कैसे व्हाटज़एप की मदद से दादी की रसोई को शहरी घरों में वापस ला रहा है Zishta
तमिलनाडु में कुड्डलोर जिले के वलवनूर के एक गाँव में, कारीगरों का एक समुदाय मिट्टी के बर्तन बनाता है। इसके लिए ये कारीगर 10 पीढ़ियों से सम्मानित अपनी पारंपरिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इनकी टेक्निक में एकमात्र स्पष्ट मशीनीकरण, कुम्हार के चाक का मोटराइज्ड रोटेशन है, बाकी सब कुछ मैन्युअल रूप से किया जाता है - मिट्टी को मिलाने से लेकर इसे सेंकने तक, सब हाथ से होता है। संभवतः यह समूह इस क्राफ्ट को फॉलो करने वाली क्षेत्र की अंतिम पीढ़ी है। इस बीच, एक शहरी भारतीय घर में, सब्जी को इसी तरह के मिट्टी के बरतन में पकाया जाता है जिसकी खुशबू पूरी रसोई में फैली रहती है। अब आप सोच रहे होंगे कि इन दोनों बातों का क्या कनेक्शन? दरअसल इनका कनेक्शन बेंगलुरु-आधारित उद्यम है - जिष्ट (Zishta) से है।
जुलाई 2016 में वर्शिता संपत, मीरा रामकृष्णन, और आर्चिश माथे माधवन द्वारा शुरू किया गया, जिष्ट कई उत्पादों जैसे कि ब्रोंजवेयर, कॉपरवेयर, मिट्टी के बरतन, लकड़ी के बर्तनों में परोसी जाने वाली डिशेश, नैचुरल मैट्स, अजरख और सोलापुर होम लिनन व पीतल के लैंप ऑफर करता है।
जिष्ट अपने आप में यूनीक है क्योंकि टीम सीधे ऐसे कारीगरों के साथ काम करती है जिन्होंने पीढ़ियों से इस शिल्प का सम्मान किया है और यह सुनिश्चित किया है कि उत्पाद परंपरागत रूप से दस्तकारी हो। इसके अलावा यह हमेशा अपने ग्राहकों को शिक्षित करता रहा है कि आखिर क्यों उन्हें इन प्राचीन शिल्पकृतियों को अपने घरों का हिस्सा बनाने की आवश्यकता है।
शहरी घरों में पारंपरिक ज्ञान की प्रासंगिकता
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाले सहकर्मियों के रूप में, मीरा और आर्चिश अक्सर काफी देर तक इस पर बात करते थे कि कैसे पारंपरिक ज्ञान अब आधुनिक घरों का हिस्सा नहीं है।
आर्चिश कहते हैं,
“चाहे वह तांबे के बर्तन, मिट्टी के बर्तन या बेंत की चटाई का उपयोग हो, इनके उपयोग को लेकर बहुत सारे तर्क और साइंस पाया गया कि वे क्यों कभी भारतीय घरों का एक अंतर्निहित हिस्सा थे। लेकिन, आधुनिकीकरण और उपभोक्तावाद के साथ, न केवल उपयोग कम हुआ बल्कि उनकी प्रासंगिकता के पीछे का तर्क और ज्ञान भी फीका पड़ने लगा। और, इन प्राचीन शिल्पों की बहुत कम या बिल्कुल मांग नहीं होने के कारण, शिल्प बनाने वाले कारीगरों के पास आजीविका के लिए अन्य रास्ते तलाशने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।"
मीरा आगे कहती हैं,
“तमिल परिवार में पली-बढ़ी हूं, इसलिए हमारे घर पर बनाई जाने वाली रस्सम (या रसम- एक दक्षिण भारतीय व्यंजन) का टेस्ट बहुत ही ज्यादा अच्छा लगता है। और, जब हम बड़े हुए तो हमने महसूस किया कि ईया चोंबू (Eeya Chombu) वो चीज है जो इसके स्वाद को इतना ज्यादा अच्छा बनाता है। जब थोड़े और बड़े हुए तो पता चला कि टिन से बने इस दस्तकारी बर्तन का उपयोग केवल इसलिए नहीं किया जाता कि ये रसम का टेस्ट अच्छा करता है बल्कि इसलिए भी किया जाता क्योंकि इसमें बने रसम को इस्तेमाल करने से ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है। संभवतः हमारे पूर्वजों को यह पता था और इसलिए उन्होंने रसम के लिए इस बर्तन को तैयार किया था।”
जब एक बार चचेरे भाई आर्चिश और वरिष्टा मिले तब भी दोनों के बीच ऐसी ही बातें हुईं।
वे कहते हैं,
