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मिलिए देश की उन पहली महिलाओं से, जो अण्डरग्राउण्ड माइंस में मैनेजर लेवल पर कर रही हैं काम

संध्या रासकतला और योगेश्वरी राणे- भूमितगत खदानों में मैनेजर स्तर पर नियुक्ति पाने वाली देश की पहली महिलाएं हैं। ये हिंदुस्तान जिंक की एक भूमिगत खदान में तैनात हैं। उन्होंने प्रचलित धारणाओं को तोड़ने और पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्र में अपनी जगह बनाने को लेकर बात की।

मिलिए देश की उन पहली महिलाओं से, जो अण्डरग्राउण्ड माइंस में मैनेजर लेवल पर कर रही हैं काम

Wednesday May 12, 2021 , 7 min Read

संध्या रासकतला ने पिछले महीने ही एक इतिहास बनाया, जब उन्हें हिंदुस्तान जिंक ने अब तक की पहली महिला भूमिगत खदान मैनेजर के तौर पर नियुक्त किया। हिंदस्तान जिंक, जिंक-लेड और सिल्वर की सबसे बड़ी उत्पाद कंपनियों में से एक है। सांध्या को कंपनी की राजस्थान स्थित जवारमाला खदान में खदान प्रबंधक (माइन मैनेजर) की भूमिका दी गई है।


हिंदुस्तान जिंक में उनकी सहयोगी, योगेश्वरी राणे को राजस्थान स्थित कायाड माइन में प्लानिंग एंड डिवेलपमेंट डिपार्टमेंट का हेड बनाया है। इन दोनों ने अपरंपरागत और पुरुष-दबदबे वाली भूमिकाओं में जगह बनाई और इनकी उपलब्धि महिलाओं के लिए दोहरे सम्मान की बात है।


(योगेश्वरी राणे के साथ इंटरव्यू)


संध्या और योगेश्वरी दोनों ने सेकेंड क्लास माइन मैनेजर और फर्स्ट क्लास माइन मैनेजर के सर्टिफिकेट हासिल किए हैं। इसके जरिए अब वो उस क्षेत्र में पैर जमाने जा रही है, जहां 'अभी तक किसी दूसरी भारतीय महिला ने पैर नहीं रखे थे।' यह क्षेत्र है- भूमिगत खदानों के ऑपरेशन को देखना।


खनन का क्षेत्र अभी भी महिलाओं के लिए एक दुर्लभ क्षेत्र बना हुआ है। हालांकि संध्या और योगेश्वरी की उपलब्धि का मार्त 2019 में प्रशस्त हुआ, जब खनन अधिनियम 1952 में ऐतिहासिक संशोधन किए गए। इस संशोधन ने यह साफ किया कि जरूरी सर्टिफिकेट हासिल करने के बाद महिलाएं भी अब खदान में काम कर सकती हैं, फिर चाहे वो खदान जमीन के नीचे हो या फिर ऊपर। 


YourStory के साथ एक इंटरव्यू में, संध्या रासकतला और योगेश्वरी राणे ने अपनी उपलब्धियों के बारे में बात की और एक पुरुष-प्रधान पेशे में करियर और भविष्य की अपनी योजनाओं के बारे में बताया।

संध्या रासकतला, अण्डरग्राउण्ड माइन मैनेजर, जावरमाला माइन

संध्या रासकतला

संध्या अपनी उपलब्धि के बारे में बताते हुए बातचीत शुरू करती हैं और कहती हैं, "मेरे लिए यह गर्व का क्षण था और मेरी पहली प्रतिक्रिया हैरानी और आश्चर्य की थी।"


महज 23 साल की छोटी सी उम्र में यह सम्मान पाना मेरे लिए फक्र की बात थी और वह इसका श्रेय अपने परिवार से मिलने वाले पूर्ण समर्थन को देती है। संध्या के पिता तेलंगाना के सिंगरेनी कोल माइंस में एक खनन इंजीनियर थे। ऐसे में संध्या एक खदान क्षेत्र में ही पली-बढी थीं।


