कैसे डेटिंग ऐप्स विकलांगों की जिंदगी में भर रहे हैं प्यार का रस
Shruti Kedia
Sunday February 17, 2019 , 6 min Read
लगभग छह सालों तक अकेले रहने के बाद पोलियो से ग्रसित 30 वर्षीय अनीषा बानू मुल्तानी ने किसी खास इंसान से मिलने का फैसला किया। उन्होंने अपनी जिंदगी में प्यार का इंतजार न करते हुए ऑनलाइन डेटिंग प्लेटफॉर्म का सहारा लिया और उनकी मुलाकात गराना इमरान से हुए जो कि गुजरात के जूनागढ़ इलाके में अकाउंटेंट की नौकरी करते हैं और वो भी पोलियो से ग्रसित हैं। दोनों ने एक दूसरे को समझने के बाद 2017 में शादी करने का फैसला लिया और आज खुशी से अपनी जिंदगी बिता रहे हैं।
हम एक ऐसे वक्त में जी रहे हैं जहां लोग अपने पार्टनर और प्यार को खोजने के लिए ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स डाउनलोड करते हैं और इस तरीके में सबसे बड़ा डर होता है अस्वीकार कर दिए जाने का। डर इसलिए लगता है क्योंकि रिजेक्ट होने पर उसके अंदर हीन भावना आ जाती है। लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि एक विकलांग व्यक्ति के लिए अपना पार्टनर खोजना कितना मुश्किल होता होगा? उसे कैसी परेशानियां उठानी पड़ती होंगी?
हमारे समाज में विकलांगता को कलंक या किसी अभिशाप के जैसा समझा जाता है। इसीलिए ऐसे लोगों को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भी काफी मुश्किलें उठानी पड़ती हैं। यह स्थिति तब और भयावह हो जाती है जब वे नए दोस्त बनाने की कोशिश करते हैं या किसी के साथ रिलेशन में जाने की चाहत पाल लेते हैं। ऐसे लोगों की मुश्किलों को कम करने के लिए बेंगलुरु में प्रतीक खंडेलवाल ने 'रैम्पमायसिटी' नाम से एक पहल शुरू की है जिसमें विकलांग लोग अपना जीवनसाथी या प्यार खोज सकते हैं।
प्रतीक कहते हैं, 'लोग हमेशा कहते हैं कि वे अपने दिल और दिमाग से किसी के साथ जुड़ना चाहते हैं, लेकिन हकीकत में अधिकतर लोग शरीर से आगे नहीं बढ़ पाते हैं। वो व्हीलचेयर के आगे बढ़ ही नहीं पाते हैं और फिर किसी भी व्यक्ति को समझ ही नहीं पाते। लोग यही समझते हैं कि शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति के साथ वे अच्छा समय नहीं बिता सकते हैं।'
ऑनलाइन डेटिंग और अक्षमता
सबसे पहली बात तो ये है कि किसी से भी ऑनलाइन डेटिंग प्लेटफॉर्म पर बात करते वक्त खुद के बारे में खुलापन रखना जरूरी होता है। क्योंकि किसी से भी झूठ बोलकर आप सिर्फ उसे दुखी कर सकते हैं बस। 28 वर्षीय सचिन चमड़िया अपने ऑनलाइन डेटिंग एक्सपीरिएंस के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि जब वे टीन एज में थे तभी उनका एक्सिडेंट हो गया था और उसके बाद उनके शरीर में कमर से नीचे का हिस्सा काम करना बंद हो गया। हालांकि काफी इलाज के बाद उन्होंने काफी हद तक रिकवरी कर ली लेकिन पहले जैसे नहीं हो पाए।
सचिन कहते हैं, 'मैं अपनी अक्षमता को लेकर एकदम खुला हूं। शुरू में मैं लोगों को बता देता हूं कि यह हादसा कैसे हुआ। हालांकि मैं इसके बारे में बात करने से डरता नहीं हूं क्योंकि मुझे लगता है कि इसे छुपाना गलत है।' लेकिन वे यह भी बताते हैं कि कई सारी लड़कियां कुछ और खोज रही होती हैं और इसलिए उन्हें एक विकलांग लड़के से बात करना अच्छा नहीं लगता।
प्रतीक बताते हैं कि उन्हें भी कुछ ऐसे ही अनुभवों से गुजरना पड़ा था जब वे रिलेशनशिप में थे। वे लगभग पांच साल तक किसी लड़की को डेट कर रहे थे। लेकिन एक हादसे के बाद उनके शरीर को लकवा मार गया। एक अंडर कंस्ट्रक्शन इमारत में काम करते वक्त वे सीढ़ियों से नीचे गिर गए थे। इसके बाद उन्हें कई ऑपरेशन से गुजरना पड़ा तब जाकर वे ठीक हो पाए। हालांकि शरीर का एक हिस्सा आज भी ठीक से काम नहीं कर पाता।