"हमने कई बार खुद से सवाल करते पाया कि हम प्राचीन शिल्प में रुचि को पुनर्जीवित करने के लिए क्या कर सकते हैं, हम पारंपरिक ज्ञान को किस तरह से सामने ला सकते हैं और कैसे हम कारीगरों के लिए एक निरंतर आय प्रदान कर सकते हैं ताकि शिल्प को जिंदा बनाए रखा जा सके।”
इस कहानी में अहम मोड़ तब आया जब वे मीरा के गृहनगर गए। मीरा के पिता ने उल्लेख किया कि कैसे परंपराएं और ज्ञान लुप्त होते जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनाने वाला अब कोई मिल ही नहीं रहा है। मीरा के पिता की इसी बात ने तीनों को पारंपरिक ज्ञान को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से जिष्ट शुरू करने के लिए प्रेरित किया। संयोग से, Eeya Chombu (टिन का बर्तन) उन पहले कुछ उत्पादों में से एक था, जो Zishta ने 2016 में लॉन्च किया था। अन्य बर्तनों में डोसा और कल चट्टी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक पारंपरिक लोहे का पैन सेंगोट्टाई डोसा कल्लू (Sengottai dosa kallu) और एक सोपस्टोन बर्तन जिसका इस्तेमाल भारतीय ग्रेवी और करी की किस्मों को बनाने के लिए किया जाता है।
क्यों रिवाइवल एक चुनौती है
आज, जिष्ट 21 से अधिक ऐसे कारीगर समूहों के साथ काम करता है जिन्हें उन्होंने देश भर में पहचाकर अपने साथ जोड़ा है। इसमें तेनकासी (Tenkasi) के कास्ट आयरनवेयर कारीगर, कुड्डलोर के मिट्टी निर्माता, तमिलनाडु के सलेम में सोपस्टोन बनाने वाले कारीगर, ओडिशा के कंसा कारीगर, कच्छ के रेहा चाकू निर्माता, महाराष्ट्र के ब्रास ताम्बत निर्माता, पश्चिम बंगाल के नीम की लकड़े के शिल्पकार, केरल के उरुली और वेंगलम के निर्माता, सोलापुर के हाथ से बुनी चादर और होम लिनन निर्माता आदि शामिल हैं।
हालांकि स्टार्टअप के लिए इन कारीगरों की पहचान करना और उनका पता लगाने की प्रक्रिया काफी चुनौतीपूर्ण रही।
मीरा कहती हैं,
“इससे पहले, तमिलनाडु में तेनकासी तालुक के गाँव के आस-पास की सड़कों पर वे कारीगर रहते थे जिन्होंने लोहे और लोहे बर्तनों पर दस्तकारी की थी। लेकिन जब हम फील्ड विजिट के लिए गए, तो वहां हमें कोई नहीं मिला। ऐसे कारीगर की पहचान करने में हमें कई दिन लग गए, जो शिल्प को जानता था और जिसके यहां सालों से यही काम होता आया हो। आज, हम इन कारीगरों के साथ काम करते हैं और शिल्प को पुनर्जीवित करने की उम्मीद करते हैं।”
मीरा बताती हैं,
“बिचौलिए जो कहते हैं कि वे ऐसे कारीगरों के साथ काम करते हैं जो पारंपरिक शिल्प का पालन करते हैं, अक्सर वे शिल्प के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। इससे खराब और क्या होगा? वे कारीगरों के साथ काम नहीं करते हैं लेकिन ज्यादातर मशीन से बने उत्पादों के साथ करते हैं।”
वह कहती हैं कि बाजार के अवसरों को भुनाने के लिए मशीन-निर्मित उत्पादों को बेचने वाले कई मार्केट प्लेयर्स द्वारा चुनौती मिली है।
“जिष्ट जैसे बहुत कम व्यवसाय हैं जो वास्तविक कारीगरों के साथ काम कर रहे हैं और मूल हस्तनिर्मित उत्पाद बेचते हैं। जिष्ट में, हम न केवल उपभोक्ताओं को मूल उत्पादों की पेशकश करना चाहते हैं, बल्कि कारीगरों के लिए एक जीवन रेखा भी प्रदान करते हैं और इस प्रक्रिया में शिल्प के अस्तित्व को बचाए रखने का समर्थन भी करते हैं।”
दूसरी चुनौती जिसका टीम अक्सर सामना करती है वह है उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता की कमी है।
