गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ा उनके सपनों में पंख लगा रहीं गुरुग्राम की शालिनी
कितनी बार ऐसा होता है कि हमें लगता है, हमें सोसायटी के लिए कुछ करना चाहिए। सड़क पर लालबत्ती पर जब हमारी गाड़ियां रुकती हैं, अचानक बच्चों का एक झुंड गाड़ियों के शीशे के बाहर से हमसे उनके हाथों में लदे सामान खरीदने की अपील करने लगता है। उनकी कातर आंखें, सूखे मुरझाए होंठों से थरथराकर निकलती याचना, उनकी चमकीली और एक ही सेकंड में बहुत कुछ कह डालने वाली आंखें, हमारे दिमागों के एक कोने में कैद हो जाती हैं। फिर ये तस्वीरें दिन भर में बारहा हमारे जेहन में कौंधती हैं, हम विचलित हो उठते हैं।
हमारा दिल भी कह उठता है कि काश, इन बच्चों के लिए हम कुछ कर पाएं। हम चाहते हैं कि हर एक बच्चे तक शिक्षा पहुंचे, हर एक बच्चे को वो सब मिले जिसका वो हकदार है। हर एक बच्चे को अच्छा खाना, जरूरी कपड़े, पढ़ने के लिए स्कूल सब मुहैया हो। हर एक बच्चे का पढ़ने का सपना पूरा हो। हम मदद करना चाहते हैं, लेकिन अपनी व्यस्त जिंदगी से समय नहीं निकल पाते। ऐसे में हम उन तक अपनी मदद पहुंचाते हैं, जो अपना समय निकालकर गरीब बच्चों के लिए कुछ कर रहे हों। ऐसा ही एक प्रयास है ''यत्न''।
'यत्न' को हरियाणा राज्य के गुरुग्राम में रहने वाली शालिनी कपूर ने शुरू किया है। 'यत्न' के स्कूल में बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाया भी जाता है, उनकी हेल्थ का भी ध्यान रखा जाता है, खाने को नई-नई चीजें लाकर दी जाती हैं और जरूरत पड़ने पर कपड़े भी मुहैया कराए जाते हैं। 'यत्न' को शालिनी ने अपने घर से शुरू किया था। आज उनके साथ कुछ लोग और जुड़ गए हैं। 'यत्न' का उद्देश्य इन बच्चों की अंधेरी जिंदगियों में न केवल शिक्षा की रोशनी लाना है बल्कि उनकी छुपी हुई प्रतिभाओं को भी उभारने की कोशिश की जाती है। वो सारी बातें कुछ ही घंटों में सिखा देने की कोशिश होती है, जिनके बारे में वो अपनी जिंदगियों के बाकी घंटों में अनभिज्ञ ही रह जाते हैं। अच्छे संस्कार, साफ-सफाई की आदतें, बातचीत करने का तौर-तरीका इन सबके के बारे में भी 'यत्न' के स्टडी सेंटर में बारीकी से बताया जाता है।
जब मैं 'यत्न' के सेंटर पर गई तो बच्चों को एक शिक्षिका डांस सिखा रही थीं। वहां पर चार-पांच साल से लेकर दस-बारह साल तक के कई सारे बच्चे-बच्चियां बड़ी ही तन्मयता और उत्साह से उन डांस स्टेप को मैच करने की कोशिश कर रहे थे। डांस के बाद रंगीन प्लेकार्ड्स के जरिए बच्चों को अलग-अलग शब्दों की मीनिंग बताई जाने लगी। जब मैंने बच्चों से पूछा कि वो बड़े होकर क्या बनेंगे, तो जोश के साथ फौरन ही किसी ने बताया नर्स तो किसी ने पुलिस ऑफिसर। कई सारे बच्चे बड़े होकर अध्यापक भी बनना चाहते थे। उन सबको ही पढ़ते रहने का बड़ा दिल करता है लेकिन मां-बाप की आर्थिक स्थिति इस बात की इजाजत नहीं देती। उन बच्चों के भी सपनों को पंख लगाने में शालिनी और उनके साथी लगे हुए हैं।
इसी के साथ 'यत्न' ने एक और नेक काम शुरू किया है। 'यत्न' इको फ्रेंडली पेंसिल बनाता है। ये पेंसिल एडिबल चीजों और न्यूजपेपर से बनाई गई है। इन पेंसिलों के पीछे एक कैप्सूल के अंदर बीज रखे गए हैं। 12 पेंसिलों का ये डिब्बा आप केवल डेढ़ सौ रुपए में खरीद सकते हैं। ये पेंसिल 'यत्न' में पढ़ने आने वाले बच्चों के माता-पिता बनाते हैं। आप जितनी पेंसिल खरीदेंगे, बच्चों की शिक्षा में उतनी ही मदद मिलेगी। इस पेंसिल की लागत काफी ज्यादा है, और हर एक डिब्बे पर 'यत्न' को केवल दस से 12 रुपए मिलेंगे। आप चाहें तो पेंसिल के डिब्बों को ज्यादा दामों में भी खरीद सकते हैं। हमारे पास एक दस पेंसिलों वाला छोटा डिब्बा भी है, जिसकी कीमत 120 रुपए है। इस डिब्बे में पेंसिलों के ऊपर बीज नहीं लगा है। इन पेंसिलों की पैकिंग भी काफी आकर्षक है। आप इसे अपनों बच्चों की बर्थ पार्टी में रिटर्न गिफ्ट के तौर पर ले सकते हैं, अपने रिश्तेदारों को गिफ्ट कर सकते हैं। आपके ये छोटे-छोटे प्रयास इन बच्चों की जिंदगियों में बड़ा काम कर जाएंगे।
'यत्न' को अपना स्कूल जारी रखने के लिए आपकी मदद की जरूरत है। आप अपनी मदद 'यत्न' की वेबसाइट http://yatan.org/ पर जाकर पहुंचा सकते हैं.
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