प्रतीक ने कहा, 'हादसे के एक साल बाद वो मुझे छोड़कर चली गई। यह इसलिए हुआ था क्योंकि हादसे के बाद मैं पूरी जिंदगी के लिए विकलांग बन गया था। उसने कहा था कि वह किसी की जिम्मेदारी नहीं बन सकती है और पूरी जिंदगी ऐसे इंसान के साथ बिताना उसे ठीक नहीं लगा।' हालांकि प्रतीक जब आगे बढ़ गए और डेटिंग ऐप के जरिए लड़कियों से मिलने लगे तो उन्हें अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं मिलीं।
वे कहते हैं, 'कई सारी लड़कियों ने मुझसे पूछा- क्या तुम ठीक हो? क्या तुम हमेशा ऐसे ही रहोगे? मुझे तुम्हारे साथ बैठने में थोड़ा अजीब लग रहा है, लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे में? क्या होगा कि अगर तुम बेड पर ठीक से परफॉर्म न कर पाए तो?' प्रतीक कहते हैं कि जब कोई विकलांग व्यक्ति डेट पर जाता है तो उसे कई तरह का भेदभाव झेलना पड़ता है।
अकेले भारत में ऑनलाइन डेटिंग ऐप के लगभग 3,48,00,000 यूजर्स हैं। भारत में कई तरह के ऐप्स भी मौजूद हैं जिनमें, टिंडर, ट्रुली मैडली, वू और एसले प्रमुख हैं। इन प्लेटफॉर्म पर सिर्फ तथाकथित सामान्य लोग ही साइन अप नहीं करते बल्कि विकलांगता से जूझ रहे लोग भी अपने लिए प्यार या साथी खोजने के लिए इनका सहारा लेते हैं। सचिन कहते हैं, 'मैं बीते चार सालों से टिंडर इस्तेमाल कर रहा हूं। अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने बंबल डाउनलोड किया था। मैंने इन ऐप्स को इसलिए डाउनलोड किया था ताकि मैं देख सकूं कि क्या ये असल जिंदगी में कुछ बदलाव ला पाते हैं? '
सचिन कहते हैं, 'बाकी लोगों की तरह मैं भी सामाजिक तौर पर सक्रिय रहना चाहता हूं और अलग-अलग तरह के लोगों से मिलना चाहता हूं। मुझे उम्मीद है कि ये मुलाकातें रिश्ते में तब्दील होंगी।' इन सब चीजों के अलावा विकलांग लोगों को डेट पर जाने के लिए एक मुश्किल और झेलनी पड़ती है। सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी सुविधाएं नहीं होती हैं जिनसे उन्हें किसी तरह की दिक्कत न हो। इसलिए उनके पास विकल्प सीमित हो जाते हैं। वे कहते हैं, 'अमेरिका या लंदन जैसी जगहों पर विकलांगों के लिए किसी से मिलना आसान होता है। लेकिन भारत में अभी सोच का बदलना दूर की कौड़ी है।'
हालांकि जहां एक तरफ सामान्य डेटिंग ऐप्स में कई तरह की दिक्कतें आती हैं वहीं विकलांगों के लिए अलग से ऐसे ऐप हैं जहां सिर्फ उनके लिए खास लोग होते हैं। इंकलव (Inclov) एक ऐसा ही ऐप है जिसकी स्थापना कल्याणी खोना ने की थी। इस ऐप को खासतौर पर विकलांगों के लिए बनाया गया है। इंकलव के को-फाउंडर शंकर श्रीनिवासन कहते हैं, 'विकलांगता से जूझ रहे लोगों को अच्छी तरह समझने के प्रयास में हमने जाना कि ऐसे लोगों की जिंदगी काफी प्रतिबंधित हो जाती है। इंकलव ऐसे लोगों के जीवन को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करता है। इस ऐप में साइन लैंग्वेज, दुभाषियों की मौजूदगी जैसी सुविधाएं मिलती हैं।'
विकलांग लोग भी हमारे समाज में बाकी लोगों की तरह होते हैं और उनके भीतर भी वैसी ही भावनाएं होती हैं जैसी बाकी लोगों में। उनके अंदर भी लोगों को दोस्त बनाने और रिश्ते बनाने की चाहत होती हैं। प्रतीक कहते हैं कि उन्हें विकलांग होने की वजह से कोई खास तवज्जो नहीं चाहिए। बल्कि वे बाकी लोगों की तरह ही जिंदगी जीना चाहते हैं। और ऐसा तब संभव हो पाएगा जब हम उन्हें बराबरी का दर्जा देंगे।
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