दुख होता था । पर कुछ कह नहीं सकते थे । जद्दोजहद के उस दौर में भी हौंसला बुलंद रहता ।’’ 

कर्नाटक शैली की महान गायिका एम एस सुब्बुलक्ष्मी से लता की मुलाकात का विवरण भी किताब में है । कोकिलकंठी सुब्बुलक्ष्मी मुंबई आई थी और लता उनसे मिलने गई । लता ने सुब्बुलक्ष्मी के बारे में कहा ,‘‘ उन्होंने मीरा के भजन इतने सुंदर गाये हैं कि उन्हें सुनने के लिये मैने मीरा फिल्म 15 बार देखी । वह ऐसी सुरीली हैं कि कहीं से भी आवाज उठा ले, सुर में ही उठती है ।’’ यही नहीं उस मुलाकात में लता ने सुब्बुलक्ष्मी से कर्नाटक संगीत सीखने की इच्छा भी जाहिर की थी। किशोर कुमार के साथ रिकार्डिंग के दौरान जहां मजाक मस्ती का आलम रहता तो रफी बहुत कम बोला करते थे ।

अपने दौर के कलाकारों की मुरीद लता ने कहा था ,‘‘ रफी साहब निहायत मुहज्जब आदमी हैं । कम बोलना उनकी आदत में शुमार है । मैने कितने अच्छे कलाकारों के साथ काम किया । गीतादत्त, गौहरबाई, शमशाद बेगम, राजकुमारी और भी कई । कितने सादा लोग थे लेकिन आज की पीढी में वैसे लोग नहीं हैं।’’ नूरजहां की प्रशंसक लता को शहंशाह ए गजल मेहदी हसन की शैली भी बहुत पसंद थी । मेहदी हसन जब मुंबई आये थे तब उन्होंने लता के हस्ताक्षर की हुई तस्वीर मांगी थी । किताब में 1971 के भारत . पाकिस्तान युद्ध के समय दिल्ली के रामलीला मैदान पर गाने के लिये तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लता मंगेशकर को न्यौते का भी जिक्र है । वहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू जब ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ सुनकर रो पड़े थे, उस कन्सर्ट का भी इसमें उल्लेख किया गया है ।

किताब में ‘ट्रैजेडी क्वीन’ मीना कुमारी के आखिरी वक्त में उनसे हुई मुलाकात का भी जिक्र है जब जिंदगी से खफा इस महान अभिनेत्री ने कुछ खास पल लता के साथ बांटे थे ।

मीना कुमारी ने लता से अपनी फिल्म ‘मेरे अपने’ देखने का आग्रह करते हुए कहा कि अब वे और काम नहीं करेंगी । कुछ दिनों बाद मीना कुमारी का इंतकाल हो गया और सेना के जवानों के लिये हुए एक कार्यक्रम में लता ने सबसे पहले उन्हीं की पसंदीदा फिल्म ‘‘पाकीजा’’ का गीत ‘इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा’ गाकर महान अभिनेत्री को श्रद्धांजलि दी थी ।

इसमें बिमल राय की फिल्म ‘बंदिनी’ के मशहूर गीत ‘ मोरा गोरा रंग लई ले’ की रिकार्डिंग का भी जिक्र है जो बतौर गीतकार गुलजार का पहला गीत था । लता ने जिस तरह से उसे गाया, उस पर गुलजार ने कहा ,‘‘ लताजी ने उतना इस दुनिया से लिया नहीं, जितना दिया है । दुनिया के पास शायद उन्हें देने के लिये कुछ है ही नहीं ।’’ इसमें एक घटना का जिक्र है जब उस्ताद बड़े गुलाम अली खान कहीं गा रहे थे और अचानक लता का एक गीत बजा । खान साहब ने गाना बंद कर दिया और आंखें बंद करके बैठ गए । गीत खत्म होने के बाद कहा ,‘‘ अजीब लड़की है। कमबख्त कभी बेसुरी नहीं होती। क्या अल्लाह की देन है।’

संपादकीय सहयोग- मोना पार्थसारथी

साभार : पीटीआई