सरकारी बैंकों में पूंजी डालने के लिए शून्य-कूपन बॉन्ड मार्ग को छोड़ेगी सरकार
ब्याज के बोझ से बचने और वित्तीय दबाव को कम करने के लिए सरकार ने पिछले साल बैंकों की पूंजी की जरूरत को पूरा करने के लिए शून्य-कूपन बांड जारी करने का फैसला किया था।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए सरकार शून्य-कूपर बांड मार्ग को छोड़ेगी। सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक इसको लेकर चिंता जता चुका है जिसके मद्देनजर सरकार यह फैसला कर सकती है।
सूत्रों ने बताया कि सरकार सार्वजनिक बैंकों में पूंजी डालने के लिए कपून दर वाले बांड रास्ते पर फिर लौटेगी।
ब्याज के बोझ से बचने और वित्तीय दबाव को कम करने के लिए सरकार ने पिछले साल बैंकों की पूंजी की जरूरत को पूरा करने के लिए शून्य-कूपन बांड जारी करने का फैसला किया था।
इसका पहला परीक्षण पिछले साल पंजाब एंड सिंध बैंक में छह भिन्न परिपक्वता वाले शून्य कूपन बांड के जरिये 5,500 करोड़ रुपये की पूंजी डालकर किया गया। 10 से 15 साल की इन प्रतिभूतियों पर कोई ब्याज नहीं देना होता।
हालांकि, रिजर्व बैंक ने सम मूल्य पर जारी इस माध्यम के जरिये बैंक में किए गए पूंजी निवेश की प्रभावी गणना को लेकर चिंता जताई थी।
सूत्रों ने कहा कि इन बांड पर आमतौर पर कोई ब्याज नहीं होता, लेकिन इन्हें अंकित मूल्य पर काफी छूट के साथ जारी किया जाता है। ऐसे में शुद्ध वर्तमान मूल्य निकालना मुश्किल होता है।
सूत्रों ने कहा कि इसी वजह से सरकार ने बैंकों में पूंजी डालने के लिए शून्य-कूपन बांड की व्यवस्था से हटने का फैसला किया है।
सरकार ने यह नवोन्मेषी व्यवस्था वित्तीय बोझ को कम करने के लिए की थी। सरकार पिछले दो वित्त वर्ष के दौरान सार्वजनिक बैंकों के पुनर्पूंजीकरण बांड पर ब्याज भुगतान के लिए पहले ही 22,086.54 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है।
(साभार: PTI)