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महिला साझेदारी वाली स्टार्टअप कंपनियां फंडिंग जुटाने में नंबर वन

महिला साझेदारी वाली स्टार्टअप कंपनियां फंडिंग जुटाने में नंबर वन

Wednesday October 09, 2019 , 5 min Read

जेंडर के नजरिए से फोकस एक स्टडी में पता चला है कि केवल पुरुष अथवा केवल महिला फाउंडर्स वाले स्टार्टअप की तुलना में, वे स्टार्टअप कंपनियां फंडिंग जुटाने में नंबर वन हैं, जिनकी फाउंडर टीम में महिला और पुरुष, दोनो जेंडर के साझीदार हैं। अमेरिकी मैग्जीन फॉर्च्यून की ताज़ा सालाना लिस्ट में दो भारतीयों में एक जिलिंगो की सीईओ एवं को-फाउंडर अंकिती बोस भी हैं।"

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सांकेतिक फोटो (Shutterstock)

कुफमैन फोलो रिसर्च सेंटर ने दो साल तक शोध के बाद निष्कर्ष निकाला है कि ऐसी कंपनियां, जिनके संस्थापकों में कम से कम एक भी महिला शामिल हो, उसे आसानी से फंडिंग हो जा रही है। ऐसी स्टार्टअप कंपनिया 2.3 करोड़ डालर का निवेश हासिल कर चुकी हैं। जो स्टार्टअ कंपनियां सिर्फ पुरुष संस्थापकों ने स्थापित की हैं, उनको औसतन 1.8 करोड़ डॉलर तक ही फंड मिला है। वर्ष 2001 से 2018 तक को स्टार्टअप अध्ययन आधार वर्ष लक्ष्य कर 90 हजार अमेरिकी निवेशक कंपनियों की स्टडी में पता चला है कि महिला संस्थापकों वाले स्टार्टअप पर निवेशकों को ज्यादा भरोसा रहता है। जहां तक भारत की बात है, स्टार्टअप कंपनियों में महिलाओं की कम साझेदारी पाई गई है। 


स्टडी के मुताबिक, हमारे देश में मात्र 22 प्रतिशत स्टार्टअप के संस्थापकों में महिलाएं शामिल पाई गई हैं। इस अध्ययन में एक बात और सामने आई है कि जिन स्टार्टअप में सिर्फ महिलाएं संस्थापक हैं, उन्हे भी फंड जुटाने में दिक्कतों से रूबरू होना पड़ा है। कुफमैन फेलो फंड ऑर्गनाइजेश के सह-संस्थापक कोलिन वेस्ट के मुताबिक, पिछले साल 2018 में स्टार्टअप को कुल 130 अरब डॉलर की फंडिंग हुई थी, जिसमें से महिलाओं के स्टार्टअप को मात्र 2.2 प्रतिशत फंडिंग मिली।


बहुत कम ऐसी महिला उद्यमी हैं, जिनके स्टार्टअप का सफल ट्रैक रिकार्ड सामने आया है। उन स्टार्टअप कंपनियों को फंडिंग जुटाने के साथ ही अपना बेहतर ट्रैक रिकार्ड कवर करने में आसानी देखी गई है, जिनमें महिला साझीदार हैं।





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Zilingo की फाउंडर अंकिती बोस

अमेरिकी मैगजीन फॉर्च्यून ने अपनी ताज़ा सालाना लिस्ट में, बिजनस क्षेत्र में 40 साल से कम उम्र के 40 प्रभावशाली लोगों में जिन दो भारतीयों को शामिल किया है, उनमें एक सफल फैशन स्टार्टअप जिलिंगो की सीईओ एवं को-फाउंडर अंकिती बोस भी हैं।


बोस के आठ देशों में सक्रिय इस स्टार्टअप में 600 कर्मचारी कार्यरत हैं। इस समय उनकी कंपनी की वैल्यू करीब 97 करोड़ डॉलर है। फॉर्च्यून की इस ताज़ा स्टडी लिस्ट में शामिल 40 युवाओं में 19 महिलाएं हैं। इनमें अमेजन की वॉइस यूजर इंटरफेस डिजायनर अलीसन एटवेल, पेप्सीको के बबली ब्रांड की डायरेक्टर ऑफ मार्केटिंग मैरिसा बार्टनिंग भी शामिल हैं। जिलिंगो ने फरवरी में 1604.6 करोड़ रुपए की फंडिंग जुटाई थी। 


