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बिना हाथ-पैर के पूरे परिवार की नैया पार लगा रहे छत्तीसगढ़ के आशीष सोनी

बिना हाथ-पैर के पूरे परिवार की नैया पार लगा रहे छत्तीसगढ़ के आशीष सोनी

Monday December 02, 2019 , 3 min Read

दोनो हाथ-पैर न होने के बावजूद रोजाना कंप्यूटर, मोबाइल, स्कूटर चलाते हुए बलरामपुर (छत्तीसगढ़) की शंकरगढ़ जनपद पंचायत में ऑपरेटर की नौकरी कर रहे आशीष सोनी के हौसले बुलंद हैं। दस हजार की नौकरी के साथ वह 12वीं की परीक्षा की तैयारी भी कर रहे हैं। उनके अलावा परिवार में और कोई कमाने वाला नहीं।

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आशीष टेट्रा एमेलिया सिंड्रोम से पीड़ित हैं। वह अपने घर में अकेले कमाने वाले सदस्य हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से 10वीं की परीक्षा पास की और अब वह 12वीं की पढ़ाई कर रहे हैं। आशीष रोज 18 किलोमीटर स्कूटी चलाकर अपने काम के लिए शंकरगढ़ पहुंचते हैं।

बचपन से ही टेट्रा एमेलिया सिंड्रोम से पीड़ित दिव्यांग आशीष सोनी बलरामपुर (छत्तीसगढ़) की शंकरगढ़ जनपद पंचायत में कंप्यूटर ऑपरेटर हैं। दोनों हाथ-पैर नहीं होने के बावजूद आशीष ने कभी भी खुद को दूसरों से कम नहीं समझा, लगातार मेहनत करते हुए 10वीं की परीक्षा पास की और अब नौकरी के साथ 12वीं की पढ़ाई भी कर रहे हैं। कहते हैं कि हौसले बुलंद हो तो रास्ते में कितनी भी मुश्किलें आएं, इंसान अपनी मंजिल पा ही लेता है। ऐसी ही मिसाल पेश की है आशीष ने।


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कुछ अलग करने की चाह ने उनके हौसले को ऐसी उड़ान दी कि आज वह लोगो के लिए एक प्रेरणास्रोत बन चुके हैं। हाथ-पैर न होने के बावजूद वह आम लोगों की तरह सारे काम करते हैं। कंप्यूटर, मोबाइल, यहां तक कि स्कूटी भी चला लेते हैं। टेट्रा एमेलिया सिंड्रोम एक बहुत ही दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी है।


इस बीमारी के कारण बिना हाथ-पैर के पैदा होने के साथ ही पीड़ित के शरीर में और भी कई तरह की विकृतियां पैदा कर देती है। कई बार तो ये बीमारी जीवन को खतरे में डाल देती है। अभी तक इसका कोई इलाज नहीं है।


आशीष बताते हैं,

'अपनी दसवीं की परीक्षा पास कर ली है। हर महीने 10 हजार रुपये कमाता हूं। ऑफिस से मेरा घर 15 किलोमीटर की दूरी पर है और मैं अपना स्कूटर चलाकर ऑफिस आता हूं। जो कुछ भी मैं कमाता हूं, उसका एक बड़ा हिस्सा आने-जाने में ही खर्च हो जाता है।'


वह अब 12वीं की परीक्षा देंगे। वह अपनी मदद के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते हैं। अपने अकेले दम पर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। जिले के अधिकारी भी उनकी तारीफ करते नहीं थकते हैं। उनके पिता बताते हैं कि आशीष चल-फिर नहीं सकते, इसलिए, उनको उठाकर लाना और ले जाना पड़ता है। वह सहायता करने के लिए बेटे के साथ रोजाना कार्यालय तक जाते हैं। वही परिवार के लिए पैसे कमाने वाला एकलौता इंसान है। उन्हें पूरे दिन आशीष के साथ रहना पड़ता है। वह चाहते हैं कि अगर जनपद में ही उन्हे भी कोई छोटा-मोटा काम मिल जाए तो, उनकी घरेलू माली हालत आसान हो सकती है। 


जब कभी जीवन में निराश और हताश होने लगें तो अपने आसपास देखें कि आशीष जैसा कोई न कोई ऐसा शख्स जरूर मिल जाएगा, जो औरों के हौसले का सबब बन जाता है।


आशीष के साथ काम करने वाले लोग भी उनके हुनर और हिम्मत की तारीफ करते हुए कहते हैं कि बिना हाथ-पैर के सारे काम करते हुए वह स्वयं को कभी भी असहज महसूस नहीं करते हैं। उन्हें ऐसे हालात में भी काम करते देख वे हैरान हो जाते हैं।


उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई से बताया,

'जन्म से ही मेरे हाथ और पैर नहीं हैं लेकिन मैं अपनी पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी भी कर रहा हूं।'