एक तरफ है 'भारत' और दूसरी तरफ 'इंडिया', ऐसे में स्टार्टअप कैसे चुनते हैं टारगेट ऑडिएंस, क्या हैं चैलेंज
एक बड़ी आबादी उस भारत में रहती है, जिसमें टीयर 2 और टीयर 3 शहर आते हैं. वहीं बहुत सारे लोग इंडिया में रहते हैं, जिन्हें टीयर 1 शहर कहा जाता है . सवाल ये है कि कोई स्टार्टअप अपने ऑडिएंस को कैसे चुनता है, क्योंकि लोगों का स्वभाव अलग-अलग होता है.
आज के दौर में आपको एक 'भारत' दिखेगा और एक 'इंडिया' दिखेगा. भारत वो है जो टीयर 2 और टीयर 3 शहरों में रह रहा है, जबकि इंडिया वो है जो टीयर 1 शहरों में रहता है. आज देश में सिर्फ 8 ही टीयर 1 शहर हैं, जबकि 100 से भी ज्यादा टीयर 2 शहर हैं और टीयर 3 शहरों की भी कमी नहीं है. ऐसे में जब बात आती है बिजनस की, तो अधिकतर स्टार्टअप आपको इंडिया में मिलेंगे, लेकिन उनमें से ज्यादार आते तो भारत से ही हैं. यानी टीयर 2 और टीयर 3 शहरों से टीयर 1 शहरों में आकर बिजनस की दुनिया में नाम कमाने वालों की कमी नहीं है. हर स्टार्टअप को सबसे पहले टारगेट ऑडिएंस चुनने में ही दिक्कत होती है. इसके अलावा भी उन्हें कई चुनौतियां झेलनी पड़ती हैं. Yourstory के कार्यक्रम Brand Residency में कुछ स्टार्टअप के फाउंडर्स ने अपने अनुभाव साझा किए हैं. आइए जानते हैं कोई भी स्टार्टअप कैसे भारत और इंडिया के ऑडिएंस को चुनता है.
शालिनी ने कैसे चुना ऑडिएंस
किसी भी प्रोडक्ट को बनाने में सबसे पहले ये देखना होता है कि ऑडिएंस को कैसे चुना जाए. द इनफ्यूज्ड कैटल (The Infused Kettle) की फाउंडर शालिनी सिन्हा राज कहती हैं कि उन्हें कनाडा में घूमते वक्त वहां चाय ले जाने का आइडिया आया. उन्होंने सोचा कि भारत की चाय को बाहर क्यों नहीं ले जा सकते. कनाडा में चाय नहीं मिलती है, ऐसे में भारत की चाय को वहां ले जाया जा सकता है. इनफ्यूज्ड टी का टारगेट ऑडिएंस टीयर 1 और टीयर 2 शहरों के लोग हैं. आज के वक्त में स्टार्टअप देश के बाहर भी जा रहे हैं. कई तो ऐसे भी स्टार्टअप हैं जो दूसरे स्टार्टअप को फंडिंग से लेकर सप्लाई चेन तक में मदद करते हैं
चाय बेचने में शालिनी का मकसद इनफ्यूजन करना था. कॉफी, वाइन और बीयर जैसी ड्रिंक में तो इनफ्यूजन हमेशा से होता रहा है, लेकिन चाय के साथ ऐसा नहीं हो रहा. ऐसे में शालिनी ने चाय के साथ ये एक्सपेरिमेंट किया. उन्होंने अपने घर में पुरुषों को ड्रिंक करते देखा तो वहां से उन्हें वोडका और रम के इनफ्यूजन वाली चाय बनाने का आइडिया आया. उन्होंने एंटी डायबिटिक चाय बनाई है, जो उनके सेगमेंट की हीरो है. शालिनी ये अच्छे से समझती हैं कि चाय भारत में एक इमोशन जैसा है, इसी वजह है कि वह उसे बेहतर तरीके से भुनाने में लगी हैं. उन्होंने अब लोगों को रेसेपी तक देना शुरू कर दिया है.
'भरोसा' है बिजनस बढ़ाने का जरिए
रेजरपे (Razorpay) के प्रोडक्ट मैनेजमेंट-जनरल मैनेजर गौरव दधीच मानते हैं कि भारत में इंडिया है और इंडिया में भारत है. वह कहते हैं कि रेजरपे में बिजनस को सर्विस दी जाती है. यह देखा जाता है कि कितना बड़ा पेमेंट हो रहा है, कितनी बार पेमेंट हो रहा है, क्या एरर आ रहे हैं. गौरव कहते हैं कि टारगेट ऑडिएंस को सही से समझना है तो बाहर निकल कर उनसे मिलना होगा. ना सिर्फ अपने ग्राहकों से मिलना चाहिए, बल्कि ऐसे भी लोगों से जो आने वाले वक्त में आपके ग्राहक हो सकते हैं. गौरव कहते हैं कि हर महीने 10-20 लोगों से बात जरूर करनी चाहिए.
