देश के लाखों स्टार्टअप्स और छोटे उद्यमियों का हित साधने में जुटी सरकार
भारत की आर्थिक विकास दर घटकर महज 5 प्रतिशत रह जाने के बावजूद केंद्र सरकार इस समय भारतीय स्टार्टअप के लिए आयकर नियमों में ढील देने के साथ ही लाखों की संख्या में छोटी फर्मों को करीब 14.5 अरब डॉलर का विदेशी ऋणदाताओं से कर्ज दिलाकर किसी भी कीमत पर इनके हित सुरक्षित रखने में जुटी हुई है।
भारत की आर्थिक विकास दर घटकर महज पांच प्रतिशत रह जाने के बाद से देश में अंदरखाने मंदी के घेराव में गहराते संकट से हलचल मची हुई है। इतनी उथल-पुथल और अंदेशों के बावजूद सरकार, खासकर देश के लाखो स्टार्टअप और छोटे उद्यमियों का हित सुरक्षित रखने में कोई लापरवाही नहीं बरतना चाहती है। इसीलिए स्टार्टअप के लिए आयकर नियमों में ढील देने का फैसला लिया गया, और इसीलिए सरकार लाखों छोटी फर्मों को करीब 14.5 अरब डॉलर का कर्ज दिलाने के लिए विदेशी ऋणदाताओं से बातचीत कर रही है।
इस समय भले ही भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर न हो, भले ही कोडिंग और एम्युलेटिंग जैसे साधनों का विकास पश्चिमी देशों में हुआ हो, भारतीय स्टार्टअप अब दुनिया भर के लिए उत्पाद तैयार कर पश्चिमी देशों से पैसे भी कमा रहे हैं, जिससे बेरोजगारी घटने के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था संभलने में भी मदद मिल रही है।
केंद्र सरकार के निर्देशानुसार, आयकर विभाग स्टार्टअप कंपनियों को राहत देते हुए उनके आकलन और जांच नियमों में छूट देने जा रहा है। विभाग ने एक परिपत्र में अपने अधिकारियों को उन स्टार्टअप कपंनियों से अतिरिक्त टैक्स की मांग न करने का निर्देश दिया है, जिन्हें उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) से मान्यता प्राप्त है। यह छूट उन मामलों में लागू होगी, जहां जांच आयकर अधिनियम की धारा 56 (2) (7बी) तक सीमित है।
अगर स्टार्टअप कंपनियां डीपीआईआईटी से मान्यता प्राप्त नहीं हैं तो आकलन अधिकारी को ऐंजल टैक्स सहित किसी भी मुद्दे की जांच करने या सत्यापन करने के लिए अपने वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति लेनी होगी। इस बीच यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक एंड पार्टनरशिप फोरम के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कहा है कि भारतीय स्टार्टअप तीसरे चरण में पहुंच रहे हैं। भारतीय आईटी उद्योग में सन् 2000 के बाद से तेजी आई है। दूसरा चरण निर्यात बाजारों पर केंद्रित नहीं था, इसमें घरेलू बाजार में दक्षता लाने पर अधिक जोर दिया गया। अब तीसरे चरण में ऐसी उत्पाद कंपनियां सामने आ रही हैं, जिन्हें दुनिया भर के लिए विकसित किया गया है। अब उनकी सफलता के लक्षण परिलक्षित हो रहे हैं।
जहां तक भारतीय अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सरकार को बड़ा झटका लगने की बात है, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून तक देश की आर्थिक विकास दर घटकर महज पांच प्रतिशत रह जाना कमजोर नीतियों का परिणाम माना जा रहा है। जानकार इस हालात के पीछे नोटबंदी और जीएसटी को एक बड़ी वजह बता रहे हैं। उनका कहना है कि नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्यमों को ख़त्म कर दिया अथवा फिर दबाव में डाल दिया है। ऑटो सेक्टर और कंज्यूमर गुड्स की बिक्री घटना उसी का नतीजा है। जहां तक देश की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजरने की बात है, मंदी तब आती है, जब देश की जीडीपी दो तिमाही तक लगातार निगेटिव रहे।
फिलहाल भारत की पांच प्रतिशत विकास दर निगेटिव नहीं है। हां, देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती जरूर है लेकिन बावजूद इसके देश पांच प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रहा है। आर्थिक सर्वेक्षण में वर्तमान वित्तीय वर्ष यानी 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर के 7 फ़ीसदी रहने का अनुमान जताया गया था। साथ ही भारत को साल 2025 तक 5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस उद्देश्यय से विकास दर निरंतर 8 प्रतिशत रखना जरूरी है।
फिलहाल, सरकार लाखों छोटी फर्मों को करीब 14.5 अरब डॉलर का कर्ज दिलाने के लिए विदेशी ऋणदाताओं से बातचीत कर रही है। इस सिलसिले में कई विदेशी संस्थाओं से बात चल रही है, जिनमें जर्मनी का सरकारी विकास बैंक केएफडब्ल्यू ग्रुप, विश्व बैंक और कनाडा की कुछ संस्थाएं शामिल हैं। सरकार विदेशी संस्थाओं से करीब एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेने की योजना बना रही है क्योंकि भारतीय बैंक रोजगार सृजन के लिहाज से महत्वपूर्ण छोटे उद्यमों को पर्याप्त पूंजी मुहैया कराने की स्थिति में नहीं हैं। सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) का मंत्रालय विदेश से कर्ज लेने के बारे में वित्त मंत्रालय के साथ चर्चा कर रहा है।
सरकार कह चुकी है कि विदेशी सॉवरिन बॉन्ड के जरिये 700 अरब रुपये उधार लेने पर वह विचार कर रही है। भारत में तकरीबन 63 करोड़ एमएसएमई हैं, जिनकी देश के विनिर्माण एवं सेवा उत्पादन में एक चौथाई से भी अधिक योगदान है। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए इनकी मदद करना बेहद जरूरी हो गया है।