केरल की रिटायर्ड प्रोफेसर 30 सालों से कर रही हैं गाय की इस नस्ल का संरक्षण, मिल चुका है पद्मश्री सम्मान
साल 2022, गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने पद्म श्री पुरस्कारों के नामों का ऐलान किया था। इस सूची में देश के प्रथम सीडीएस रहे जनरल रावत, स्व. कल्याण सिंह जैसी कई बड़ी शख्सियतों के नाम शामिल थे।
पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कारों की कुल 129 लोगों की लंबी लिस्ट में एक नाम केरल की रहने वाली सोसम्मा इयपे का भी था। सोसम्मा पेशे से पशु चिकित्सक हैं। उन्हें देश की ओर से जब यह पुरस्कार दिया गया तो उन्हें खुद भी इस बात पर बहुत अधिक विश्वास नहीं हो रहा था। उन्हें यह सम्मान 80 के दशक में वेचुर गाय की अनोखी नस्ल को विलुप्त होने से बचाने के लिए चलाए जाने वाले एक मिशन के लिए दिया गया था।
डॉ. सोसम्मा, केरल में पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, त्रिशुर’ की एक रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। वह करीब पिछले 30 वर्षों से वेचुर गाय की नस्लों के संरक्षण के काम में लगी हुई हैं। गायों की इस विशेष नस्ल को विलुप्त होने से बचाने और इसकी आबादी बढ़ाने में उनके सभी संभव प्रयास उनके द्वारा किए जा रहे हैं।
सहज नहीं था शुरुआत का संघर्ष
जब उन्होंने इस काम की शुरुआत की थी, उस वक्त उनके लिए यह राह इतनी आसान नहीं थी। अधेड़ उम्र में एक गांव से दूसरे गांव जाना, उस नस्ल की गायों की तलाश करना, किसानों से बात करके इस विशेष प्रजाति को बचाने के लाभ बताना और कभी-कभी अपने ही लोगों का विरोध भी करना, यह सब कुछ इतना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह काफी समय तक अकेले ही इस काम में लगी रहीं और संघर्ष करती रहीं और 2022 आते-आते उन्हें अपने इस बेहतरीन प्रयास के लिए सम्मानित भी किया गया।
एक मीडिया चैनल से बात करते हुए वह कहती हैं, “मुझे इस सम्मान की उम्मीद नहीं थी। इसे पाकर मैं वास्तव में बहुत खुश हूं। बहुत सारे लोग हैं, जो इस प्रयास में शामिल रहे। यह सम्मान उन सब के लिए भी खुशी लेकर आया है।”
क्यों खास है वेचूर गाय?
यह एक देशी किस्म की गाय होती है। इस प्रजाति की गाय के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। वेचूर गाय कद में छोटी होती है, लेकिन इसके दूध की मात्रा बाकी गायों की तुलना में अधिक होती है। इसके अलावा इसके दूध में बहुत से औषधीय गुण भी होते हैं। साथ ही साथ इसके रख-रखाव और चारे पर भी कम खर्च करना पड़ता है।
इतनी खासियतों के बावजूद भी इस नस्ल की गायों की संख्या में कमी आने लगी थी। 1980 के दशक में तो ये विलुप्त होने के कगारा पर थीं।
क्यों खत्म हो रही है गायों की यह प्रजाति?
वर्ष 1960 के करीब केरल सरकार ने दूध उत्पादन बढ़ाने को लेकर मवेशियों की प्रजनन नीतियों में कई बदलाव किए थे। इसके बाद देशी प्रजाति के मवेशियों की विदेशी किस्मों के साथ बड़े पैमाने पर क्रॉस-ब्रीडिंग शुरू हो गई थी, जिसके चलते वेचुर गाय जैसी देसी किस्मों की संख्या में भारी कमी आने लगी थी।
अब तक डॉ. सोसम्मा की समझ में चुका था कि अगर इन्हें समय रहते बचाया नहीं गया, तो आने वाले समय में काफी देर हो जाएगी और यह नस्ल पूरी तरह विलुप्त हो जाएगी। जिसके बाद सोसम्मा पूरी तरह से इस काम में लग गईं और विश्वविद्यालय के कुछ स्टूडेंट्स के साथ मिलकर उन्होंने राज्य भर में इन गायों की तलाश करनी शुरू कर दी।
एक साल में उनके पास लगभग 24 वेचुर गायें थीं। इन्हें मन्नुथी में कृषि विश्वविद्यालय के खेत में रखा गया और वहीं उनकी देखभाल की गई। पूरी टीम की पहली प्राथमिकता गायों का प्रजनन कराना था, ताकि उनकी तेजी से खत्म हो रही आबादी को बढ़ाया जा सके।
Edited by Ranjana Tripathi