गुरनीत कौर: वर्जिन हाइपरलूप वन प्रॉजेक्ट की एकमात्र भारतीय महिला इंजिनियर
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से फिजिक्स में ग्रैजुएशन की डिग्री लेने वालीं 36 साल की गुरनीत कौर ने IIT दिल्ली से मास्टर्स डिग्री ली। जर्मनी से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक डिजाइन में उन्होंने पीएचडी की। पीएचडी करने के बाद वे अमेरिका चली गईं और वहां मैसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में पोस्टडॉक्टरल असोसिएट रहीं। लेकिन जब आप उनसे बात करते हैं तो उनकी विनम्रता उनकी सफलताओं को सही साबित करती है। वे इस समय भारत के लिए महत्वपूर्ण वर्जिन हाइपरलूप वन (VHO) के महत्वकांक्षी प्रॉजेक्ट में एकमात्र भारतीय महिला इंजिनियर हैं।
वे वर्जिन हाइपरलूप वन (वीएचओ) में सिस्टम इंजिनियरिंग प्रॉडक्ट्स की मैनेजर हैं। यहां वे हाइपरलूप प्रॉडक्ट्स के पोर्टफोलियो बनाने और तकनीक को ग्राहक समाधान के रूप में परिवर्तित करने में मदद करती हैं। वर्जिन हाइपरलूप वन का यह हाइपरलूप रूट मुंबई और पुणे के बीच की दूरी को 30 मिनट का बनाता है। इस रूट पर सालाना 150 मिलियन (15 करोड़) से अधिक यात्री सफर करते हैं। हाइपरलूप अवधारणा परिवहन का ही एक रूप है जिसे साल 2013 में एलन मस्क ने पेश किया था। इसमें लोगों को हवाई परिवहन की स्पीड से तुलनात्मक कम लागत पर यात्रा करने की सुविधा मिलती है। उनका पोर्टफोलियो और जिम्मेदारियां भले ही बड़ी हों लेकिन लॉस ऐंजेल्स स्थित उनके ऑफिस में बैठकर योरस्टोरी से विडियो कॉल पर की गई बातचीत में वे हंसती रहीं, शांत रहीं और पूरे विश्वास में दिखीं।
गुरनीत की कहानी
गुरनीत दिल्ली से हैं और स्कूल में टॉपर रही हैं। बोर्ड एग्जाम में टॉप करने से उनको अपने सपने पूरे करने का विश्वास मिला। उन्होंने कहा, 'मैं कोई विशेष रूप से प्रतिभाशाली नहीं हूं। हालांकि मैं बहुत मेहनती थी और लगातार मेहनत करती थी। एक बार मैं कुछ तय कर लेती तो मैं उसे लेकर एकदम दृढ़ हो जाती थी।' गुरनीत की बचपन से विज्ञान में रुचि थी। उनके जैसे हर छात्र के लिए इंजिनियरिंग ही पहला विकल्प होता है। फिजिक्स में उनका अधिक इंट्रेस्ट था। जिसे वह 'कठोर विज्ञान' कहती थीं। पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अपने साथी आईआईटी के छात्रों की लाइन से हटकर अपने आराम के क्षेत्र से निकलते हुए पीएचडी करने का निर्णय किया।
भारत से जर्मनी तक का सफर
साल 2006 में उन्हें जर्मनी की स्टुटगार्ट यूनिवर्सिटी से फुल स्कॉलरशिप ऑफर हुई। चूंकि गुरनीत कभी भारत से बाहर नहीं रहीं तो इस बात को लेकर जहां उनका परिवार थोड़ा चिंतित था। वहीं गुरनीत इस मौके का पूरा फायदा उठाकर दुनिया मे नई संभावनाएं खोजना चाहती थीं। उनके परिवार में किसी ने विज्ञान की पढ़ाई नहीं की थी। उनके पिता ने इकनॉमिक्स की पढ़ाई की थी। मां गृहणी थीं और भाई-बहन फाइनेंस की पढ़ाई कर रहे थे। गुरनीत ने बताया, 'मेरे परिवार को पता नहीं था कि मैं क्या करने जा रही हूं। फिर भी मुझे आखिरकार मेरे परिवार का सपॉर्ट मिल गया। जब मैं उन्हें लैब की फोटो दिखाती तो वे सभी पूछते थे कि क्या ये सुरक्षित है? लेकिन उन्होंने मुझे कभी घर वापस आने के लिए बाध्य नहीं किया।'
