बैंक की नौकरी छोड़ मनोवैज्ञानिक बनने तक, महामारी के बीच गरिमा जुनेजा ने कैसे शुरू कर दिया एक मेंटल हेल्थ स्टार्टअप
Lightroom Therapy, एक चंडीगढ़ स्थित मेंटल हेल्थ स्टार्टअप है, जो मरीजों को ऑनलाइन काउंसलिंग की सुविधा मुहैया कराती है। इसे कोरोना महामारी के दौरान शुरू किया गया था और इसका लक्ष्य महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे लोगों की मदद करना है।
साल 2006 के अंत में, किसी भी नई मां की तरह गरिमा जुनेजा के सामने भी एक दुविधा थी। वह दुविधा थी कि वह अपने फलते-फूलते करियर में बनी रहें या फिर एक पूर्णकालिक मां बनने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दें। गरिमा आईसीआईसीआई बैंक में एक बैंकर थीं। वह जानती थीं कि वो उन भाग्यशाली लोगों में से हैं जिनके पास अपनी नौकरी छोड़ने की आजादी और विकल्प था, इसलिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। लेकिन, मनोविज्ञान में उनकी दिलचस्पी बनी रही।
इसने गरिमा को अपनी दिलचस्पी को पेशे में बदलने के बारे में सोचने का मौका मिला, और उन्होंने जल्द ही मनोविज्ञान में एमए कोर्स कर लिया। साथ ही उन्होंने गॉटमैन कपल थेरेपी, कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी, रैशनल इमोशनल बिहेवियर थेरेपी, हिप्नोथेरेपी सहित कई अन्य थेरेपी से जुड़े कोर्स किए। उन्होंने एक मनोवैज्ञानिक बनने के लिए करीब छह साल की ट्रेनिंग और काउंसलिंग में बिताया।
गरिमा कहती हैं, "मेरी दो बेटियां हैं और मैं काफी भाग्यशाली हूं कि जब वे बड़े हो रहे थे तो मैं उनके साथ रही। साथ ही मैं खुद को धीरे-धीरे एक मनोवैज्ञानिक के रूप में तैयार कर रही थी, जिससे मैं समाज में लोगों को सेवाएं दे सकूं।"
उनका मनोवैज्ञानिक के तौर पर यह सफर ही था, जिसने उन्हें अपना मेंटल हेल्थ स्टार्टअप - लाइटरूम थेरेपी (Lightroom Therapy) शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
ऑनलाइन काउंसलिंग को शुरू करना
स्टार्टअप शुरू करने की सोच को लेकर बात करते हुए गरिमा कहती हैं,
गरिमा कहती हैं, "एक मनोवैज्ञानिक के तौर पर, मैं पहले से ही सेशन के लिए ग्राहकों से व्यक्तिगत रूप से मिल रही थी। साथ ही मैं स्कूली बच्चों की देखभाल करने वाले दो गैर सरकारी संगठनों से जुड़ी थी। महामारी की पहली लहर के दौरान ऑनलाइन परामर्श के लिए कुछ लोगों ने मुझसे संपर्क किया, जिसने बहुत अच्छा काम किया। इससे पहले हम शायद ही कभी फोन या जूम कॉल पर थेरेपी सेशन देते थे, लेकिन ऑनलाइन सेशन क्लाइंट/मरीजों के लिए बेहद सफल चिकित्सीय अनुभव साबित हुआ। इसके बाद मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहती थी और इसकी ओर पहला कदम लाइटरूम के लिए एक वेबसाइट बनाना था। इसके बाद से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।”
गरिमा ने 2020 में अपने गृहनगर चंडीगढ़ से से लाइटरूम को शुरू किया। वह कहती हैं कि उन्होंने अपनी थेरेपी और परामर्श सेवाओं का नाम 'लाइटरूम' इसलिए रखा क्योंकि यह बताता है कि एक तरह से अंधेरे और अशांत समय के दलदल में रहने के बाद, रोगी के जीवन में प्रकाश लाने का यह जरिए बनेगा।
गरिमा कहती हैं, "इसलिए लाइटरूम असल में कोई कमरा नहीं है, बल्कि यह किसी के दिमाग के बारे में है जो ऑनलाइन/व्यक्तिगत थेरेपी सेशन के जरिए से सही दिशा में खुल जाता है। मेरे ग्राहक और मैं मिलकर काम करते हैं, जिससे उनकी संचार शैली में सोच और सूचना के पुराने बेकार पैटर्न को कम किया जा सके। इस प्रकार हम उन्हें अवसाद, चिंता, और सामंजस्य बैठाना, रिश्तों और व्यक्तित्व दुर्भावनाओं के मुद्दों से ऊपर उठाते हैं।”
