क्या दुनिया घूमती हुई महसूस हो रही है? यह वर्टिगो हो सकता है
यदि ध्यान न दिया जाए, तो वर्टिगो जीवन को खराब कर सकता है. जो काम ज्यादातर लोग हल्के में लेते हैं, जैसे कि रोजाना के काम या खास मौके- किराना खरीदना, सफर करना, काम करना, दोस्तों और परिवार से मिलना, छुट्टियों पर जाना- वे वर्टिगो वाले लोगों के लिये बड़े मुश्किल हो सकते हैं.
भारत में 9.9 मिलियन (99 लाख) से ज्यादा लोगों को वर्टिगो (चक्कर) की समस्या है . लगभग हर किसी को अपने जीवन में चक्कर आने का अनुभव होता है, लेकिन वर्टिगो अलग है. यह संतुलन की एक समस्या है, जिसके कारण अचानक, असुखद सनसनी हो सकती है, जिससे लगता है कि मानो दुनिया घूम रही हो. इससे परेशानी होती है और यह चेतावनी के बिना हो सकता है और इसे केवल ‘चकराने वाले एक पल’ के तौर पर खारिज न किया जाना महत्वपूर्ण है.
यदि ध्यान न दिया जाए, तो वर्टिगो जीवन को खराब कर सकता है. जो काम ज्यादातर लोग हल्के में लेते हैं, जैसे कि रोजाना के काम या खास मौके- किराना खरीदना, सफर करना, काम करना, दोस्तों और परिवार से मिलना, छुट्टियों पर जाना- वे वर्टिगो वाले लोगों के लिये बड़े मुश्किल हो सकते हैं.
वर्टिगो के जाने-माने वैश्विक विशेषज्ञ डॉ. माइकल स्ट्रप, प्रोफेसर – न्यूरोलॉजी, डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी, जर्मन सेंटर फॉर वर्टिगो एण्ड बैलेंस डिसऑर्डर्स और हॉस्पिटल ऑफ द लुडविग मैक्जीमिलियन्स यूनिवर्सिटी, म्युनिख, जर्मनी ने कहा, “वर्टिगो से दुनिया के 10 में से 1 व्यक्ति प्रभावित है, फिर भी इसके निदान में चुनौतियाँ हैं, जो इलाज पाने का सफर लंबा और कठिन बनाती हैं. इतनी मौजूदगी के बावजूद इस पर जागरूकता की कमी है, मरीजों और डॉक्टरों, दोनों में[i]. लेकिन सही निदान होने पर इसका इलाज किया जा सकता है.”
डॉ. स्ट्रप ने आगे कहा, “इलाज से लक्षणों में सुधार हो सकता है, लेकिन वर्टिगो के मरीज अक्सर बताये गये इलाज पर नहीं चलते हैं. इससे लक्षणों की वापसी हो सकती है. हमें बताया गया कि इलाज लेते हुए इस पर काबू करने और इसके संकेतों पर जागरूकता बढ़ानी चाहिये, ताकि लोग वर्टिगो को नियंत्रण में रखने के लिये जरूरी सहयोग ले सकें.”
वर्टिगो की समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन बुजुर्गों में यह समस्या सबसे आमतौर पर देखी जाती है. 60 साल से ज्यादा उम्र के लगभग 30% और 85 साल से ज्यादा उम्र के 50% लोग वर्टिगो और चक्कर का अनुभव करते हैं. भारत की बुजुर्ग आबादी (60 साल और ज्यादा) 2031 तक 194 मिलियन पहुंचने की संभावना है. वर्टिगो खतरनाक नहीं है, लेकिन अचानक आया अटैक चेतावनी हो सकता है और गिरने तथा हड्डियाँ टूटने का जोखिम बढ़ा सकता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता काफी प्रभावित हो सकती है. गिरने के डर से मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे कि चिंता और डिप्रेशन तथा घबराहट, जिससे सेहत बिगड़ सकती है. बुजुर्गों को ऐसी स्थितियों में फंसने का डर भी हो सकता है, जहाँ से निकलना मुश्किल हो या जहाँ से मदद न मिले.