आज, भले ही हर कोई Teflon में लिपटे कुकवेयर के उपयोग के हानिकारक प्रभावों को समझता है, लेकिन लोग इन पर ध्यान नहीं देते हैं। दूसरी ओर, लोगों के बीच टिन के हानिकारक प्रभावों या तांबे के बर्तन के उपयोग के बारे में व्यापक भ्रांति है। जहां एक तरफ जिष्ट टीम उन्हें लोगों को स्वास्थ्य लाभ पर शिक्षित करती है, वे प्रयोगशाला में उत्पादों का परीक्षण भी करते हैं और उनके उपयोग के लिए मान्यता प्राप्त करते हैं।
उत्पाद के बारे में जागरूकता की कमी के कारण दूसरी चुनौती यह है कि उत्पादों का उपयोग कैसे किया जाए।
आर्चिस बताते हैं,
"जैसा कि ये बर्तन एक या दो पीढ़ी से भारतीय घरों का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए लोगों को लगता है कि इन पारंपरिक कारीगर उत्पादों को बनाए रखना मुश्किल है।"
हालांकि अभी सोशल कम्युनिकेशन चैनलों से बहुत मदद मिली है। “हम ग्राहकों द्वारा बनाए गए वीडियो शेयर करते हैं जो दिखाते हैं कि वे उत्पादों का उपयोग कैसे करते हैं और उनका अनुभव कैसा रहा है। हम अपनी फील्ड विजिट के वीडियो और तस्वीरें, उत्पादों पर काम करने वाले कारीगरों के बारे में जानकारी, उत्पाद कैसे बनाए गए हैं इसको लेकर जानकारी, उनका उपयोग कैसे किया जाता है, स्वास्थ्य लाभ क्या हैं.. आदि जानकारी शेयर करते हैं।”
व्हाट्सएप: एक कम्युनिकेशन चैनल से एक बिजनेस ड्राइवर तक
जहां फेसबुक जिष्ट के लिए एक प्राइमरी चैनल रहा है, वहीं पिछले एक साल में व्हाट्सएप एक प्रमुख इंजेगमेंट चैनल बनकर उभरा है।
आर्चिश कहते हैं,
"व्हाट्सएप से इतना लाभ मिलेगा इसके बारे में नहीं सोचा था, लेकिन आज यह एक प्रमुख व्यवसाय प्रवर्तक बन गया है। इसकी शुरुआत ग्राहकों के हमारे व्यक्तिगत व्हाट्सएप नंबर पर पूछताछ या जानकारी से हुई। लेकिन जैसे-जैसे ग्राहकों की संख्या बढ़ी, वैसे-वैसे इसे ट्रैक करना मुश्किल हो गया। हमने तब एक व्हाट्सएप नंबर का उपयोग करने का निर्णय लिया और आज हमारे पास लगभग 5,000 ग्राहकों का एक डेटाबेस है जो मुख्य रूप से व्हाट्सएप द्वारा संचालित है।”
जिष्ट के मजबूत 35,000 से अधिक ग्राहकों में ये 5000 ग्राहक सबसे ज्यादा वफादार में से हैं।
आर्चिश बताते हैं,
“जब हमने व्हाट्सएप का लाभ उठाना शुरू किया, तो हमने इस डेटाबेस में कुछ रिपीट ग्राहक जोड़े। और, जब से हमने सोशल मीडिया पर प्रचार में व्हाट्सएप नंबर को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना शुरू किया, हम देखते हैं कि रोजाना कम से कम 30-50 नए ग्राहक व्हाट्सएप पर हमारे पास पहुंचते हैं। क्योंकि, हम व्हाट्सएप पर उनके सवालों को तुरंत जवाब देने में सक्षम हैं।"
आज जिष्ट न केवल ग्राहक पूछताछ और ग्राहक को जानकारी देने के लिए व्हाट्सएप का उपयोग करता है, बल्कि इससे बिजनेस ग्रोथ भी हो रही है।
“हम अपने व्हाट्सएप नंबर पर अपने ग्राहकों को प्रोडक्ट लॉन्च करने और प्रचार करने से पहले विशेष ऑफर, नए उत्पादों का पूर्वावलोकन प्रदान करते हैं। और हम अक्सर एक अच्छी प्रतिक्रिया देखते हैं। प्रचार, ऑफर और शिक्षाप्रद सामग्री ने कुल मिलाकर लगभग 20 प्रतिशत की बिक्री बढ़ाने में मदद की है।”
आर्चिश बताते हैं कि जिष्ट सप्ताह में एक बार व्हाट्सएप नंबर पर अपने ग्राहक बेस पर सूचनात्मक और शिक्षाप्रद सामग्री भेजता है।
आर्चिश कहते हैं,
“क्योंकि, यह उनकी रुचि और प्रासंगिकता के हिसाब से है, शिक्षाप्रद सामग्री की सराहना की जाती है। भेजे गए मैजेस में इमेज हो सकती है जिस पर मिट्टी के बरतन की जानकारी दी गई हो या एक वीडियो हो सकता है जो प्रोडक्ट के स्वास्थ्य लाभ के बारे में बताता हो। लोग अब लंबे ईमेल नहीं चाहते हैं। वे ऐसा कंटेंट पसंद करते हैं जो क्रिस्प और रिलेवेंस हो। और, वे (ग्राहक) आपसे से तुरंत प्रतिक्रिया चाहते हैं। क्योंकि जब कोई सवाल भेजता है तो वो एक या दो दिन इंतजार नहीं करना चाहता। और, यही वजह है कि व्हाट्सएप संचार के लिए एक शानदार चैनल के रूप में दोगुना हो गया है और ग्राहकों तक पहुंच बना रहा है।"
