तीसरी आईएएस बहन केशनी आनंद भी बन गईं हरियाणा की मुख्य सचिव
"हरियाणा की तीन आईएएस सगी बहनों में सबसे बड़ी मीनाक्षी आनंद चौधरी, मझली उर्वशी गुलाटी और सबसे छोटी केशनी आनंद अरोड़ा का राज्य का मुख्य सचिव बन जाना न संयोग है, न विडंबना। ये तो उस टैलेंट की धाक है, जो उनके पिता प्रोफ़ेसर जीसी आनंद की कोशिशों से आज 'असंभव' की तरह मुमकिन हो सकी है।"
यह न संयोग है, न विडंबना कि कहां तो हर टैलेंटेड युवा प्रशासनिक नौकरियों के लिए पूरा दम साधे रहता है, उनमें कोई-कोई टारगेट अचीव कर पाता है और कहां एक ही परिवार के कई-कई सदस्य आईएएस, आईपीएस, पीसीएस हो जाते हैं। हरियाणा की तीन सगी बहनों के राज्य की मुख्य सचिव बन जाने के बाद एक बार फिर से इस तरह का अचीवमेंट सुर्खियों में है।
अब तक प्रतापगढ़ (उ.प्र.) के गांव लालगंज के चार भाई-बहन योगेश मिश्रा, क्षमा, माधवी, लोकेश मिश्रा के अलावा के बरेली (उ.प्र.) के चंद्रसेन सागर की तीन बेटियां अर्जित, अर्पित और आकृति, पाली (राजस्थान) में जलदाय विभाग के एईएन सोमदत्त नेहरा का एक बेटा और दो बेटियां आईएएस-आईपीएस बन कर लोगों को अचंभित कर चुके हैं। जयपुर (राजस्थान) के आईएएस सांवरमल वर्मा के भाई तो आईएएस हैं ही, बेटा कनिष्क भी आईएएस बन चुके हैं।
जौनपुर (उ.प्र.) के गांव माधो पट्टी के कुल 75 परिवारों में से हर घर में कोई न कोई, पीसीएस, आईएएस है। बेरोजगारी की भयावहता के दौर में ऐसी कामयाबी एक सवाल जरूर खड़ा करती है कि क्या प्रतिभाएं भी सामूहिक अंदाज में पारिवारिक विरासत हो सकती हैं?
इस मायने में हरियाणा तो देश में मिसाल ही बन गया है। देश में ऐसा पहली बार हुआ है तीन बहनें अपने ही राज्य में मुख्य सचिव बनी हैं। सन् 1983 बैच की आईएएस केशनी आनंद अरोड़ा को तो हाल ही में हरियाणा का 33वां मुख्य सचिव बनाया गया है। इससे पहले 1969 बैच की आईएएस उनकी बड़ी बहन मीनाक्षी आनंद चौधरी राज्य की की पहली महिला मुख्य सचिव रह चुकी हैं। उसके बाद 1975 बैच की आईएएस मझली बहन उर्वशी गुलाटी राज्य की मुख्य सचिव बनीं।
केशनी का जन्म 20 सितंबर 1960 को पंजाब में हुआ था। वह 16 अप्रैल 1990 को प्रदेश की पहली महिला उपायुक्त बनी थीं। इस पद पर रहते हुए उन्हे कई बड़े अवॉर्ड भी मिले। आईएएस की ट्रेनिंग के दौरान जब उनको काम काज के बारे में बताया जा रहा था तो एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन पर तंज़ कसा था कि कोई आपको डिप्टी कमिश्नर की पोस्ट थोड़े ही मिलने जा रही है। तब केशनी ने जवाब देते हुए कहा था कि आप चिंता न करें, मैं एक दिन जरूर डिप्टी कमिश्नर बनूंगी। लोग तो इस बात पर शर्त लगाते थे कि किसी महिला को डिप्टी कमिश्नर या दूसरे अहम पद नहीं मिल सकते हैं।
जब हरियाणा अलग राज्य बना, उसके ढाई दशक बाद, केशनी राज्य की पहली महिला डिप्टी कमिश्नर बनीं, और अब इसी सप्ताह वह राज्य की मुख्य सचिव भी बन गई हैं। उनके परिवार के लिए वह दिन इसलिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया कि अब तीसरी बहन ने भी मुख्य सचिव का ओहदा पा लिया है।
केशनी आनंद, तीन बहनों की इस कामयाबी का श्रेय ख़ासकर अपने पिता प्रोफ़ेसर जीसी आनंद को देते हुए बताती हैं कि ये उनके पिता का सपना था। उन्होंने घर में ऐसा माहौल बनाया था जिससे हमें अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने का मौक़ा मिला। बंटवारे के समय उनका परिवार रावलपिंडी (पाकिस्तान) से भारत आ गया था। यद्यपि उन दिनों उनके घर के हालात उतने अनुकूल नहीं थे। जब उनकी बड़ी बहन मीनाक्षी ने 10वीं क्लास पास की तो उनके रिश्तेदारों ने उनके माता-पिता पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि अब वे उनकी शादी कर दें लेकिन मां का मानना था कि बुरे वक़्त में पढ़ाई- लिखाई ही अंततः काम आती है। इसलिए पहले पूरी पढ़ाई, फिर शादी-ब्याह। वैसे भी हमारे समाज में लोग महिलाओं को अहम पदों पर बैठते हुए देखने के आदी नहीं हैं। हमारे राज्य में लैंगिक विषमता भी इस सोच के पीछे एक बड़ी वजह है। ऐसे में एक ही परिवार की तीन सगी बहनों का आईएएस बनना और फिर बाद में तीनों का मुख्य सचिव बन जाना कोई मामूली बात नहीं है।
केशनी आनंद बताती हैं कि जब उनको पहली बार डिप्टी कमिश्नर बनाया गया तो उनसे कहा गया था कि अगर वह बढ़िया प्रदर्शन नहीं करेंगी तो फिर किसी और महिला अफ़सर को ये पोस्ट नहीं मिलेगी। अगले साल जब ट्रांसफ़र लिस्ट निकली तो उन्हे ये देखकर ख़ुशी हुई कि उनमें से दो महिलाओं को डिप्टी कमिश्नर बना दिया गया। समाज में महिलाओं को लेकर आज हालात बेहतर ज़रूर हुए हैं लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है। राज्य में लिंग अनुपात थोड़ा बेहतर हुआ है लेकिन खासकर लोगों की मानसिकता आज भी पूरी तरह महिलाओं के अनुकूल नहीं है। वैसे भी नौकरशाही में महिलाओं के लिए स्थितियां कभी आसान नहीं रही हैं।
अगर महिलाओं को सही माहौल मिले तो वो कुछ भी हासिल कर सकती हैं। महिलाओं को हमेशा अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है। उन्हे अपने पुरुष अधिकारियों को कहना पड़ता है कि वे उन्हें एक अधिकारी की तरह समझें, न कि महिला और पुरुष की तरह।