बियर बाजार की भी प्यास बुझाने लगा हिमालय का पानी
वैसे तो हिमालय के पानी से करीब एक अरब लोगों की जीविका चलती है लेकिन अब भूटान की देसी कंपनी उसी पानी से प्रीमियम बियर बना कर मालामाल हो रही है। दिल्ली के बाद अब उसका रुख मुंबई और बेंगलुरु की ओर है।
हिमालय की जैव विविधताओं में नदियां, जल प्रपात, विशाल ग्लेशियर, नैनीताल, मानसरोवर, हेमकुंड, गंगोत्री-जमनोत्री, झेलम, सिंध, सतलज की अनिर्वचनीय प्राकृतिक श्रृंखलाएं पूरब पश्चिम के ओर छोर को जोड़ती हैं। जो तमाम हिमखंड नदियों को भरते हैं, वह औषधीय पानी कई मुल्कों के बाजार को मालामाल कर रहा है। एशिया की कम से कम दस बड़ी नदियाँ हिमालय से निकलती हैं, जिन पर करीब एक अरब से भी ज्यादा लोगों की जीविका चलती है।
हिमालयी पानी के इस प्राकृतिक दोहन में एक और नई कड़ी जुड़ गई है बियर बनाने की। भूटान की देसी कंपनी हिमालय के पानी से प्रीमियम बियर बना कर अलग बाजार स्थापित कर रही है। एल्फा और कटिपतंग ने पिछले कुछ महीनों में मेड इन भूटान बियर बेचना शुरू किया है, जबकि सिम्बा, आर्बर ब्रवरिंग कंपनी और व्हाइट रिनो विस्तार की संभावनाएं खोज रही हैं। कंपनियों को भूटान में बियर बनाना यूरोपीय देशों की तुलना में सस्ता पड़ रहा है।
यद्यपि भारत में हेवर्ड्स, गॉडफादर, किंगफ़िशर, नॉक आउट, कल्याणी ब्लैक लेबल, किंग्स, ताज महल, रॉयल चैलेंज, बुलेट, मैगपाई रॉयल स्ट्रॉन्ग, गोवा प्रीमियम, बीरा 91 आदि का बियर उद्योग 10 प्रतिश से अधिक की वार्षिक दर के साथ तेजी से बढ़ रहा है लेकिन भूटान में हिमालय के प्राकृतिक झरने का पानी, बियर निर्माताओं के ब्रांड को अलग करने और प्रीमियम मूल्य का अलग से फायदा दे रहा है। भारत की तुलना में भूटान का पानी उच्च गुणवत्ता वाला है। बियर के स्वाद को प्रभावित करने में इसीलिए वहां का हिमालयी पानी अहम घटक बन गया है।
साथ ही क्राफ्ट बियर से लेकर लाइसेंस की खरीद तक में भूटान की छूट इन कंपनियों को लुभा रही है। चूंकि भूटान से ट्रांसपोर्टेशन की अवधि कुछ ही घंटों की है, इसलिए वहां हिमालय के पानी से उत्पादित सस्ती बीयर का बाजार तेजी से फैलता जा रहा है। इस माह बियर का नया संस्करण लांच हो रहा है। अगस्त तक हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और उत्तर-पूर्व में इसके फैल जाने की योजना है। इस बाजारवादी विस्तार की एक और वजह है, भूटानी बियर का अनोखा स्वाद। इसलिए उससे प्रतिस्पर्धा में टिक पाना कठिन होता जा रहा है। क्राफ्ट बियर ब्रांड कटि पतंग ने सात महीने पहले दिल्ली में अपनी शुरुआत की थी। वह अगले दो महीनों में मुंबई और बेंगलुरु में वितरण का विस्तार करने जा रही है।
भारत में बियर उद्योग के लिए विकास दर ब्रुअरीज और बीयर ब्रांडों के विनिर्माण और फ्रैंचाइज़िंग के लिए उपलब्ध अवसरों के विशाल दायरे का संकेत है। बियर उद्योग अत्यधिक विनियमित है। भारत में 26 अलग-अलग शराब-विशिष्ट टैक्स हैं। यह उपभोक्ता मूल्य का लगभग 50 प्रतिशत है, जो दुनिया में सबसे अधिक है लेकिन इसके साथ ही बार कोड का फंडा बियर बाजार की मुसीबत बना हुआ है। दूसरी तरफ तमाम बड़ी बियर निर्माता कंपनियां गायों और पशुओं के चारे के इंतजाम में अपना बहुत बड़ा योगदान दे रही हैं।
ये कंपनियां बड़ी मात्रा में बचे हुए अनाज की आपूर्ति पशु आहार के लिए कर रही हैं। मुख्यतः बियर बनाने में जौ और गेहूं का इस्तेमाल हो रहा है। इसके निर्माण में जो अनाज बचता है, वह स्थानीय किसानों, डेरियों और पशुशालाओं को मामूली दाम में बेच दिया जा रहा है। पिछले साल रोजाना सात हजार किलो से अधिक बचा हुआ माल्ट मामूली दामों में किसानों को बेचा गया। नियमित रूप से बिकने वाला पशु आहार बियर बनाने में बचे अनाज के मुकाबले लगभग पांच गुना महंगा पड़ता है।