पिछले साल तक एक अरब डॉलर वैल्यूएशन वाले दुनिया के स्टार्टअप में से सिर्फ 10 प्रतिशत की फाउंडर महिलाएं रही हैं। अंकिति बोस इस क्लब में शामिल होने के निकट हैं। इससे पहले वर्ष 2018 में फॉर्च्यून मैग्जीन की लिस्ट में भारतीय मूल की तीन उद्यमी महिलाओं चालीस साल से कम उम्र की दिव्या सूर्यदेवरा, अंजलि सूद और अनु दुग्गल के नाम शामिल रहे थे।


वर्ष 2017 में फॉर्च्यून मैग्जीन की लिस्ट में दो भारतीय महिलाओं, आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर और एक्सिस बैंक की प्रमुख शिखा शर्मा का नाम सुर्खियों में रहा था। पिछले महीने जारी फॉर्च्यून इंडिया की गई टॉप-50 सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में अनुष्का शर्मा का नाम शामिल रहा है। 




बिजटोर मीडिया प्लेटफार्म की ओर से जारी देश की शीर्ष 50 वुमन स्टार्टअप एंटरप्रेन्योर्स की सूची में जयपुर की फिनोवा केपिटल की संस्थापक सुनीता साहनी को भी शामिल किया जा चुका है। वह सूची फंडिंग जुटा रही स्टार्टअप कंपनियों पर फोकस रही। इन सभी 50 महिला उद्यमियों ने सीड, एंजल, सीरिज ए और सीरिज बी के माध्यम से अपनी कंपनियों के लिए फंडिंग जुटाई। फिनोवा केपिटल एमएसएमई को मिड टिकट साइज कर्ज देती है। इसने सिक्योइया केपिटल और फेयरिग केपिटल से 15 मिलीयन डॉलर की राशि जुटाई है।


फंडिंग में इस अंतर के बावजूद बीते पांच साल के पीरियड में महिलाओं के स्टार्टअप ने 10 फीसदी ज्यादा रेवेन्यू कमाया है। महिलाओं के स्टार्टअप ने हर एक डॉलर पर 78 सेंट्स कमाया है जबकि पुरुषों के स्टार्टअप 31 सेंट्स कमाया है। महिलाओं के स्टार्टअप ने ज्यादा पैसा कमाया है। फंडिंग का यह फर्क क्वालिटी की वजह से न होकर जेंडर के कारण अधिक है।


दूसरी तरफ, फोर्ब्स द्वारा दुनिया की 25वीं सबसे शक्तिशाली महिला के रूप में सूचीबद्ध भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य कहती हैं कि यह मान्यता कि महिलाएं पैसे का रखरखाव ठीक से नहीं कर सकतीं, गलत है और इसे बदलने की जरूरत है। यह इसलिए जरूरी है, ताकि देश में अधिक महिला उद्यमी उभरकर सामने आ सकें।


उन्होंने कहा,

'उद्यमियों को कारोबार में इक्विटी की जरूरत होती है। पुरुषों के लिए इससे पूंजी जुटाना अधिक आसान होता है, भले ही महिलाएं ऋ ण चुकाने में पुरुषों से बेहतर हैं। युवा कह रहे हैं कि हम लोग 300 प्रतिशत, 500 प्रतिशत हासिल कर लेंगे। मैंने कभी नहीं देखा कि एक महिला ऐसा कर रही है। ऐसा करने से आपको पैसे नहीं मिल जाते हैं। यदि आप फंडिंग की खाई को देखें तो एक कारण गारंटी का है। यह महिलाओं के लिए हमेशा एक समस्या रही है। इक्विटी और गारंटी अथवा रेहन, यही वो चीजें हैं, जो वास्तव में महिला उद्यमियों के लिए फंडिंग की कमी का कारण बनते हैं।'