Freebies: चुनाव आयोग के दिशा निर्देश और गुजरात सरकार द्वारा मुफ्त सिलेंडर की घोषणा
निर्वाचन आयोग ने 14 अक्टूबर को कहा कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रलोभन दिये जाने को कतई बर्दाश्त नहीं करने की उसकी नीति है.
पिछले कुछ महीनों से देश में फ्रीबीज को लेकर काफी बहस हो रही है. सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आय़ोग ने फ्रीबीज कल्चर के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया हुआ है. वहीं, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी अपनी एक रिपोर्ट में फ्रीबीज कल्चर के कारण राज्यों के कर्ज के जाल में फंसने पर चिंता जता चुकी है. हालांकि, केंद्र सरकार इस मामले में कोई साफ स्टैंड नहीं ले पा रही है.
हाल ही में, हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के दौरान चुनाव आयोग ने फ्रीबीज कल्चर को सख्त चेतावनी दी है. निर्वाचन आयोग ने 14 अक्टूबर को कहा कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रलोभन दिये जाने को कतई बर्दाश्त नहीं करने की उसकी नीति है. साथ ही, माल एवं सेवा कर (GST) जैसी प्रणालियों के जरिये यह सुनिश्चित किया जाएगा कि मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ‘मुफ्त सौगात’ (फ्रीबीज) नहीं बांटी जाए.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार ने यह भी कहा था कि निर्वाचन आयोग एक नया ‘प्रपत्र’ पेश करने के अपने प्रस्ताव पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा है. इस ‘प्रपत्र’ मे राजनीतिक दल इस बारे में विवरण दे सकेंगे कि वे मतदाताओं को किये गये चुनावी वादों को कैसे पूरा करेंगे.
हालांकि, इसके बावजूद गुजरात में चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले गुजरात सरकार ने उज्ज्वला योजना के 38 लाख लाभार्थियों को हर साल दो सिलेंडर मुफ्त देने की घोषणा की है.
इससे पहले, गुजरात सरकार ने सीएनजी और पीएनजी पर लगने वाले वैट में भी 10 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की थी. गुजरात में सीएनजी और रसोई में इस्तेमाल होने वाले पीएनजी पर वैट 15 प्रतिशत था. इस कमी के बाद अब कर की दर घटकर पांच प्रतिशत हो जाएगी. इससे सीएनजी की कीमतों में छह रुपये प्रति किलोग्राम और पीएनजी की दरों में पांच रुपये प्रति घन मीटर की कमी आएगी.
सीएनजी, पीएनजी पर वैट में कमी और केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को हर साल दो मुफ्त तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) सिलेंडर से राज्य सरकार पर 1,650 करोड़ रुपये का बोझ आएगा.
क्या है फ्रीबीज कल्चर?
विभिन्न राजनीतिक दल लोकसभा और विधानसभा चुनावों को देखते हुए केंद्र और राज्य की सत्ता में आने के लिए चुनाव से पहले और बाद में भी मुफ्त उपहार देने की घोषणाएं करती हैं.
सरकारें मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी के साथ गैस सिलिंडर और कई अन्य चीजों पर सब्सिडी दे रही हैं. इसके अलावा अधिकतर सरकारें समाज के अलग-अलग तबकों को नकद राशि भी देती हैं.
बैन की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट करेगी सुनवाई
चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा फ्रीबीज बांटे जाने पर प्रतिबंध की मांग वाली याचिकाओं के मामले पर लंबी सुनवाई करने के बाद बीते 27 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को तीन जजों की पीठ के पास भेज दिया.
तीन जजों की यह पीठ 2013 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की समीक्षा करेगी जिसमें कहा गया था कि फ्रीबीज के ऐसे वादों को गलत प्रैक्टिस नहीं करार दिया जा सकता है.
इससे पहले सुनवाई के दौरान तत्कालीन सीजेआई जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता.
पीठ ने कहा था कि आभूषण, टेलीविजन, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को मुफ्त बांटने के प्रस्ताव और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं की पेशकश में अंतर करना होगा.
चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से मांगी है राय
सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को लिखे गए एक पत्र में निर्वाचन आयोग (ईसी) ने कहा कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है, क्योंकि खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे. आयोग ने इन दलों से 19 अक्टूबर तक प्रस्ताव पर अपने विचार देने को कहा है.
ईसी ने अपने पत्र में कहा था, ‘‘चुनावी घोषणा पत्रों में स्पष्ट रूप से यह संकेत मिलना चाहिए कि वादों की पारदर्शिता, समानता और विश्वसनीयता के हित में यह पता लगना चाहिए कि किस तरह और किस माध्यम से वित्तीय आवश्यकता पूरी की जाएगी.’’
विपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई
राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी देने को लेकर आदर्श आचार संहिता में बदलाव के संबंध में राजनीतिक दलों से राय मांगने के लिए, निर्वाचन आयोग पर निशाना साधते हुए कहा कि हो सकता है चुनाव निगरानीकर्ता को खुद एक आचार संहिता की जरूरत हो.
सिब्बल ने कहा, “निर्वाचन आयोग: उच्चतम न्यायालय में मुफ्त सौगात पर होने वाली बहस से अलग रहने का हलफनामा दाखिल करने के बाद पलट जाता है. यह धोखा देने के बराबर होगा. अब इसे आदर्श आचार संहिता में शामिल करना चाहते हैं.”
उन्होंने ट्विटर पर कहा, “हो सकता है निर्वाचन आयोग को ही आदर्श आचार संहिता की जरूरत हो.”
आरबीआई की रिपोर्ट में जताई गई थी चिंता
कुछ महीने पहले ही, आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राज्य सरकारें मुफ्त की योजनाओं पर जमकर खर्च कर रहीं हैं, जिससे वो कर्ज के जाल में फंसती जा रही हैं.
आरबीआई की 'स्टेट फाइनेंसेस: अ रिस्क एनालिसिस' की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब, राजस्थान, बिहार, केरल और पश्चिम बंगाल कर्ज में धंसते जा रहे हैं और उनकी हालत बिगड़ रही है.
आरबीआई ने अपनी इस रिपोर्ट में CAG के डेटा के हवाले से बताया है कि राज्य सरकारों ने 2020-21 में सब्सिडी पर कुल खर्च का 11.2 फीसदी खर्च किया था, जबकि 2021-22 में 12.9 फीसदी खर्च किया था.
आरबीआई की रिपोर्ट में बताया गया था कि मार्च, 2021 तक देशभर की सभी राज्य सरकारों पर 69.47 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. सबसे अधिक 6.59 लाख करोड़ का कर्ज तमिलनाडु की सरकार पर है. उत्तर प्रदेश पर 6.53 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है.