जानिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
होली असल में होलीका दहन का उत्सव है जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाता है।
आज देश भर में होली का त्योहार मनाया जा रहा है। होली असल में होलीका दहन का उत्सव है जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाता है। यह त्यौहार भगवान के प्रति हमारी आस्था को मजबूत बनाने व हमें आध्यात्मिकता की और उन्मुख होने की प्रेरणा देता है। क्योंकि इसी दिन भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और उसे मारने के लिये छल का सहारा लेने वाली होलीका खुद जल बैठी। तभी से हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है।
आइये जानते हैं क्या है होली की पूजा विधि? कैसे बनाते हैं होली? कब करें होली का दहन?
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन का मुहूर्त - 28 मार्च रविवार को शाम में 6.37 बजे लेकर रात में 8.56 बजे तक
शुभ मुहूर्त का कुल समय - 2 घंटे 20 मिनट
इसी मुहूर्त में होलिका दहन करना अत्यंत शुभ होगा और इस साल होलिका दहन के समय भद्रा नहीं रहेगी। रविवार दिन में 1.33 बजे भद्रा समाप्त हो जाएगी, साथ ही पूर्णिमा तिथि रविवार रात में 12:40 बजे तक रहेगी। शास्त्रों की मानें तो भद्रा रहित पूर्णिमा तिथि में ही होलिका दहन किया जाता है।
पूजा विधि
होलिका दहन से पहले उसकी पूजा की जाती है। पूजन सामग्री में एक लोटा गंगाजल, रोली, माला, अक्षत, धूप या अगरबत्ती, पुष्प, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज गेंहू की बालियां, पके चने आदि होते हैं। इसके बाद पूरी श्रद्धा से होली के चारों और परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेटा जाता है। होलिका की परिक्रमा तीन या सात बार की जाती है। इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को होलिका को अर्पित किया जाता है। इसके बाद होलिका में कच्चे आम, नारियल, सात अनाज, चीनी के खिलौने, नई फसल इत्यादि की आहुति दी जाती है।
होलिका के पास दीपक जलाने और परिक्रमा करने की परंपरा का पालन अधिकतर लोग करते हैं। होलिका दहन से पहले होली में अनाज डाला जाता है। होली के समय खेतों में नया अनाज पक जाता है। पुराने समय में फसल पकने की खुशी में ही होली की रात आग जलाकर उत्सव मनाया जाता है।