दरभंगा की रुचि वर्मा ने नौकरी छोड़ 2.5 लाख रु. में शुरू किया अपना फैशन ब्रांड, आज है 1.8 करोड़ का टर्नओवर
बिहार के एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की ने अपनी मेहनत और जज्बे से शुरू किया बिजनेस. इस साल पांच करोड़ के टर्नओवर तक पहुंचने का लक्ष्य.
जब दुनिया में पैनडेमिक फैला था, लॉकडाउन लगा हुआ था, सैकड़ों लोगों के रोजगार छिन गए थे तो 32 साल की रुचि वर्मा ने वार्नर ब्रदर्स, डीसी मार्वल और डिजनी के लिए डिजाइंस बनाने वाली मल्टीनेशनल कंपनी बायो वर्ल्ड में जमी-जमाई नौकरी छोड़कर अपना खुद का बिजनेस शुरू करने का फैसला किया. ढ़ाई लाख रु. की निजी सेविंग के साथ शुरू हुआ यह ब्रांड आज 1.8 करोड़ रुपए के सालाना टर्नओवर को छू रहा है. रुचि वर्मा का लक्ष्य अगले साल अपने ब्रांड को 5 करोड़ रुपए के टर्नओवर तक पहुंचाना है.
ये कहानी शुरू होती है दरभंगा, बिहार से
सन 1888. बिहार का जिला दरभंगा. एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार में रुचि का जन्म हुआ. खाता-पीता नौकरीपेशा परिवार था. पिता, चाचा सब बैंक में नौकरी करते थे. घर में सात पुश्तों में कभी किसी ने बिजनेस नहीं किया था. खेती-किसानी करने वाले परिवार के लिए बेहतर, शहरी जिंदगी का रास्ता शिक्षा के जरिए मुमकिन हुआ. इसलिए बच्चों की पढ़ाई पर काफी जोर रहता. रुचि पढ़ने में अच्छी थी. उसे शुरू से यही सिखाया गया कि पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होना है.
रुचि को पता नहीं था कि 12वीं के बाद उन्हें क्या करना है. पढ़ाई में अव्वल सारे बच्चे साइंस और मैथ्स पढ़ते थे. रुचि ने भी सोचा कि वो मैथ्स पढ़ेगी. लेकिन पिता अपनी बेटी की अभिरुचियों और झुकाव को जितना समझते थे, उन्होंने उसे गणित की जगह आर्ट्स पढ़ने की सलाह दी. रुचि बचपन से चित्र बनाती, गुडि़या बनाती. हाथों में कला थी. “तुम क्रिएटिव हो. आर्ट्स में आगे जाओगी,” पिता ने समझाया.
साल 2008, दरभंगा से निफ्ट मुंबई का लंबा सफर
रुचि ने निफ्ट मुंबई के लिए तैयारी शुरू की. पहली ही बार में एंट्रेंस पास कर लिया और साल 2008 में ट्रेन पकड़कर दरभंगा से मुंबई पहुंच गई. बिहार के छोटे से शहर से आई लड़की के लिए ये बिलकुल नई दुनिया थी. उस चमकीले शहर में बहुत कुछ था, जो ध्यान भटका सकता था. लेकिन महाभारत के अर्जुन की तरह रुचि को सिर्फ चिडि़या का आंख दिखाई देती थी.
निफ्ट में चार साल बिताने थे. रुचि ने निट विअर का कोर्स लिया, लेकिन जितना परीक्षा में पास होने के लिए जरूरी था, उससे कहीं ज्यादा पढ़ा, जाना और समझा. पढ़ाई के अलावा जीवन में और कोई भटकाव नहीं था. कोर्स का फोकस निट विअर पर था, लेकिन रुचि हर तरह के फैब्रिक, डिजाइन, स्टाइल को समझने और उसकी गहराई में जाने की कोशिश करतीं.
2012 में कोर्स खत्म करने के बाद मुंबई के वाशी में ‘द शर्ट कंपनी’ में पहली जॉब लगी. वहां वह मैटरनिटी रेंज के कपड़ों पर काम करती थीं. उसके बाद अगली नौकरी थी टाटा के रीटेल स्टोर वेस्टसाइड में, जहां रुचि किड्स सेक्शन की इंचार्ज थीं. 2016 में वह दिल्ली आ गईं और यहां स्पेंसर कंपनी ज्वॉइन कर ली.