जर्मनी में जीने का तरीका
उस दौरान जर्मनी में भारतीय समुदाय बढ़ रहा था और वहां भारत के कुछ स्टूडेंट्स का एक समूह था जो एक्सचेंज प्रोग्राम और इंटर्नशिप कर रहे थे। गुरनीत वहां अपने समय का हर तरह से सदुपयोग करने के लिए तैयार थीं। यहां तक कि जब शुरुआत में चीजें उनके हिसाब से भी नहीं थीं। वह जर्मन भाषा नहीं जानती थीं। जर्मनी की शिक्षा पद्धति भी भारत से बिल्कुल अलग थी। इन सबके अलावा वहां पर सांस्कृतिक भिन्नता भी थी लेकिन गुरनीत आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने बताया, 'मैं जानती थी कि इन शुरुआती समस्याओं के कारण मैं यहां से वापस नहीं जाने वाली। जब एक बार मैंने सब सेटल कर लिया फिर उसके बाद मैंने कठिन मेहनत की और जर्मनी भाषा का कोर्स किया। मेरा शेड्यूल काफी लचीला था जिसकी वजह से मैं काफी यात्रा कर सकी और घूमकर दुनिया को समझ सकी।
जर्मनी में रहकर उन्होंने जिंदगी के कई कठिन बातें सीखीं। उन्होंने आगे कहा, 'मुझे लोगों को सीधे ना कहने की आदत नहीं थी। हम भारतीयों की आदत लोगों से विनम्र रहने की है। हालांकि अब मैं इसकी सराहना करती हूं। यह बातचीत को आसान बनाता है। मैंने जर्मनी में कभी नस्लवाद का सामना नहीं किया। इसके लिए मैं अपने सहयोगियों को धन्यवाद देती हूं। वे बहुत सहयोगी प्रवृति के थे और मैंने कभी खुद को अकेले महसूस नहीं किया। एक साल बाद जब मैं भारत घूमने आई, मैं बिल्कुल बदली हुई थी।'
अमेरिका जाना
अपनी पीएचडी डिग्री लेने के बाद उनके लिए एक और बड़ा निर्णय लेने का समय आया। या तो वे वापस भारत लौट जाएं जहां उस समय उनके लिए मिलने वाले अवसर कम थे। या फिर किसी अंग्रेजी भाषी देश जाएं और कई नए अवसर पाएं। उसी समय के आसपास उन्होंने अमेरिका में काम करने वाले चिरंजीव कालरा से शादी कर ली। साल 2010 में अमेरिका में इमिग्रेशन आज की तुलना में काफी आसान था। जब उन्हें दुनियाभर में ख्याति प्राप्त संस्थान MIT से रिसर्च करने का अवसर मिला तो उन्होंने दूसरी बार सोचा भी नहीं। एमआईटी में दो साल के दौरान उन्होंने प्रायोगिक चुंबकीय अनुकंपन तकनीक (एक्स्पेरिमेंटल मैग्नेटिक रेजोनेन्स टेक्निक) की सहायता से परिमाण सूचना परिवहन के बारे में जांच की।
गुरमीत ने विस्तार से बताया, 'परिमाण (मात्रा) अभिकलन एक दृष्टिकोण है जो परिमाण यांत्रिकी (सुपरपोजिशन और एन्टैंगलमेन्ट) के सिद्धांतों का प्रयोग करके आंकड़ों पर आजकल के कंप्यूटरों की तुलना में अधिक तेजी और कुशलता से काम करता है। क्वॉन्टम कंप्यूटर्स इस फैक्ट का उपयोग करते हैं कि पार्टिकल्स (कण) एक समय में एक से अधिक अवस्थाओं में रह सकते हैं। सूचनाओं को बिट्स (ऑन/ऑफ) के रूप में इकठ्ठा करने के बजाय क्वॉन्टम कंप्यूटर क्यूबिट्स के रूप में सूचना इकठ्ठी करते हैं। क्यूबिट्स एक साथ ऑन और ऑफ हो सकते हैं। यही कारण है कि क्वॉन्टम कंप्यूटर एक समय में लाखों गणनाएं कर सकते हैं। यह दुनिया की प्रभावशाली कंपनियों जैसे- IBM, गूगल और कई सरकारों द्वारा खोजा गया रिसर्च का एक सक्रिय क्षेत्र है।' इसके बाद गुरनीत ने न्यूयॉर्क के फिलिप्स हेल्थकेयर में काम किया। यहां वह MRI सिस्टम के सुपरकोडिंग मैग्नेट के लिए डिजाइन इंजिनयर के तौर पर काम करती थीं।