इसके अलावा, वर्टिगो महिलाओं में ज्यादा आम है और उन्हें पुरूषों की तुलना में वर्टिगो से दो से तीन गुना ज्यादा पीड़ित होने की संभावना रहती है. इसका कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह हॉर्मोन के प्रभावों से हो सकता है. एक महिला के जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में हॉर्मोन का ज्यादा उतार-चढ़ाव वर्टिगो का कारण बन सकता है. उदाहरण के लिये, कुछ महिलाएं अपने मासिक धर्म से पहले वर्टिगो की घटनाएं बढ़ने की सूचना देती हैं. रजोनिवृत्ति के दौरान भी महिलाओं के हॉर्मोन में उतार-चढ़ाव होते हैं, जिससे माइग्रेन हो सकता है. वर्टिगो का माइग्रेन से मजबूत सम्बंध है, लेकिन यह वर्टिगो का लैंगिक भेदभाव समझा सकता है.
एबॅट इंडिया के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. जेजॉय करनकुमार ने कहा, “वर्टिगो का एक इंसान की रोजाना की जिन्दगी पर बड़ा असर हो सकता है, यह जिन्दगी को पूरी शिद्दत से जीने में आड़े आता है. एबॅट में हमारा लक्ष्य है लोगों को वर्टिगो के शीघ्र निदान से मदद देना, ताकि वे जरूरी देखभाल करवा सकें और जीवन में आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें. लोगों को उनके स्वास्थ्य पर नियंत्रण हेतु सशक्त करने के लिये एबॅट नैदानिक टूल्स तक पहुँच के साथ वर्टिगो के निदान में सुधार की दिशा में सक्रिय होकर काम कर रही है. हम डॉक्टरों को कार्यशालाओं से जोड़ते हैं, ताकि वे इस बीमारी और इसे ठीक करने के तरीकों पर शिक्षित हों. इसमें एक रोबोटिक हेड आता है, जो सिर और आँख की गति के आधार पर इस बीमारी को बेहतर ढंग से समझने में डॉक्टरों की मदद करता है.”
वर्टिगो से कुंठा हो सकती है, जिसका कारण अनिश्चितता और नियंत्रण का अभाव है. और तो और, यह दूसरी चुनौतियाँ भी दे सकता है, जैसे कि याददाश्त की कमी या ‘ब्रेन फॉग’, जिसमें इंसान की स्पष्ट तरीके से सोचने, एकाग्र रहने या जानकारी को याद रखने की योग्यता प्रभावित होती है. , वर्टिगो इंसान की जिन्दगी के विभिन्न पहलूओं को भी प्रभावित करता है और आत्मनिर्भरता जाने का कारण बनता है, जिससे रोजाना की गतिविधियाँ बाधित होती हैं. यह स्थिति कामकाजी लोगों पर भी असर डालती है और आर्थिक परेशानियाँ खड़ी कर सकती है, जैसे कि काम के दिनों में कमी, नौकरी बदलना या काम पूरी तरह से छोड़ देना.
वर्टिगो को मैनेज किया जा सकता है. कारण पता चलने के बाद डॉक्टर इसके इलाज के तरीके बताते हैं, ताकि लंबे वक्त तक राहत मिल सके. इसमें फिजिकल थेरैपी, दवाएं, साइकोथेरैपी या कुछ मामलों में सर्जरी भी हो सकती है और यह लक्षणों की गंभीरता पर निर्भर करता है. वर्टिगो पर सही नियंत्रण के लिये लोगों को अपने डॉक्टर की सलाह माननी चाहिये और दवाओं के शेड्यूल पर रहना चाहिये, ताकि जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके. बीमारी बढ़ाने वाली उन बातों को समझना भी लोगों और उनके प्रियजनों की मदद कर सकता है, जिनसे अटैक बढ़ते हैं और इसके लिये जीवनशैली में बदलाव किये जा सकते हैं, जैसे कि शरीर या गर्दन को अचानक से कुछ निश्चित गतियाँ देने से बचना.
वर्टिगो के लक्षणों का इलाज हो सकता है, ताकि आप फिर से अपनी पसंद के काम कर सकें.
Edited by रविकांत पारीक