नौकरी की सुरक्षा में दिल नहीं लगता था
कॅरियर अच्छा चल रहा था. एक के बाद एक बड़े ब्रांड्स की नौकरियां रुचि के दरवाजे पर दस्तक दे रही थीं. अनुभव का दायरा और सैलरी दोनों ही बढ़ रहे थे. लेकिन कुछ था, जो भीतर से साल रहा था. रुचि कहती हैं, “कॉरपोरेट की नौकरी में मेहनत बहुत है और क्रिएटिव संतोष बिलकुल नहीं. हर काम मशीन की तरह लगता है. दिन के अंत में ऐसा नहीं महसूस होता कि आज कुछ नया किया, कुछ बेहतर किया. जीवन में कुछ नया जुड़ा. रोज की मशीनी दौड़. न छुट्टी, न आराम.”
रुचि कहती हैं कि सिक्योरिटी और स्टेबिलिटी चाहिए तो नौकरी बहुत अच्छी चीज है, लेकिन अगर आप क्रिएटिव बने रहना चाहते हैं, कुछ नया रचना चाहते हैं, अपनी कला लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं तो कॉरपोरेट में उसके लिए कोई जगह नहीं है. वहां इतने प्रोटोकॉल और इतने बैरियर हैं कि सिर्फ ब्रांड ही ब्रांड होगा और आप कहीं नहीं होंगे. कागज पर अपने आइडिया, मेहनत और कला से डिजाइन बनाई तो आपने है, लेकिन नाम सिर्फ ब्रांड का जाएगा. इस ब्रांड की चकाचौंध में मेरे भीतर का कलाकार कहीं खो गया था. उसे फिर से जिंदा करने के लिए उस दुनिया से दूर जाना जरूरी था.
रुचि कहती हैं, “मैं अपना कुछ करना चाहती थी, लेकिन मुझे डर भी लगता था. मैं कपड़े डिजाइन कर सकती थी, लेकिन ये नहीं पता था कि उसे बेचना कैसे है. चूंकि मेरा प्रोफेशन ही यही था तो अकसर मैं ऑनलाइन ब्रांड्स के कलर, डिजाइन, फैब्रिक आदि देखा करती थी. एक दिन यूं ही रिसर्च करते हुए मैंने पाया कि कितने सारे नए D2C ब्रांड ऑनलाइन अपने प्रोडक्ट बेच रहे थे.”
नौकरी छोड़ने की तैयारी
2019 के अंत में जब रुचि नौकरी छोड़ने की सोच रही थीं, तब वो बायो वर्ल्ड नाम के एक इंटरनेशनल ब्रांड में नौकरी कर रही थीं. वही बायो वर्ल्ड, जिसने वार्नर ब्रदर्स, डीसी मार्वल और डिजनी के लिए डिजाइंस बनाए हैं. दुनिया भर से कोरोना वायरस की खबरें आनी शुरू हो गई थीं. रुचि अब भी रोज ऑफिस जा रही थीं. लेकिन ऑफिस से लौटकर और वीकेंड में उनका पूरा समय इस रिसर्च में बीतता कि अगर अपना बिजनेस शुरू करना है तो वो क्या होगा.
रुचि दुनिया भर की स्टार्टअप से जुड़ी मैगजीन और आर्टिकल पढ़तीं, यूट्यूब वीडियो देखतीं, रिसर्च करतीं. एक हजार सवाल थे, जिनका जवाब खोजा जाना था. ऑनलाइन प्रोडक्ट कैसे बेचते हैं, बिजनेस मॉडल क्या होता है, ब्रांड रजिस्टर कैसे करवाते हैं, टैक्स कैसे भरते हैं, प्रोडक्ट शूट कैसे होता है, मॉडल कैसे मिलती हैं, वगैरह-वगैरह. एक फैशन ब्रांड का आइडिया धीरे-धीरे आकार ले रहा था.
10 डिजाइन से शुरू हुआ था मैटरनिटी फैशन ब्रांड आरुवि
जनवरी, 2020 में आखिरकार उन्होंने नौकरी को विदा कहा. अब तक सारी बुनियादी तैयारियां पूरी हो गई थीं. रुचि एक नया मैटरनिटी फैशन ब्रांड शुरू करने जा रही थीं. नाम रखा- “आरुवि रुचि वर्मा.” अपनी सेविंग में से ढ़ाई लाख रुपए खर्च किए. निफ्ट का और इतने सालों की नौकरी का अनुभव यहां काम आया. मैटरनिटी ड्रेस तो उन्होंने पहले भी डिजाइन की थीं, फर्क सिर्फ इतना था कि पहले उस पर ब्रांड का नाम होता था, अब उनका खुद का नाम था.