VHO जॉइन करना
साल 2016 में उन्होंने VHO (वर्जिन हाइपरलूर वन) में प्रॉडक्ट इंजिनियर के तौर पर शामिल हुईं। उन्होंने याद किया, 'तीन साल पहले जब मैं न्यूयॉर्क से लॉस एंजेलिस शिफ्ट हुई तो उस समय VHO न्यूयॉर्क में सबसे रोमांचक स्टार्टअप्स में से एक था। 90 के दशक में दिल्ली में बड़ी होने के कारण मैंने बड़े पैमाने पर ट्रांसपोर्ट ( जैसे- दिल्ली मेट्रो) का आम लोगों की जिंदगी पर होने वाले सकारात्मक प्रभाव का करीब से अनुभव किया। मैंने महसूस कर लिया कि हाइपरलूप तकनीक लोगों के जीवन और जिस शहर में वे रहते हैं, को बेहतर बनाने में सक्षम है। मैं जानती थी कि मुझे इस गेम चेंजिंग वेंचर का हिस्सा होना है।'
फरवरी 2018 में वीएचओ (वर्जिन हाइपरलूप वन) और पीएमआरडीए (पुणे मेट्रोपॉलिटन रीजन डिवेलपमेंट अथॉरिटी) के बीच इस ऐतिहासिक प्रॉजेक्ट को लेकर एक समझौता हुआ। नवंबर 2018 में विस्तृत रिपोर्ट पढ़ने और वीएचओ के फुल स्केल प्रोटोटाइप देखने के बाद सरकार ने पुणे-मुंबई हाइपरलूप प्रॉजेक्ट को एक सार्वजनिक प्रॉजेक्ट घोषित कर दिया। इसमें डीपी वर्ल्ड और वीएचओ को परियोजना का प्रस्तावक बनाया गया। गुरनीत ने बताया कि वीएचओ में उसके सहकर्मियों में से 5-10% भारतीय प्रवासी हैं। गुरनीत हाइपरलूप में 12 सदस्यीय एक टीम का हिस्सा हैं। यह टीम सभी तकनीकों को एक साथ लाती है और प्रॉडक्ट्स की जरूरत के हिसाब से इकठ्ठा करती है। यह टीम भारत के साथ दुबई में भी फैली है। इसके कारण वेब कॉन्फ्रेंस करना गुरनीत के रोज के कामों का हिस्सा बन गया है।
तकनीक में महिलाएं
जब उनसे तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की कम हिस्सेदारी को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने लोगों की मानसिकता को इसका मुख्य कारण बताया। उन्होंने कहा, 'भारत के सामाजिक कारण महिलाओं के काम करने के लिहाज से प्रतिकूल हैं। लेकिन यह समय के साथ बदल जाएंगे। इसके लिए छोटे स्तर पर प्रयास करने होंगे। इसकी शुरुआत उन बच्चों से होगी जो एक ऐसे घर में रहते हों जहां माता और पिता में एक समानता मौजूद हो। अगर ममी काम पर जाती है और पापा घर पर बच्चों का ध्यान रखते हैं तो बच्चे समानता सीखते हैं।'
हाल ही में वीएचओ में गुरनीत की टीम ने 5 से 10 साल की लड़कियों के लिए एक साइंस वर्कशॉप आयोजित की। वर्कशॉप का लक्ष्य हाइपरलूप कॉन्सेप्ट को सभी लोगों तक ले जाना था। गुरनीत ने कहा कि महिला इंजिनियरों के मुद्दे पर एक पैनल डिस्कसन के बाद उन लड़कियों की जिज्ञासाओं और सवालों से मैं काफी प्रसन्न हूं। उनके अनुसार, यह एक पीढ़ीगत बदलाव है और हम इस मामले में सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, 'अधिकतर पैरेंट्स कार्यस्थल पर अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित होते हैं। इसी कारण वे लड़कियों को यात्रा करने देने से भी हिचकते हैं लेकिन इसमें धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है।' महिलाओं की प्रतिभा का उपयोग करना कंपनियों के लिए मुश्किल नहीं होगा। अगर कंपनियां उनके लिए काम के घंटों को फ्लेक्सिबल बना दें।
