30 साल से गायों को बूचड़खाने से बचाने वाले पद्मश्री शब्बीर सय्यद से मिलिए
महाराष्ट्र के कई इलाकों में सूखा किसी त्रासदी से कम नहीं होता। बीते कुछ सालों में हजारों किसान इसी सूखे की वजह से अपनी जान दे चुके हैं। ऐसे हाल में जब इंसानों को पीने के पानी के लिए मशक्कत करनी पड़ती है तो फिर खेतों में फसलों के लिए और मवेशियों के लिए पानी का जुगाड़ करना कितना मुश्किल होता होगा। ऐसी स्थिति में जो जानवर दूध देना बंद कर देते हैं उन्हें किसान बेच देते हैं। लेकिन 58 वर्षीय शब्बीर अहमद ऐसी गायों को पिछले तीस सालों से संरक्षित कर रहे हैं।
महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त बीड इलाके में रहने वाले शब्बीर अहमद ने अब तक ऐसे सैकड़ों जानवरों को बूचड़खाने पहुंचने से रोका है, जो दाना पानी के आभाव में अपनी जान गंवा बैठे होते। उनके इस पुनीत कार्य के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा। शब्बीर के परिवार में 13 लोग हैं औरर वे अपने इतने बड़े परिवार के साथ दो कमरे के टिन शेड में रहते हैं। उनका पूरा परिवार इस काम में उनका सहयोग करता है।
शब्बीर अपने खेतों में इन जानवरों के लिए चारा उगाते हैं। समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए शब्बीर कहते हैं, 'मैं बचपन से ही गायों की देखभाल कर रहा हूं। जब सूखे की स्थिति पैदा होती है तो फिर जानवरों की देखभाल करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे कई लोग भी हैं जो हमें जानवरों की देखभाल करने के लिए चंदा भी देते हैं।' वे बताते हैं कि जानवरों की देखभाल करने के लिए हर रोज कम से कम 1,500 लीटर पानी की जरूरत होती है। क्योंकि एक गाय एक बार में ही दस से 15 लीटर पानी पी जाती है।
शब्बीर स्थानीय किसानों को बैल भी बेचते हैं लेकिन कम दाम पर। वे किसानों से लिखित में ले लेते हैं कि वे इन्हें किसी कसाई को नहीं बेचेंगे और पुराने होने पर इन्हें वापस कर देंगे। गायों को प्यार लुटाने के बारे में शब्बीर कहते हैं कि वे अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके पिता पहले कसाई थे, लेकिन बाद में उन्होंने इस पेशे को छोड़कर गायों की देखभाल करने में अपना जीवन लगा दिया था।
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