Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory
search

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT

पटेल ने कैसे कर दिखाया था रियासतों को भारत में मिलाने का करिश्मा

15 अगस्त, 1947 तक 136 रियासतों ने भारत के साथ विलय का फैसला ले लिया था. छोटी-छोटी रियासतों को मिलाकर एक राज्य बना दिया गया. हैदराबाद, जोधपुर, जूनागढ़ और कश्मीर के शासक भारत में विलय को राजी नहीं हो रहे थे, पटेल ने बड़ी सूझ बूझ से भी इन्हें भी आखिरकार भारत में मिला लिया.

पटेल ने कैसे कर दिखाया था रियासतों को भारत में मिलाने का करिश्मा

Thursday December 15, 2022 , 3 min Read

आजादी से पहले सभी राज्य अलग-अलग रियासतों की तरह काम करते थे. 1947 में जब देश आजाद हुआ तो प्रश्न यह था कि अंग्रेजों के जाने के बाद इन देशी रियासतों का क्या होगा.

लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल ने बहुत कुशलता और दक्षतापूर्ण राजनयिकता के साथ प्रलोभन और दबाव का प्रयोग करते हुए सभी रियासतों को आपस में मिलाया.

उन्हें आज भी 562 रजवाड़ों को मिलाकर एक देश बनाने का श्रेय जाता है. सरदार पटेल 31 अक्टूबर 1875 को जन्मे और 15 दिसंबर 1950 को आखिरी सांस ली. आइए जानते हैं सरदार वल्लभभाई पटेल ने आखिर इन रजवाड़ों को कैसे राजी किया था.

15 अगस्त, 1947 तक 136 रियासतों ने भारत के साथ विलय का फैसला ले लिया था. बहुत-सी छोटी-छोटी रियासतें जो एक अलग इकाई के रूप में आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था में नहीं रह सकती थी, उन्हें मिलाकर एक राज्य बना दिया गया.

उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की 39 रियासतें उड़ीसा या मध्य प्रांत में मिला दी गईं और गुजरात की रियासतें बंबई प्रांत में. कुछ रजवाड़ों को छोड़कर लगभग सभी रियासतें भारत के साथ विलय को राजी हो चुकी थीं. इनमें हैदराबाद, जोधपुर, जूनागढ़ और कश्मीर शामिल थे.

गृह मंत्री के तौर पर पटेल को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इन बाकी रियासतों को एक करने की जिम्मेदारी मिली. वीपी मेनन की मदद से पटेल ने सभी शासकों से दस्तखत कराने के लिए इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन (विलय का दस्तावेज) तैयार किया.

दस्तावेज पर साइन करने रियासत के शासकों ने रक्षा से लेकर, विदेशी मामलों, संचार मामले सभी जरूरी चीजों का नियंत्रण केंद्र सरकार को सौंप दिया. पटेल ने प्रीवि पर्स की भी व्यवस्था की.

जिसके तहत राजसी परिवारों को भारत यानी केंद्रीय व्यवस्था में शामिल होने के लिए कुछ भुगतान करने का इंतजाम किया गया था. लेकिन चार ऐसे राज्य थे जो भारत में विलय के लिए राजी नहीं हो रहे थे.

हैदराबाद के निजाम अभी ये फैसला नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें स्वतंत्र रहना चाहिए या फिर पाकिस्तान का हाथ थाम लेना चाहिए. उस समय हैदराबाद में निजाम के खिलाफ आजादी की लड़ाई चल रही थी. पटेल ने बगावत के समर्थन में सैनिकों की कुछ टुकड़ी हैदाराबाद भेज दी और इस तरह हैदराबाद का नियंत्रण भारत सरकार के पास आ गया.

जोधपुर के राजकुमार भी पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे. जब पटेल को उनकी इस तैयारी के बारे में पता चला तो उन्होंने फौरन उनसे संपर्क किया. उन्होंने राजकुमार कई तरह के फायदे देने का वादा करके राजकुमार को भी भारत में शामिल होने को राजी करा लिया.

इधर जूनागढ़ के नवाब पाकिस्तान का ऑफर स्वीकार कर लिया था. लेकिन, स्थानीय लोग उनके इस फैसले के खिलाफ हो गए तो नवाब घबराकर कराची निकल लिए. पटेल ने पाकिस्तान से जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराने का आग्रह किया. जूनागढ़ में जनमत-संग्रह भी कराया गया जिसमें 91 फीसदी आबादी ने भारत के साथ बने रहने के लिए वोट किया.

सबसे बड़ी चुनौती कश्मीर को शामिल करने की थी. कश्मीर के महाराज हरि सिंह ना तो भारत के साथ रहना चाहते थे और ना ही पाकिस्तान के साथ. लेकिन, पाकिस्तान ने जब हथियारबंद सैनिकों ने कश्मीर पर हमला कर दिया तब हरि सिंह ने मदद के लिए भारत की तरफ देखा.

पटेल और नेहरू दोनों हरि सिंह के सामने प्रस्ताव रखा कि उनकी मदद तभी की जाएगी जब वो भारत में विलय के लिए मंजूरी दे देंगे और ऐसा ही हुआ. इस तरह कश्मीर भी भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया और भारत का जन्म हुआ.


Edited by Upasana