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कैसे खुले लड़कियों के लिए NDA के दरवाजे, जब सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी सेना और सरकार को फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के साथ भेदभाव करने के लिए इंडियन आर्मी को फटकार लगाते हुए कहा था, “हर बात पर न्‍यायालय को हस्‍तक्षेप करने के लिए मजबूर मत करिए.”

कैसे खुले लड़कियों के लिए NDA के दरवाजे, जब सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी सेना और सरकार को फटकार

Thursday June 23, 2022 , 7 min Read

नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) के दरवाजे लड़कियों के लिए खुलते ही हरियाणा की रहने वाली 19 साल की शनन ढाका ने परीक्षा में टॉप किया है. वो न सिर्फ पौने दो लाख लड़कियों में से चुनी गई 19 लड़कियों में नंबर वन हैं, बल्कि लड़के-लड़कियों दोनों में उन्‍होंने 10वीं रैंक हासिल की है. और यह तब है, जब उन्‍हें इस परीक्षा की तैयारी के लिए सिर्फ 50 दिन का समय मिला था.

2021 के पहले महिलाओं को NDA परीक्षा में बैठने की अनुमति ही नहीं थी. 2020 में कुश कालरा नाम के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पिटीशन फाइल की थी, जिसमें भारत सरकार और भारतीय सेना के इस नियम को भेदभावपूर्ण बताते हुए उसे न्‍यायालय में चुनौती दी थी. एक साल बाद 18 अगस्‍त, 2021 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया कि यह नियम भेदभावपूर्ण है और यह खत्‍म होना चाहिए. 

सितंबर, 2021 में फैसले पर फाइनल मुहर लगी, नवंबर में परीक्षा हुई और कल 22 जून, 2022 को परीक्षा के परिणाम आए. 19 लड़कियों ने परीक्षा पास की और 19 साल की शनन ढाका ने दसवां स्‍थान पाकर परीक्षा में टॉप किया.

शनन की सफलता की पृष्‍ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट में एक साल तक चला वह केस काफी महत्‍वपूर्ण है. उस दौरान कोर्ट में जो बहसें हुईं, सरकार और सेना की तरफ से अपने नियम को सही बताने के लिए जिस तरह की जिरहें पेश की गईं, उनकी तफसील अपने आप में एक कहानी है. 

एडवोकेट कुश कालरा की रिट पिटीशन

2020 में एडवोकेट कालरा ने सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन फाइल की. महिलाओं को सेना में परमानेंट कमीशन दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह पिटीशन फाइल की गई थी.

हालांकि इसके पहले भी ऐसा हुआ है कि महिलाओं ने NDA में शामिल किए जाने के लिए कोर्ट से गुहार लगाई है. दो साल पहले कोर्ट ने एक महिला उम्मीदवार अनीता के आवेदन पर भी सरकार को नोटिस जारी किया था, जिसे NDA में नामांकन के अवसर से वंचित कर दिया गया था. अनिता ने एक इंटरव्‍यू के दौरान कहा था, “आखिरकार मुझे सेना में जाने के अपने सपने को छोड़ना पड़ा.”

कुश कालरा की पिटीशन में कहा गया था कि सिर्फ जेंडर के आधार पर योग्‍य महिलाओं को NDA में प्रवेश की अनुमति न देना बहुत व्‍यवस्थित और सुनियोजित ढंग से महिलाओं के साथ किया जा रहा भेदभाव है. सेना की सर्वश्रेष्‍ठ ट्रेनिंग एकेडमी में प्रवेश न पा सकने का परिणाम यह होता है कि महिला आर्मी ऑफीसर्स कॅरियर में पुरुषों के मुकाबले काफी पीछे रह जाती हैं. उन्‍हें अपने समकक्ष पुरुष अधिकारियों के बराबर कॅरियर में आगे बढ़ने के मौके नहीं मिलते.

how supreme court opened doors for women to take nda exam and slammed indian army

पिटीशन में यह भी कहा गया कि महिला अभ्‍यर्थियों को NDA की परीक्षा में बैठने का अवसर न देना भारतीय संविधान की धारा 14, 15, 16 और 19 का उल्‍लंघन है.

सुनवाई के दौरान कालरा की तरफ से सीनियर एडवोकेट चिन्‍मय प्रदीप शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. उन्‍होंने दलील दी, “भारत सरकार ने एफिडेविट फाइल की है, जिसमें कहा गया है कि यह पूरी तरह से सरकार और सेना का नीतिगत फैसला है और इसमें न्‍यायालय का हस्‍तक्षेप नहीं होना चाहिए. एफिडेविट में यह भी कहा गया है कि चूंकि लड़कियों को NDA की परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि सेना में उनके कॅरियर के विकास में इस वजह से कोई बाधा उत्‍पन्‍न होती है.”  

