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गांव में बिजली पहुंचने से पहले सरकारी स्कूल को बनाया डिजिटल, एक टीचर ने बदल दी लाखों बच्चों की किस्मत

महाराष्ट्र में ठाणे जिले से 120 किलोमीटर उत्तर में पश्तेपाड़ा के एक आदिवासी गांव की कहानी बहुत प्रेरक है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह सब तब हुआ जब इस गांव में रेगुलर इलेक्ट्रिसिटी की सप्लाई नहीं थी. इसने न केवल महाराष्ट्र बल्कि अन्य राज्यों में भी स्कूलों के लिए मिसाल कायम की है.

गांव में बिजली पहुंचने से पहले सरकारी स्कूल को बनाया डिजिटल, एक टीचर ने बदल दी लाखों बच्चों की किस्मत

Saturday December 17, 2022 , 3 min Read

कोविड-19 महामारी ने हर सेक्टर को डिजिटल होने पर फोकस करने के लिए मजबूर किया. ऐसा करने में एजुकेशन सबसे महत्वपूर्ण सेक्टरों में से एक था. कुछ साल पहले की तुलना में डिजिटल क्लासरूम अब कहीं अधिक सामान्य और एडवांस हो गए हैं.

हालांकि, महाराष्ट्र में ठाणे जिले से 120 किलोमीटर उत्तर में पश्तेपाड़ा के एक आदिवासी गांव की कहानी बहुत प्रेरक है. पश्तेपाड़ा के एक जिला परिषद स्कूल ने न केवल महाराष्ट्र में बल्कि अन्य राज्यों में भी स्कूलों के लिए एक मिसाल कायम की है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह सब तब हुआ जब इस गांव में रेगुलर इलेक्ट्रिसिटी की सप्लाई भी नहीं पहुंची थी.

बता दें कि, 28 अप्रैल, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर जानकारी दी थी कि देश के सभी गांवों में बिजली पहुंच गई है. हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद भी नवंबर, 2021 तक उत्तर प्रदेश के एटा जिले के नगला तुलई गांव में बिजली नहीं थी. वहीं, पश्तपाड़ा में अभी भी बिजली की पूरी आपूर्ति नहीं हो रही है.

पश्तेपाड़ा में एक प्राइमरी स्कूल के 34 वर्षीय शिक्षक संदीप गुंड, सरकार से कुछ कदम आगे थे. केंद्र सरकार के डिजिटलीकरण पर जोर देने से पहले ही उन्होंने शिक्षा के अपने पश्तेपाड़ा मॉडल को विकसित किया. उनका आइडिया छात्रों को अधिक इंटरैक्टिव तरीके से जोड़ना और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना था.

ऐसे हुई शुरुआत

मराठी में पोस्ट ग्रेजुएशन और बीएड करने वाले गुंड को साल 2009 में पश्तेपाड़ा के जिला परिषद स्कूल में नियुक्त किया गया था. वहां उन्होंने अपने लैपटॉप को चार्ज करने के लिए फोल्डेबल सौर पैनलों का उपयोग करना शुरू कर दिया, जिससे छात्रों के लिए टेक्नोलॉजी आधारित टीचिंग शुरू हो गई. बाद में उन्होंने दो टैबलेट खरीदे.

गुंड को अपनी टीचिंग मेथडोलॉजी में ई-लर्निंग, 3-डी तकनीक को शामिल करना था. इसके लिए उन्होंने न सिर्फ क्राउडसोर्स से पैसे जुटाने शुरू किए बल्कि कॉरपोरेट्स सीएसआर फंडिंग ली और एनजीओ की भी मदद ली. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उनके स्कूल के छात्र अब बैग नहीं रखते हैं. अब छात्रों को सभी आवश्यक कंटेंट से लैस केवल एक सौर-ऊर्जा संचालित टैबलेट और एक डिजिटल पेन शामिल की आवश्यकता होती है.

40 हजार स्कूलों में लागू हुआ मॉडल

तकनीक आधारित इस पहल के लिए गुंड की काफी सराहना की गई. शुरूआत में इलाके के करीब 40 स्कूलों ने उनके इस आइडिया को अपने यहां भी लागू किया. फिलहाल, केवल महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देशभर के 40,000 स्कूलों में मॉडल को अपनाया जा रहा है.

राष्ट्रपति से मिला पुरस्कार

स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग ने गुंड के रिसर्च की सराहना की और उन्हें जिला परिषद स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का काम सौंपा गया. जनवरी 2015 में, गुंड को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से अभिनव शिक्षक पुरस्कार मिला और मार्च, 2018 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें सृष्टि सम्मान से सम्मानित किया.

40,000 से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया

गुंड और उनके चार और सहयोगियों के समूह ने अब तक महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में सैकड़ों से अधिक वर्कशॉप्स आयोजित की हैं. इसके अलावा, स्कूलों में डिजिटल क्लासेज की शुरुआत करने के लिए महाराष्ट्र के विभिन्न स्कूलों में 40,000 से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया है.

आज, गुंड के प्रशिक्षण ने पूरे महाराष्ट्र में 11,200 डिजिटल स्कूल स्थापित करने में मदद की है. कुल मिलाकर, सभी स्कूल सार्वजनिक योगदान के माध्यम से 110 करोड़ रुपये जुटाने में सफल रहे हैं.