डिजिटल पेमेंट के बिजनस में सबसे बड़ा चैलेंज ये होता है कि सामने वाले का भरोसा कैसे जीतें. गौरव मानते हैं कि अगर आप अपने ग्राहकों पर भरोसा करते हैं तो बदले में आपको भी भरोसा मिलेगा. ग्राहकों को डिस्काउंट दें, बार-बार रिटर्न की सुविधाएं दें, डिलीवरी टाइम को कम से कम करने की कोशिश करें, जिनसे भरोसा बढ़ेगा. कभी भी शॉर्टकट वाले खेल ना खेंले, इससे आप ग्राहकों का भरोसा खो देंगे और नतीजा ये होगा कि वह दूसरों पर भी भरोसा करने से डरेगा.
चुनौतियों से जूझते हुए बहुत कुछ सीखा
फर्नीचर बनाने वाले स्टार्टअप वुडेन स्ट्रीट (Wooden Street) के सीईओ और को-फाउंडर लोकेंद्र सिंह रणावत कहते हैं कि उनके बिजनस में डिमांड तेजी से बढ़ रही है. वह कहते हैं कि डिमांड तो पहले से ही थी, लेकिन कोरोना काल में यह तेजी से सामने आई. हालांकि, उन्हें एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. फर्नीचर एक ऐसी चीज है, जिसे लोग बिना छुए और परखे नहीं लेना चाहते. ऐसे में कंपनी ने देशभर में अभी तक करीब 80 स्टोर खोले हैं, ताकि लोग वहां जाकर प्रोडक्ट को अच्छे से छू कर देख सकें और ऑर्डर कर सकें.
फर्नीचर के बिजनस में उसकी डिलीवरी बहुत बड़ा चैलेंज है, क्योंकि वह बहुत भारी होते हैं. कई बार बिना लिफ्ट के बिल्डिंग में दूसरे-तीसरे फ्लोर तक सामान चढ़ाने में टूट जाता है. ऐसे में लोकेंद्र ने भी ऐसी चुनौतियां झेली हैं, इसलिए उन्होंने अपनी सप्लाई चेन बनाई और डिलीवरी पर ज्यादा फोकस किया. लोगों को प्रोडक्ट का भरोसा दिलाना एक बड़ी चुनौती थी, इसलिए बहुत सारे स्टोर खोले. आने वाले दो सालों में कंपनी के स्टोर्स की संख्या 300 का आंकड़ा पार कर सकती है.
लोकेंद्र कहते हैं कि जब फर्नीचर शुरू किया तो उन्हें पता नहीं था कि फंड कैसे लाएंगे. इस सेक्टर में लोग नुकसान उठा रहे थे और खत्म हो रहे थे. हालांकि, उन्हें यह क्लीयर था कि प्रॉफिटेबल और सस्टेनेबल ब्रांड बनाना है. उन्होंने ऑर्गेनिक ग्रोथ पर फोकस किया और पैसा उतना ही लिया, जितना चाहिए था. कंपनी ऑर्गेनिक ग्रोथ से ही तेजी से बढ़ रही है.
सरकार कर रही स्टार्टअप्स की मदद
स्टार्टअप इंडिया (Startup India) के मैनेजर गुडीपुडी कृष्णा शर्मा कहते हैं कि सरकार ने स्टार्टअप इंडिया को ही अपना स्टार्टअप बनाया है. वह भारत को तो भारत कहते हैं, लेकिन इंडिया को नया भारत कहते हैं. वह कहते हैं कि आज 75 हजार से भी अधिक स्टार्टअप रजिस्टर हो चुके हैं, जिनमें से करीब 47 फीसदी टीयर 2 और टीयर 3 शहरों के हैं. तमाम राज्यों ने भी स्टार्टअप पॉलिसी बनाई हैं, जिनके जरिए वह लोगों को मदद मुहैया करा रही हैं. हालांकि, स्टार्टअप इंडिया के लिए सबसे बड़ा चैलेंज ये है कि बहुत सारे लोग पॉलिसी को ठीक से नहीं देखते. वहीं ऐसे भी लोगों की कमी नहीं है, जिन्हें पता ही नहीं है कि स्टार्टअप पॉलिसी क्या है. तमाम लोगों को भाषा की दिक्कत होती थी, जिससे अब निपटा जा चुका है और स्टार्टअप इंडिया की वेबसाइट लगभग सभी भाषाओं में आ गई है.