महिलाओं को भर्ती न करने के पक्ष में सेना और सरकार का तर्क

बुधवार 18 अगस्‍त, 2021 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश भर के मीडिया की हेडलाइन थी- “सुप्रीम कोर्ट ने भेदभावपूर्ण नीतियों के लिए आर्मी को लगाई फटकार.” सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के साथ भेदभाव करने के लिए इंडियन आर्मी को फटकार लगाते हुए कहा, “हर बात पर न्‍यायालय को हस्‍तक्षेप करने के लिए मजबूर मत करिए.”  

न्‍यायमूर्ति संजय किशन कौल और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच में इस पिटीशन की सुनवाई हो रही थी. भारत सरकार और इंडियन आर्मी की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्‍वर्या भाटी सुप्रीम कोर्ट में पेश हुईं. उन्‍होंने सरकार और आर्मी की तरफ से जो भी तर्क दिए, कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. भाटी ने कहा कि महिलाओं को NDA की परीक्षा में न बैठने देना एक “पॉलिसी डिसिजन” है. कोर्ट ने जवाब में कहा, “आपकी यह पॉलिसी महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण है.”

कोर्ट में ASG भाटी ने तर्क दिया कि नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) के अलावा सेना में प्रवेश पाने के दो और तरीके हैं- इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) और ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (OTA). भारतीय सेना में महिलाओं को इन दोनों माध्‍यमों से प्रवेश करने की अनुमति है. इसके जवाब में कोर्ट की बेंच ने पूछा- सिर्फ दो स्रोतों से ही प्रवेश की अनुमति क्‍यों है?  

कोर्ट ने आगे कहा, “और अगर यह पॉलिसी की भी बात है तो आप दो स्रोतों से महिलाओं को सेना में प्रवेश की अनुमति दे रहे हैं. फिर आपको ये क्‍यों कहना चाहिए कि एक और तीसरे जरिए से सेना में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. यह सिर्फ पॉलिसी की बात नहीं है. यह अपने आप में ही गलत और भेदभावपूर्ण है.”

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सेना में महिलाओं को परमानेंट कमीशन का तर्क

ASG भाटी के तर्क यहीं खत्‍म नहीं हुए. उन्‍होंने यह तर्क देने की कोशिश की कि कैसे अब सेना में महिलाओं को परमानेंट कमीशन दिया जा रहा है.

यह तर्क काफी हास्‍यास्‍पद था क्‍योंकि यही सुप्रीम कोर्ट उस परमानेंट कमीशन वाले उस लंबे केस का गवाह रहा है. और उन कुतर्कों का भी, जो सेना की तरफ से महिलाओं को परमानेंट कमीशन न दिए जाने के पक्ष में पेश किए गए थे. भाटी के इस तर्क के जवाब में जस्टिस कौल ने टिप्‍पणी की, “सेना तो लगातार उसका विरोध ही कर रही थी और जब तक न्‍यायालय का आदेश नहीं आ गया, आप लोगों ने कुछ नहीं किया. नेवी और एयरफोर्स फिर भी बदलने को तैयार थे. आर्मी में बहुत पूर्वाग्रह हैं.”

जस्टिस कौल और जस्टिस रॉय की बेंच की टिप्‍पणियां

पूरी सुनवाई के दौरान यहां बेंच की और जस्टिस कौल की कुछ टिप्‍पणियां गौरतलब हैं. बेंच ने कहा कि यह मानसिकता की बात है, जो बदलने के लिए तैयार नहीं है. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में तमाम मौकों के बावजूद हम सरकार को राजी नहीं कर पाए. हर बार जब न्‍यायिक हस्‍तक्षेप के बाद कोर्ट से फैसला आता है, तभी कहीं जाकर नई संभावना मुमकिन हो पाती है.”

 

जस्टिस कौल ने फैसले के दौरान अपनी टिप्‍पणी में कहा, “आप एक गलत प्र‍ैक्टिस को लगातार कैसे जारी रख सकते हैं. उच्‍च न्‍यायालय से लेकर अब यहां तक मेरा यह अनुभव रहा है. सेना अपनी मर्जी से कुछ भी करने में विश्‍वास नहीं रखती. जब तक न्‍यायिक हस्‍तक्षेप न हो और कोर्ट फैसला न दे, तब तक सेना अपने आप कुछ नहीं करती.”

NDA परीक्षा में टॉप करने के बाद योर स्‍टोरी से बात करते हुए शनन ने ढाका कहा था, “इतने सालों तक लड़कियों को इस परीक्षा में न बैठने देना वास्‍तव में भेदभावपूर्ण था. लड़कियां किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं. मौका मिलने पर वह अपनी काबिलियत साबित कर रही हैं.”

अंतत: सारी बातों का सार यही है. बात भेदभाव को खत्‍म करने और लड़कियों को समान अवसर देने की है. मौका मिलेगा तो यह खुद ब खुद साबित हो जाएगा कि वह किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं हैं. जैसे महज 50 दिनों की तैयारी में शनन ने साबित करके दिखा दिया.