गुरनीत ने कहा, 'कई बार 6 महीने के लिए मैटरनिटी लीव लेने के बाद भी आप 8 घंटे काम करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होती हैं। एक मां के तौर पर मैं भी इससे गुजरती हूं। बैलेंस बनाना रोज का काम है। यह हमेशा मेरे दिमाग में चलता रहता है कि क्या मैं अपने परिवार पर ठीक से ध्यान नहीं दे रही हूं? क्या मैं अपने काम पर ठीक से ध्यान नहीं दे रही हूं? लेकिन मैं अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी और अपने बच्चों के लिए एक आदर्श बनना चाहती थी।' गुरनीत के 1 साल की बेटी इशनूर और 5 साल का बेटा रबतेज है। गुरनीत कहती हैं कि वे महिलाएं उनकी आदर्श हैं जो काम और जिंदगी में संतुलन के हिसाब से वर्तमान में बदलाव करती हैं।
भारत के लिए बदलाव
अमेरिकी काम करने के तरीके से गुरनीत ने सीखा है कि प्रतिभा को रखने और उसे आगे बढ़ाने के लिए खुलापन, ईमानदारी और विश्वास बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया, 'वीएचओ में वे (प्रबंधन) कभी भी छुट्टी या घर से काम करने की रिक्वेस्ट पर सवाल नहीं उठाते हैं। वे इंसानोंको कर्मचारियों की तरह नहीं बल्कि इंसानों की तरह ही मानते हैं। यहां (भारत में) लिंगानुपात और विविधता अधिक है जो कि टैलंट को अधिक आकर्षित करती है।' उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत भी इसी तरह की प्रक्रियाओं को अपनाएगा।
गुरनीत ने भारत की शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव की सिफारिश की। उन्होंने कहा, 'हमें प्रशिक्षण की जरूरत है और हमारे पाठ्यक्रम में कुछ सुधार के साथ ऐसा हो सकता है। खासकर विज्ञान में, अनुभव सबसे अधिक मायने रखता है। ग्रेडिंग सिर्फ परीक्षा में सवाल हल करने और परीक्षा के लिए सिर्फ रटने तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए। अवधारणाओं को समझने पर जोर दिया जाना चाहिए ना कि कोर्स में पूरी अटेंडेंस पर।'
गुरनीत के पास भारत के लिए बड़ी उम्मीदें और अच्छी योजनाएं हैं। जिस तरह के ट्रैफिक का सामना हमारे मेट्रो शहरों में रहने वाले लोग करते हैं। हाइपरलूप में गुरनीत के काम के बारे में माना जाता है कि वह हमारे जीवन जीने के तरीके को बदल सकता है। हाइपरलूप के इस प्रॉजेक्ट में मुंबई से पुणे के बीच 117.5 किलोमीटर लंबा कोरिडोर बनाना शामिल है। आगे इसे भावी नवी मुंबई एयरपोर्ट से जोड़ने का विकल्प भी है। गुरनीत ने कहा, 'शहरों में काम करने वाले लोगों के लिए आवागमन में रोज 20 मिनट बचाना एक बड़ी बात है। काम करने वाली मांएं अब समय बचा सकती हैं।'
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