डॉ. जाकिर हुसैन: वो राष्ट्रपति जिन्होंने देश को जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे विश्वविद्यालय की सौगात दी
8 फरवरी, 1897 को जन्मे जाकिर हुसैन को 1967 में देश का तीसरा और पहला मुस्लिम राष्ट्रपति बनाया गया. राष्ट्रपति पद संभालने के दो साल बाद ही 3 मई, 1967 को उनकी मृत्यु हो गई. जन्म के दौरान 1962 में उन्हें भारत रत्न और मृत्यु के बाद उन्हें 1983 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया.
जाकिर हुसैन ने 13 मई साल 1967 को भारत के तीसरे और पहले मुस्लिम राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी. राष्ट्रपति बनने से पहले जाकिर हुसैन उप राष्ट्रपति के पद पर नियुक्त थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री चाहती थीं कि उन्हें राष्ट्रपति बनाया जाए.
जबकि, 1967 में तत्कालीन कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन दोबारा राष्ट्रपति बनाना चाहते थे. हालांकि काफी खींचतान के बाद इंदिरा गांधी डॉक्टर जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति बनवा पाने में कामयाब रहीं. जाकिर 3 मई, 1969 तक राष्ट्रपति बने रहे.
डॉक्टर जाकिर हुसैन 8 फरवरी, 1897 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में कैमगंज जिले में पैदा हुए थे. उन्हें एक सफल राष्ट्रपति होने के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भी जाना जाता है.
करियर और पढ़ाई
डॉक्टर जाकिर ने अपनी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जो उस समय एंग्लो-मुहम्मदन ओरिएंटल कॉलेज के नाम से जानी जाती थी वहां से उच्च शिक्षा हासिल की.
जाकिर कॉलेज के दिनों में ही छात्र संघ नेता के तौर पर पूरे देश में लोकप्रिय हो चुके थे. हालांकि, राजनीति के अलावा शिक्षा हमेशा से उनके लिए एक प्रखर मुद्दा रही थी. कॉलेज से निकलने के बाद जाकिर एक युवा समूह के नेता बन गए जिसने बाद में मिलकर 29 अक्टूबर, 1920 को अलीगढ़ में नैशनल मुस्मिल यूनिवर्सिटी की स्थापना की.
1925 में यह यूनिवर्सिटी नई दिल्ली के करोल बाग में आ गई. 10 सालों बाद यूनिवर्सिटी का स्थान एक बार फिर बदला और ये स्थायी रूप से नई दिल्ली के जामिया नगर में स्थापित हो गई.
ये वही यूनिवर्सिटी है जिसे आज सेंट्रल यूनिवर्सिटी जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है. इस यूनिवर्सिटी को आज भारत में उच्च शिक्षा के लिए प्रमुख संस्थानों में गिना जाता है.
जाकिर ने अपना पूरा जीवन देश की एकता, सामाजिक न्याय और सभी के लिए शिक्षा को समर्पित कर दिया था. उनका मानना था कि शिक्षा समाज का स्तर ऊपर उठाने में सबसे शक्तिशाली हथियार है. उन्होंने साक्षरता और ज्ञान को फैलाने में जीतोड़ प्रयास किए.
जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी उनके इसी इरादे की जीती जागती मिसाल है. जाकिर उस समय महज 23 साल के थे जब उन्होंने संस्थान की शुरुआत की थी.
जाकिर आगे इकनॉमिक्स में पीएचडी करने के लिए जर्मनी गए थे, लेकिन उन्हें यूनिवर्सिटी का अकादमिक और प्रशासनिक नेतृत्व संभालने के लिए जल्द भारत वापस लौटना पड़ा.
यूनिवर्सिटी तो 1927 में बंद होने की कगार पर थी लेकिन उनके प्रयासों की बदौलत ये आज भी युवाओं को शिक्षित कर रही है. ये उनके प्रयास ही थे जिनकी बदौलत भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने में यूनिवर्सिटी का अहम योगदान माना जाता है.
1930 के दौरान भारत में हुए कई शैक्षणिक सुधारों में डॉक्टर जाकिर सक्रिय सदस्य रहे थे. भारत जब आजाद हुआ तो उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर बना दिया गया. वहां उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया और इस तरह वो 1956 में सांसद बन गए.
हालांकि, वो एक साल तक ही राज्यसभा के सदस्य रह पाए. उसके बाद उन्होंने बिहार का गवर्नर बना दिया गया. जाकिर 1957 से 1962 तक इस पद पर बने रहे.
शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में गवर्नर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद 1962 में ही उन्हें भारत का उप राष्ट्रपति बना दिया गया. जाकिर आजाद भारत के दूसरे उप राष्ट्रपति थे.
1967 में उनका कार्यकाल पूरा हो रहा था. जैसा कि ऊपर बताया गया प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज के बीच उन्हें आगे की भूमिका देने को लेकर असहमति थी.
इंदिरा चाहती थीं कि उन्हें राष्ट्रपति बनाया जाए जबकि कामराज चाहते थे कि चाहते थे कि जाकिर दोबारा से उप राष्ट्रपति बन जाएं और डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दोबारा से राष्ट्रपति.
हालांकि इंदिरा गांधी अपने प्रयासों में सफल रहीं और 1967 में जाकिर हुसैन को देश का तीसरा और पहला मुस्लिम राष्ट्रपति बनाया गया.
राष्ट्रपति पद संभालने के दो साल बाद ही 3 मई, 1967 को उनकी मृत्यु हो गई. मृत्यु के बाद उन्हें 1983 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया.
Edited by Upasana