उन्होंने बताया, “बारहवीं कक्षा के बाद, मेरा मन कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का था। लेकिन मेरे चाचा ने मुझे खनन इंजीनियरिंग का सुझाव दिया और कहा कि यह भी एक अच्छा विकल्प है। हालांकि ऐसे भी लोग थे जिन्होंने मुझे यह कहते हुए इससे दूर रहने की सलाह दी कि खनन केवल पुरुषों का क्षेत्र है। मैंने इसे चुनौती के रूप में लिया और कोठागुडेम स्कूल ऑफ माइंस में दाखिला लिया।"


उनका बैच कॉलेज में खनन इंजीनियरिंग का सिर्फ दूसरा बैच था और उसमें सिर्फ कुछ लड़कियों ने ही दाखिला लिया था। पढ़ाई के दूसरे साल में कई लड़कियां दूसरे कोर्स में ट्रांसफर लेकर चली गईं, लेकिन संध्या एक खनन इंजीनियर बनने के अपने फैसले पर अडिग थीं। 2018 में, कैंपस प्लेसमेंट के जरिए उन्हें हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में नौकरी मिल गई।


वह बताती हैं, “उस समय, भूमिगत खदान में फोरमैन के रूप या फिर शिफ्ट-इंचार्ज के रूप में काम करने का कोई विकल्प नहीं था। हालांकि 2019 में हुए कानून संशोधनों ने सब बदल दिया, और जल्द ही मैंने उत्पादन और यूटिलिटी में अनुभव हासिल करने के लिए भूमिगत खदान में जाना शुरू कर दिया।


राजस्थान में जावरमाला माइन में तैनात संध्या भूमिगत खदान में जाने को लेकर काफी उत्साहित थीं। हालांकि यह उनके लिए पहली बार नहीं था। वह अक्सर अपने पिता के साथ सिंगरैनी में भूमिगत खदान पर जाती थीं और पढ़ाई के दौरान भी वह कई बार जा चुकी थीं।


एक अंडरग्राउंड माइन मैनेजर के रूप में, संध्या की भूमिका विभिन्न शिफ्टों में भूमिगत खदान में नियमित तौर पर जाना, श्रमिकों और कर्मचारियों के साथ बातचीत करना, और काम से जुड़ी नई तकनीकों को सीखना शामिल है।

वह आगे कहती हैं, "खदानें पूरी तरह से विभिन्न प्रवेश विधियों के साथ मशीनीकृत हैं। इनमें शाफ्ट, रैंप, केज, आदि शामिल है। उत्पादन ड्रिलिंग उपकरण भी काफी आधुनिक हैं और हर दिन एक नया सीखने का अनुभव होता है।"

खदान में काम करना शारीरिक और मानसिक रूप से कठिन हो सकता है। ऐसे में संध्या की सबसे बड़ी चुनौती दूसरों को यह समझाने की रही है कि वह इस कार्य के लिए तैयार है। प्रचलित धारणाओं को तोड़ना मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं है।


वह युवा लड़कियों को गैर-परंपरागत भूमिकाओं के लिए कोशिश करने और हर काम को एक चुनौती के रूप में लेने की सलाह देती हैं। वह एक खनन कंपनी की पहली महिला सीईओ बनने की ख्वाहिश रखती हैं और वह यूपीएससी परीक्षाओं की भी तैयारी करती हैं। खैर उनकी जो भी करने की योचना हो, इतना तो तय है उड़ने वाले के लिए आसमान भी छोटा पड़ सकता है।

योगेश्वरी राणे, कायड माइन में प्लानिंग एंड डिवेलपमेंट डिपार्टमेंट की हेड 

योगेश्वरी राणे

योगेश्वरी का बचपन गोवा में खदानों के चारों ओर बीता है। वह हमेशा से इसके प्रति आकर्षित थीं और यह जानने में दिलचस्पी रखती थी कि बहुमूल्य खनिजों की खान के लिए एक विशाल पहाड़ी की खुदाई कैसे की गई होगी।


बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका भाग्य भी साथ दिया और वह गोवा इंजीनियरिंग कॉलेज में वेदांत के सहयोग से खनन इंजीनियरिंग की डिग्री की पढ़ाई करने लगीं।


वह कहती हैं, “मैं हमेशा से कुछ अनोखा, रोमांचक और चुनौतीपूर्ण करना चाहती था। शुरू में मैंने सिविल या मैकेनिकल इंजीनियरिंग के बारे में सोचा था, लेकिन जब खनन की पढ़ाई शुरू किया, तो मुझे पूरा यकीन हो गया कि मैं यही करना चाहती हूं।"


जब उन्होंने अपने माता-पिता, प्रोफेसरों और दूसरे लोगों के साथ करियर के विकल्पों पर चर्चा की, तो उन्होंने योगेश्वरी को यह कहते हुए मना कर दिया कि यह क्षेत्र महिलाओं के लिए नही है।


"इससे मेरा निर्णय और भी मजबूत हो गया और मैं पुरानी रूढ़ियों को तोड़ना चाहती थी। मैंने जोखिम उठाने का फैसला किया और पहले साल के अंत तक, मुझे इसमें मजा आने लगा। मैंने खदानों में जाना शुरू किया और अपने बैच में भी टॉप किया।


वह उन तीन लड़कियों में से एक थीं जिन्हें कोर्स पूरा करने के बाद वेदांता में रखा गया था।


योगेश्वरी ग्रैजुएट इंजीनियर ट्रेनिंग के रूप में शामिल हुईं और तीन साल तक गोवा में खुली कास्ट खदानों में विभिन्न विभागों में काम किया। इसमें प्लानिंग, ऑपरेशन, कंट्रोल रूम इंचार्ज आदि शामिल हैं।


जब गोवा में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो उन्हें हिंदुस्तान जिंक में स्थानांतरित कर दिया गया और तब पहली बार उन्होंने एक भूमिगत खदान में काम करने के लिए गोवा छोड़ा।


वह राजस्थान में रामपुर अगुचा माइंस चली गईं और वर्तमान में राज्य के कायादी माइंस में काम करती हैं।

योगेश्वरी कहती हैं, “खदान अधिनियम में संशोधन से महिलाओं को शाम 7 बजे तक भूमिगत खदान में काम करने की इजाजत मिल गई। मैंने प्लानिंग से ऑपरेशंस में ट्रांसफर लिया और सुबह 6 बजे से शुरू होने वाले शिफ्ट में काम करना शुरू किया। मेरा काम मशीनों के लिए मैनपावर और पूरे शिफ्ट के दौरान संसाधनों की मदद से मजदूरों को मुहैया कराना था।"

संध्या का मानना है कि जब आपको शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से मजबूत होते हैं तो आप अंततः चीजों को सीखते हैं और यह आपके द्वारा हर दिन प्राप्त होने वाले अनुभव के बारे में है।


वह कहती हैं कि उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों को उन पर विश्वास दिलाने की रही है। वह कहती हैं, "लोग आमतौर पर आपको किसी भी "मुश्किल" नौकरी को लेकर आपपर भरोसा नहीं करते हैं। लेकिन एक बार जब आप उन्हें विश्वास दिला देते हैं कि आप कुछ भी संभाल सकते हैं, तो वे आपको और बड़े काम देते जाते हैं।”


जहां तक उनकी खास उपलब्धि की बात है तो, संध्या इसे लेकर बहुत खुश हैं। वह कहती हैं, “मैं पिछले पांच वर्षों से इस इंडस्ट्री में काम कर रही हूं और कड़ी मेहनत करने और इन सर्टिफिकेट्स को हासिल करने के मौके का इंतजार रही थी।”


उनकी बहुत सारी योजनाएं हैं, लेकिन वह एक समय में सिर्फ एक पर ध्यान केंद्रित करना पसंद करती है। फिर जब वह काम नहीं करता है, तब वह प्लान बी और फिर प्लान सी पर ध्यान केंद्रित करती हैं। फिलहाल उनका ध्यान अपने काम से हिंदुस्तान जिंक के शीर्ष प्रबंधन में जगह बनाने का है।