बिहार पुलिस ने किया देश की पहली आदिवासी महिला बटालियन का गठन, फिलहाल सक्रिय तौर पर सेवाएँ दे रही हैं 675 महिला कांस्टेबल
भारत में पहली बार पुलिस में आदिवासी महिला बटालियन का गठन बिहार सरकार द्वारा किया गया है। फिलहाल यह बटालियन सक्रिय सेवा में है।
भारत में पहली बार पुलिस में आदिवासी महिला बटालियन का गठन बिहार सरकार द्वारा किया गया है। फिलहाल यह बटालियन सक्रिय सेवा में है। इसे 'बिहार पुलिस स्वाभिमान वाहिनी' कहा जाता है, इसमें 675 महिला कांस्टेबल शामिल हैं। इस बटालियन से संबंधित सभी महिलाएं बिहार के जमुई, रोहतास, बेतिया और अन्य क्षेत्रों के अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों से हैं।
एडीजी (सीआईडी) विनय कुमार ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया,
"इस बटालियन में भर्ती होने वाली महिलाओं ने प्रशिक्षण के दौरान अद्भुत प्रतिभा और पेशेवर कौशल का भी प्रदर्शन किया।"
स्वाभिमान वाहिनी बटालियन की पासिंग आउट परेड 26 फरवरी को पटना के मिथिलेश स्टेडियम में आयोजित की गई थी, जहाँ आत्मविश्वास से भरी इन महिलाओं ने अपने कौशल और ताकत का प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि DGP गुप्तेश्वर पांडे, अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए थे।
उस दौरान थारू जनजाति से संबंधित महिला कांस्टेबल करुणा हंसदाह ने परेड का नेतृत्व किया। बिहार पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि बटालियन का स्थायी मुख्यालय पश्चिम चंपारण के वाल्मीकि नगर में है, हालाँकि फिलहाल उन्हें BMP-5 में तैनात किया जाना है।
बिहार सैन्य पुलिस के उप महानिरीक्षक (उत्तर क्षेत्र) अवधेश कुमार शर्मा ने द टेलीग्राफ को बताया कि इस बटालियन का मुख्यालय स्थापित करने के लिए भूमि की खरीद सुनिश्चित करने के प्रयास जारी थे। उन्होने बताया कि
"पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण के जिलाधिकारियों को आवश्यक भूमि उपलब्ध कराने के लिए पत्र भेजे गए हैं।"
फेमिना के अनुसार बिहार सरकार ने मीडिया को बताया कि इस बटालियन को उठाना राज्य के सभी क्षेत्रों में महिलाओं के सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के राज्य के प्रयासों का हिस्सा है।
यह वास्तव में एक सकारात्मक कदम है जिसका उद्देश्य भारत में पुलिस बल का हिस्सा बनने की इच्छा रखने वाली महिलाओं को प्रोत्साहित करना है, खासकर जब से द इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2019 के निष्कर्षों से पता चला है कि महिलाओं में अधिकारी स्तर पर केवल छह प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी शामिल हैं, जिससे नेतृत्व की स्थिति में महिलाओं के बहिष्कार का संकेत मिलता है।
'द रिपोर्ट' के मुताबिक,
"अगर राज्य प्रति वर्ष 1 प्रतिशत अतिरिक्त महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाते हैं, तो भी इस आकांक्षात्मक 33 प्रतिशत तक पहुंचने में उन्हें और संस्थानों को दशकों लगेंगे।"