216 साल पहले मराठों के खिलाफ अंग्रेजों के युद्ध को पैसा पहुंचाने के लिए बना था भारत का सबसे पुराना बैंक ‘SBI’
भारतीय राजाओं के खिलाफ विद्रोह को कुचलने, गदर को खत्म करने और भारत को अपना गुलाम बनाए रखने के लिए आज से 216 साल पहले 1806 में अंग्रेजों ने इस बैंक की नींव डाली थी.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का 43वें नंबर का सबसे बड़ा बैंक है. भारतीय बाजार का 23 फीसदी मार्केट शेयर और 25 फीसदी एसेट SBI के पास है. SBI में ढाई लाख लोग काम करते हैं और यह देश का सबसे बड़ा इंप्लॉयर भी है.
बहुत कम लोग जानते हैं कि इस देश के पब्लिक सेक्टर के सबसे बड़े बैंक की शुरुआत कैसे हुई थी. ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में बना यह बैंक भारतीयों को गुलाम बनाए रखने की कोशिश में अंग्रेजों का एक हथियार था. भारतीय राजाओं के खिलाफ विद्रोह की आवाज को कुचलने, गदर को खत्म करने और भारत को अपना गुलाम बनाए रखने के लिए आज से 216 साल पहले 1806 में अंग्रेजों ने इस बैंक की नींव डाली थी, लेकिन तब उसका नाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया न होकर ‘बैंक ऑफ कलकत्ता’ हुआ करता था.
अंग्रेजी सरकार का गवर्नर जनरल रिचर्ड वेलेस्ली
सन् 1798 में अंग्रेज जनरल रिचर्ड वेलेस्ली भारत का गर्वनर जनरल बनकर हिंदुस्तान आया. 1799 में उसकी सेना ने मैसूर पर हमला कर वहां के राजा टीपू सुल्तान को युद्ध में हरा दिया. उसके बाद 1803 में शुरुआत हुई दूसरे अंग्रेज-मराठा युद्ध की.
इन दोनों युद्धों के दौरान वेलेस्ली को युद्ध के लिए आर्थिक सहायता पहुंचाने का काम अंग्रेज एक बैंकिंग सिस्टम के जरिए कर रहे थे, लेकिन तब तक आधिकारिक रूप से उसका नाम नहीं पड़ा था. दोनों युद्धों के लिए इंग्लैंड से लाखों पाउंड वेलेस्ली की सेना के खाते में आ रहे थे. था तो यह हिंदुस्तान का ही पैसा, जो अंग्रेज यहां से लूटकर ले जा रहे थे.
अंग्रेजों और मराठों के बीच ऐतिहासिक युद्ध शुरू होने के बाद, जिसका अंत मराठों की हार और अंग्रेजों के साथ एक अपमानजनक संधि में हुआ था, अंग्रेजों ने वेलेस्ली को पैसा पहुंचा रहे उस इंस्टीट्यूशन को बैंक में तब्दील कर दिया. नाम पड़ा 'बैंक ऑफ कलकत्ता.' 2 जनवरी, 1809 को उस बैंक का नाम बदलकर 'बैंक ऑफ बंगाल' कर दिया गया.
रंगून, पटना, मिर्जापुर और बनारस में बैंक की शाखाएं
भारतीय विद्रोहियों के खिलाफ युद्ध को फंड करने के मकसद से शुरू हुआ बैंक धीरे-धीरे अंग्रेजों के व्यावसायिक और सामरिक हितों को पूरा करने के साथ-साथ बैंकिंग का काम भी करने लगा था. लेकिन इसकी शुरुआत ढंग से 1857 के गदर को कुचलने के बाद हुई. मई, 1857 में शुरू हुई भारत की आजादी की पहली लड़ाई एक साल बाद नवंबर, 1858 में अंग्रेजों द्वारा सफलतापूर्वक कुचल
दी गई थी.
उसके तीन साल बाद 1861 में रंगून में बैंक ऑफ बंगाल की पहली ब्रांच खुली. उसके बाद 1862 में पटना, मिर्जापुर और बनारस में भी बैंक की शाखाएं खुलीं. गदर के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म हो गया था और सत्ता की बागडोर सीधे इंग्लैंड की महारानी के हाथ में चली गई थी. तमाम शहरों में इस बैंक की शाखाएं खोलने का मकसद अंग्रेजों के हाथ सभी इलाकों में आर्थिक रूप से मजबूत करना और साथ ही अंग्रेजी सरकार को लेजिटमाइज करने की कोशिश भी था.
भारत के प्रसिद्ध लोग इस बैंक के कस्टमर थे
बैंक ऑफ बंगाल की सेवाएं लेने वालों में उस जमाने के प्रतिष्ठित लोगों का नाम शुमार था. पॉलिटिकल लीडर दादाभाई नौरोजी, वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु, नोबेले विजेता रवींद्रनाथ टैगोर, समाज सुधारक ईश्वरचंद विद्यासागार और भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के खाते बैंक ऑफ बंगाल में थे. आज स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बहुत गर्व से अपने प्रतिष्ठित खाताधारकों की फेहरिस्त में इन लोगों का नाम शुमार करता है.
दो और बैंकों को मिलाकर बना इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बैंक ऑफ बंगाल के बाद दो और प्रेसिडेंसी बैंकों की स्थापना की, 1840 में 'बैंक ऑफ बॉम्बे' और 1843 में 'बैंक ऑफ मद्रास.' इन अंग्रेजी बैंकों के बरक्स कुछ भारतीयों ने भी प्राइवेट बैंकिंग के क्षेत्र में हाथ आजमाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.
1829 में रवींद्रनाथ टैगोर के दादा और उस जमाने के नामी बिजनेसमैन द्वारकानाथ टैगोर ने 'यूनियन बैंक लिमिटेड' की स्थापना की, लेकिन 1948 तक वह बैंक दीवालिया हो गया.
1921 में अंग्रेजों ने बैंक ऑफ बंगाल का बैंक ऑफ बॉम्बे और बैंक ऑफ मद्रास के साथ विलय कर दिया और नया नाम पड़ा 'इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया.'
आजादी के बाद बना स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
आजादी के 8 साल बाद 1955 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का 60 फीसदी स्टेक अपने अधिकार में ले लिया और 30 अप्रैल को उसका नाम बदलकर 'स्टेट बैंक ऑफ इंडिया' कर दिया गया. लेकिन चूंकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारतीय बैंकिंग की केंद्रीय रेगुलेटरी बॉडी है, इसलिए किसी पब्लिक सेक्टर बैंक का आधिकारिक स्टेक उसके हाथ में होना ठीक नहीं था. यहां हितों का टकराव हो सकता था. इसलिए वर्ष 2008 में भारत सरकार ने SBI में रिजर्व बैंक का स्टेक अपने अधिकार में ले लिया और इस तरह SBI पूरी तरह भारत सरकार के अधीन एक पब्लिक सेक्टर बैंक बन गया.