मैटरनिटी विअर ही क्यों? यह सवाल पूछने पर रुचि कहती हैं, “बहुत सारी स्त्रियां जीवन में एक बार तो इस अनुभव से गुजरती हैं. उस दौरान उनके शरीर का आकार बदलता है, उनकी जरूरतें बदलती हैं. पुराने कपड़े फिट नहीं होते. मैटरनिटी का मतलब बड़े आकार के झोले जैसे कपड़े पहनना नहीं होता. मैटरनिटी में एक खास तरह के आकार और डिजाइन के कपड़ों की जरूरत होती है. हमारे यहां ज्यादा ब्रांड हैं नहीं, जो औरतों की इन जरूरतों को पूरा करते हों. आप ऑनलाइन मैटरनिटी विअर ढूंढने जाइए. आपको ज्यादा ऑप्शन भी नहीं मिलेंगे.” रुचि को लगा कि बाजार में इस प्रोडक्ट की डिमांड है. जरूरत इस डिमांड को पूरा करने की है.
शुरुआत छोटे स्तर पर हुई. रुचि ने सिर्फ 10 डिजाइन बनाए. एक वेंडर को जानती थीं. उनसे संपर्क किया और 15 पीस बनाने को कहा. वेंडर बोला, “मैडम हमें 5-5 लाख पीसेज का ऑर्डर मिलता है. 15 पीस कौन बनाएगा?” ऐसा वेंडर ढूंढना भी एक चुनौती थी, जो शुरू में सिर्फ 15 पीस तैयार करके दे दे. आखिरकार एक वेंडर राजी हो गया. तब तक लॉकडाउन लग गया था. मूवमेंट सीमित हो गया था. सारे काम फोन पर हो रहे थे. शुरुआती 15 पीस बनकर आए. यह 30 जुलाई, 2020 की बात है. सबसे पहले फ्लिपकार्ट और अमेजन पर डिजाइन अपलोड किए. 24 घंटे के अंदर पहला ऑर्डर आ गया. रुचि की खुशी का ठिकाना नहीं था.
रुचि कहती हैं, “वो तारीख और उस कस्टमर का नाम, पता मुझे आज भी याद है. छत्तीसगढ़ की एक महिला थीं. नाम था मालती. उन्होंने काले रंग की फीडिंग ड्रेस ऑर्डर की थी. वो मेरे लिए बहुत खास है. वो मेरी पहली कस्टमर थी.”
महीना गुजरते-गुजरते आरुवि के तकरीबन सारे पीस बिक गए. बहुत अच्छा रिस्पांस रहा. लोगों ने पॉजिटिव रिव्यूज लिखे. एक महीने के भीतर आरुवि मैटरनिटी ब्रांड मिंत्रा, आजियो, नायका, फर्स्ट क्राय और मीशो पर भी उपलब था.
अगला लक्ष्य पांच करोड़ रुपए
2020 का पूरा साल तो आरुवि को अपने पैरों पर खड़ा करने में लग गया. आज आरुवि के औसत 100 ड्रेस रोज बिकते हैं. वर्ष 2021-22 में 1.8 करोड़ रुपए का टर्नओवर रहा. रुचि कहती हैं, “अभी तो ये शुरुआत है. इस साल हमें टर्नओवर के 5 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है. हमने काम में जान लगा दी है.”
रुचि की यह कहानी छोटे शहरों और साधारण परिवेश से आई बहुत सारी लड़कियों के लिए प्रेरणा हो सकती है. अगर मन में चाह हो और मेहनत का जज्बा तो रास्ते खुद-ब-खुद बनते जाते हैं. दुनिया तेजी से बदल रही है. अब अपना बिजनेस शुरू करने के लिए जरूरी नहीं कि आपके खानदान में चार पीढि़यों से बिजनेस की परंपरा रही हो. अगर आपके पास आइडिया है, बाजार की समझ है, जुनून है तो कुछ भी असंभव नहीं. रुचि कहती हैं, “अगर मैं कर सकती हूं तो कोई भी लड़की कर सकती है.”