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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के 10 ऐसे फैसले जो बन गए मिसाल

असहमति को 'लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व' बताने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण फैसले दिए. जस्टिस चंद्रचूड़ अपने गहन निर्णयों और असहमतिपूर्ण विचारों के लिए जाने जाते हैं.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के 10 ऐसे फैसले जो बन गए मिसाल

Tuesday October 18, 2022 , 7 min Read

सुप्रीम कोर्ट दूसरे सबसे सीनियर जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) सोमवार को देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश (CJI) नियुक्त किये गए. केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने यह जानकारी दी.

मौजूदा सीजेआई उदय उमेश ललित के 65 वर्ष की आयु पूरी कर लेने पर सेवानिवृत्त हो जाने के एक दिन बाद नौ नवंबर को न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ लेंगे.

न्यायमूर्ति ललित का 74 दिनों का संक्षिप्त कार्यकाल रहा  जबकि सीजेआई के पद पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो वर्षों का होगा. वह 10 नवंबर 2024 को सेवानिवृत्त होंगे.

जस्टिस चंद्रचूड़ देश के सबसे लंबे समय तक सीजेआई रहे जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे हैं. उनके पिता 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक न्यायपालिका के शीर्ष पद पर काबिज रहे.

लैंडमार्क जजमेंट्स

असहमति को 'लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व' बताने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण फैसले दिए. जस्टिस चंद्रचूड़ अपने गहन निर्णयों और असहमतिपूर्ण विचारों के लिए जाने जाते हैं.

उन्होंने जिन मामलों में फैसले दिए उनमें अयोध्या भूमि विवाद, आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, आधार योजना की वैधता से जुड़े मामले, सबरीमला मुद्दा, सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करने जैसे फैसले शामिल हैं.

1. निजता का अधिकार

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ जस्टिस केएस पुट्टस्वामी (रिटायर्ड) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य मामले में 9 जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे. 24 अगस्त, 2017 को दिए इस फैसले में निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई. इस मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने लीड ओपिनियन लिखा था.

पीठ ने कहा था कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 और संपूर्ण भाग III के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक आंतरिक हिस्सा है.

1975 से 1977 में आपातकाल के दौरान सामने आए एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज (एडीएम) जबलपुर बनाम शिवाकांत केस में दिए गए फैसले को पलट दिया था. यह मामला हैबियस कॉर्पस केस के रूप में सामने आया था. तत्कालीन सीजेआई पीएन भगवती की अध्यक्षता वाली 5 जजों पीठ ने 4-1 से फैसला सुनाया था कि आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है.

दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के फैसले को पलट दिया. इस मामले में एकमात्र असहमति रखने वाले जज जस्टिस एचआर खन्ना थे.

2. समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता दी

सितंबर, 2018 में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में आईपीसी की धारा-377 की कानूनी वैधता को खत्म कर आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बनाए गए संबंध को आपराधिक कृत्य से बाहर कर दिया था.

इस मामले में अपनी सहमति वाला अलग से फैसला लिखते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि यह प्राचीन और औपनिवेशिक युग का कानून यौन अल्पसंख्यकों को छिपकर, डर में और दूसरे दर्जे के नागरिकों के रूप में रहने के लिए मजबूर करता है.

3. सबरीमाला केस

जस्टिस चंद्रचूड़ 28 सितंबर, 2018 को सबरीमाला केस में फैसले देने वाली पांच जजों की पीठ का हिस्सा थे. सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को उनके माहवारी के दौरान प्रवेश करने से रोकने की प्रथा को असंवैधानिक घोषित कर दिया.

सबरीमाला मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसला दिया कि माहवारी की उम्र वाली महिलाओं को मंदिर में घुसने का अधिकार है. उन्होंने माना कि रीति-रिवाजों और प्रथाओं ने संविधान की प्रधानता को छीन लिया.

4. हादिया मैरिज ‘लव जिहाद’ मामला

साल 2018 के लव जिहाद के इस कथित मामले में जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ शामिल थे. पीठ ने निचली अदालत के दिसंबर, 2016 के उस फैसले को पलट दिया जिसने 25 वर्षीय अखिला अशोकन (जिसने शादी के बाद अपना नाम बदलकर हादिया रख लिया था) और शफीन जहां की शादी को अवैध करार दिया था.