शुरू करने के लिए उठाए गए कदम
लाइटरूम के निर्माण के लिए एक मजबूत नींव की आवश्यकता थी, जिसमें न केवल गरिमा को एक पेशेवर डिग्री हासिल करने की जरूरत थी, बल्कि मानव मनोविज्ञान, व्यवहार और भावनाओं को समझने से जुड़े कौशल को भी निखारना था।
गरिमा कहती हैं, "यह मेरे रोगियों के जीवन में तल्लीन करने, सहानुभूति रखने और यह सोचने के लिए भी आवश्यक था कि मैं उनके व्यक्तित्व प्रकार और कंडीशनिंग पर विचार करने के बाद उनकी मदद कैसे कर सकती हूं। यह मेरा जुनून है और मैं इसमें सर्वश्रेष्ठ बनना चाहती थी, ”
वह कहती हैं कि अभी भी मानसिक स्वास्थ्य और इस संबंध में मदद मांगने को समाज में अच्छे तौर पर नहीं देखा जाता है, इसलिए लोगों तक पहुंचना मुश्किल था।
गरिमा कहती हैं, “इसके बारे में बात करके और मीडिया पर जानकारी प्रसारित करके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करने की तत्काल आवश्यकता है। मेरे लिए सबसे बेहतर काम किया वह वर्ड ऑफ माउथ था। यानी कि एक लोगों के मुंह से निकली तारीफ दूसरे, तीसरे और फिर ऐसी अन्य लोगों तक पहुंचते जाना। मेरे मौजूदा ग्राहकों ने मुझे कई और लोगों के पास भेजा क्योंकि वे चिकित्सा के बहुआयामी लाभों के बारे में जानते थे। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ने मुझे जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने की समस्या को दूर करने में भी मदद की।” उनके पास एक मनोवैज्ञानिक के रूप में प्रैक्टिस करने वाले ग्राहक भी थे।
वह यह भी कहती हैं कि पुरुषों और महिलाओं दोनों और विभिन्न आयु समूहों पर महामारी के प्रभाव को मापना मुश्किल है। हालांकि यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाओं ने वास्तव में इसका अधिक खामियाजा उठाया है।
एक दूसरे की मदद करें
गरिमा को लगता है कि महिलाएं अपने जेंडर के चलते अधिक संवेदनशील, भावनात्मक और किसी समस्या के प्रति अधिक ध्यान देती है। ऐसा वह सिर्फ अपने से जुड़ी मुद्दों पर नहीं, बल्कि अपने प्रियजनों के लिए भी करती हैं।
गरिमा सलाह देती हैं, "महिलाओं को ज्यादातर सी टाइप व्यक्तित्व के रूप में देखा जाता है, जो भविष्य के बारे में बहुत चिंतित लगती हैं, हर चीज को परफेक्ट तरीके से चाहती हैं, बाहरी तौर पर निष्क्रिय रहती हैं और अनचाहे परिवर्तन से सामंजस्य बिठाने में उन्हें कठिनाई होती है। इसमें सबसे अहम यह है कि उनके स्वीकार्यता स्तर और उनके चीजों को परफेक्ट तरीके से चाहने की आदत में बदलाव लाया जाना चाहिए। उन्हें अपनी अपेक्षा के स्तर पर भी काम करने की जरूरत है और अपनी बात को मुखरता से रखते हुए संवाद करने की दिशा में काम करना चाहिए।”
वह कहती हैं कि गहरी सांस लेने पर जोर देने वाली माइंडफुलनेस प्रैक्टिस से महिलाओं को काफी मदद मिलेगी। कोई शौक पालना या किसी रचनात्मक गतिविधि या कसरत में शामिल होना निश्चित रूप से उन्हें उनके तनाव से मुक्त करने में मदद कर सकता है।
महिला उद्यमियों को सलाह देते हुए वह कहती हैं, "महिलाएं किसी भी समाज की नींव होती हैं और जब वे बढ़ती हैं, तो पूरा देश काफी तेजी से आगे बढ़ता है। मेरी सलाह है कि उन्हें अपने सपने को पूरा करने पर ध्यान देना चाहिए और उसे हासिल करने के लिए लगन से काम करना चाहिए। लचीलापन लाएं क्योंकि उतार-चढ़ाव जीवन का एक हिस्सा है, और कभी हार मत मानो, क्योंकि धैर्य हमेशा सफलता दिलाता है। अपने प्रयासों में नियमितता रखें और सकारात्मक नजरिए वाले लोगों के बीच में खुद को रखें। याद रखें सबसे अच्छा दृश्य सबसे कठिन चढ़ाई के बाद आता है।"
Edited by रविकांत पारीक