क्यों इस व्यवसाय की आवश्यकता किसी अन्य से ज्यादा है
जिष्ट का बेंगलुरु में एक एक्सपीरियंस सेंटर भी है जो उनके ऑफिस और वेयरहाइउस यानी गोदाम के रूप में भी काम करता है।
वरिष्टा कहती हैं,
“हमने मार्केट को परखने के लिए ऑनलाइन रिटेलिंग शुरू की। हमने एक अच्छा बाजार देखा। लेकिन हमने ऐसे बहुत सारे उपभोक्ताओं को भी देखा जो अपने अनुभव और अपने परिवार और दोस्तों से परंपराओं के बारे में जानना चाहते थे। तभी दिमाग में एक अनुभवात्मक केंद्र (experiential centre) स्थापित करने का विचार आया। हमने 2017 में केंद्र स्थापित किया। आज, हमारे यहां जो ग्राहक आते हैं 30 से 40 मिनट तक हमारे वहां रहकर प्रोडक्ट के बारे में जानते हैं। वास्तव में, इन वार्तालापों ने हमें ब्रास कॉफी फिल्टर जैसे प्रोडक्ट को बाहर लाने में मदद की है, जिनके बारे में बहुतों को पता नहीं है।”
इस छह सदस्यीय टीम ने अब अपनी खुद की ई-कॉमर्स साइट बनाई है और अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग भी करते हैं।
वरिष्टा कहती हैं,
“हम अमेरिका, सिंगापुर, मलेशिया और संयुक्त अरब अमीरात में ग्राहकों से बहुत रुचि देख रहे हैं। हमने महसूस किया है कि कारीगर कुकवेयर और होमवेयर भारत में अपनी परंपराओं और अपने घरों के करीब रहने का एक साधन है। लेकिन जब व्यावसायिक विकास महत्वपूर्ण होता है, तो 'मकसद’ पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक घरों में वापस लाना है।”
यही कारण है कि जिष्ट प्रोडक्ट बेचने के बाद भी वे अपने ग्राहकों के साथ जुड़े रहते हैं।
वरिष्टा कहती हैं,
“हम उन्हें यूजेज और एजुकेशन के मामले में हैंडल करते हैं। यह हमारी कहानी का सिर्फ आधा हिस्सा है। इसके अलावा हम पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं और उन कारीगरों को सक्षम बना रहे हैं जो अपने शिल्प कौशल को जारी रखने के लिए लगे हुए हैं और इस तरह आने वाली पीढ़ियों के लिए उसे बनाए रखना चाहते हैं।”
एक बड़े लक्ष्य की ओर
2016 के जिष्ट के लॉन्च के बाद से, व्यवसाय बिना किसी बाहरी फंडिंग के लाभदायक रहा है।
मीरा कहती हैं,
"लेकिन, जैसे-जैसे हम पहुंच और एक्सेस के मामले में आगे बढ़ रहे हैं, हम रणनीतिक फंडिंग के अवसरों की भी तलाश कर रहे हैं।"
टीम का मानना है कि उनकी यात्रा अभी शुरू हुई है और मीलों दूर जाना है।
मीरा बताती हैं,
“1000 से अधिक कारीगर समूह हैं जो हमारे देश में खत्म होने के कगार पर हैं। हम उनमें से कई को सामने लाना चाहते हैं। उसी समय, हम यह भी देखते हैं कि उपभोक्ताओं को शिक्षित करने और ज्ञान की आसान पहुँच प्रदान करने के लिए लगातार विश्वसनीय सामग्री बनाने की समानांतर आवश्यकता है।”
जिष्ट का मानना है कि उन्होंने अपने ग्राहकों के साथ जो संबंध बनाया हैं, वह मदद करेंगें।
आर्चिश कहते हैं,
“हमारे कई ग्राहक सिर्फ खरीदार नहीं हैं। कई हमें सलाह देते हैं और हमें सहायता प्रदान करते हैं जो हमें आगे बढ़ने के लिए जरूरी भी है। हम इस यात्रा में एक साथ हैं और ऐसा करके, हम न केवल पारंपरिक शिल्प को पुनर्जीवित कर रहे हैं, बल्कि कारीगरों को सम्मान और मान्यता भी दे रहे हैं, जिसके वे सही हकदार हैं।"