इस मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति को धर्म चुनने और उसके सार्थक अस्तित्व के आंतरिक भाग के रूप में विवाह करने का अधिकार है.

5. वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक करार दिया

सितंबर, 2022 में जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पत्नियों के साथ पति द्वारा यौन हिंसा या बलात्कार को अपराधिक करार दिया. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि बलात्कार का अर्थ वैवाहिक बलात्कार सहित समझा जाना चाहिए.

6. सेना में महिलाओं की नियुक्ति

जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सेना में महिलाओं की नियुक्ति को लेकर कहा कि जिस प्रक्रिया से महिला अधिकारियों का मूल्यांकन किया गया वह पिछले साल शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले में उठाए गए लैंगिक भेदभाव की चिंता का समाधान नहीं करती है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्थायी कमीशन के लिए योग्य महिला सेना और नौसेना शॉर्ट सर्विस अधिकारियों को खोजने के लिए सरकार की अनिच्छा की आलोचना की. उन्होंने इस विचार को खारिज कर दिया कि महिलाएं सेक्स स्टीरियोटाइप के रूप में पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप से कमजोर हैं.

7. आधार को मनी बिल के रूप में पास कराने को असंवैधानिक करार दिया

5 जजों की संवैधानिक पीठ का हिस्सा होते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 की संवैधानिक वैधता पर फैसला दिया.

बहुमत जजों ने अधिनियम को बरकरार रखा, जबकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि इसे धन विधेयक के रूप में असंवैधानिक रूप से पारित किया गया. उन्होंने कहा कि आधार को मनी बिल के रूप में पास कराना संविधान के साथ धोखा है.

8. भीमा-कोरेगांव मामला

भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए पांच एक्टिविस्टों के अधिकारों को बरकरार रखने के लिए उन्होंने पीठ के बाकी दो सदस्यों तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर से अलग राय रखी थी.

उन्होंने न्यायपालिका को याद दिलाया कि अनुमानों के आधार पर असहमति की बलि नहीं दी जा सकती. जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी माइनॉरिटी ओपिनियन में लिखा था कि असहमति जीवंत लोकतंत्र का प्रतीक है. लोगों को पसंद न आने मुद्दों को उठाने वालों को सताकर विपक्ष की आवाज को दबाया नहीं जा सकता है. उन्होंने गिरफ्तारियों की जांच के लिए विशेष जांच टीम बनाने के लिए भी लिखा था.

9. CJI का ऑफिस RTI के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण

नवंबर, 2019 में एक संविधान पीठ के साथ असहमति व्यक्त करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने माना था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण है और जनहित में मांगी गई जानकारी प्रदान करने के लिए उत्तरदायी है.

हाल ही में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने घोषणा की कि अदालत जल्द ही आरटीआई आवेदनों से निपटने के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्थापित करेगी. उन्होंने माना कि मुख्य न्यायाधीश और अदालत के न्यायाधीश संवैधानिक पद हैं, न कि पदानुक्रम (हाइरार्की) के तहत आते हैं.

10. बेल अधिकार, जेल अपवाद

रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्णब गोस्वामी की महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तारी मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने बेल को अधिकार और जेल को अपवाद करार दिया था. अर्णब को दोहरे आत्महत्या मामले में गिरफ्तार किया गया था.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने निचली अदालतों को याद दिलाया था कि कानून के तहत बेल देना और ऐसी याचिकाओं का निपटारा करना उनका कर्तव्य है.

11. ‘एक दिन के लिए भी आजादी से वंचित करना बहुत है’

यूएपीए कानून के तहत माओवादियों से संबंधों को लेकर एल्गर परिषद मामले में गिरफ्तार  84 वर्षीय कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मौत के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता से वंचित करना ‘बहुत ज्यादा’ है और न्यायाधीशों को हमेशा अपने निर्णय देते समय इसके प्रति सचेत रहना चाहिए.

उन्होंने कहा, आज दुनिया का सबसे पुराना व सबसे बड़ा लोकतंत्र एक बहुसांस्कृतिक, बहुलवादी समाज के आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है, जहां संविधान, मानव अधिकारों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता और सम्मान पर केंद्रित हैं.