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मंडे मोटिवेशन: एचआईवी पॉजिटिव बच्चों को सामान्य जीवन जीने में मदद कर रहा है सोलोमन का चेन्नई स्थित एनजीओ

मंडे मोटिवेशन: एचआईवी पॉजिटिव बच्चों को सामान्य जीवन जीने में मदद कर रहा है सोलोमन का चेन्नई स्थित एनजीओ

Monday December 30, 2019 , 8 min Read

सोलोमन को अब चेन्नई में एचआईवी पीड़ित 47 बच्चों का 'अप्पा' माना जाता है, क्योंकि उन्होंने उन्हें अपने एनजीओ, 'शेल्टर ट्रस्ट' के रूप में उन सभी बच्चों को घर दिया है। सोलोमन अपनी इस नेक पहल को पूरा करने के लिए एक साथ तीन जॉब कर रहे हैं।

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एचवीआई पीड़ित बच्चों को सहारा देने वाले सोलोमन राज



सोलोमन राज ने 1992 में फेल्विया शांति के साथ शादी की थी लेकिन शादी के आठ साल तक वे निःसंतान रहे। तब दंपति ने एक ऐसे बच्चे को गोद लेने के बारे में सोचा, जिसे प्यार और समर्थन की जरूरत थी। लेकिन किसी तरह, बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया काम नहीं आई और कपल ने अपने आइडिया को छोड़ दिया।


हालांकि उनकी खुशी के लिए, 2000 में उनका अपना खुद का बायोलॉजिकल बच्चा हुआ, लेकिन एक बच्चे को गोद लेने का विचार सोलोमन के दिमाग में हमेशा रहा। कुछ समय बाद वे एक ऐसे बच्चे अर्पुतराज से मिले जो एचआईवी से पीड़ित था और एड्स के चलते उसके माता-पिता की मृत्यू हो चुकी थी। उस बच्चे के साथ किसी एनजीओ का कोई सहारा नहीं था। उन्होंने उसे औपचारिक रूप से उसे गोद का फैसला किया।


कुछ ही दिनों बाद, उन्होंने एचआईवी से पीड़ित एक बच्ची को भी गोद लिया। जल्द ही, यह बात फैल गई कि सोलोमन उन बच्चों को गोद ले रहे थे जो एचआईवी से संक्रमित थे। जब एक और व्यक्ति ने उनसे दो और एचआईवी पॉजिटिव बच्चों को गोद लेने के लिए उससे संपर्क किया, तो सोलोमन ने इन बच्चों के लिए एक आश्रय (शेल्टर) शुरू करने का फैसला किया।


52 वर्षीय सोलोमन को अब चेन्नई में एचआईवी पीड़ित 47 बच्चों का 'अप्पा' माना जाता है, क्योंकि उन्होंने उन्हें अपने एनजीओ, 'शेल्टर ट्रस्ट' के रूप में उन बच्चों को घर दिया है।

सोलोमन का जीवन

सोलोमन का जन्म और पालन-पोषण हैदराबाद में हुआ, और वह धार्मिक अध्ययन के लिए चेन्नई चले गए। वे चेन्नई में 20 वर्षों से अधिक समय से हैं। आज, वह तीन जॉब कर रहे हैं- एक थियोलॉजिकल कॉलेज में बतौर शिक्षक पढ़ा रहे हैं, एनजीओ राइट नाऊ फाउंडेशन के लिए काम करते हैं और महिला एंव बाल विकास और अनुसंधान केंद्र में शेल्टर के बच्चों को सपोर्ट करने के लिए काम कर रहे हैं।


वे कहते हैं,

“मैं हर दिन सुबह लगभग 6 बजे अपना दिन शुरू करता हूं। मैं तीन अलग-अलग स्थानों पर काम करता हूं: मंगलवार और शुक्रवार मैं एक कॉलेज में पढ़ाता हूं, और सुबह 8 बजे तक मुझे क्लास में पहुंचना होता है। मैं लगभग 10.30 बजे क्लास खत्म करता हूं और फिर मैं ऑफिस (राइट नाउ फाउंडेशन या महिला केंद्र) जाता हूं, शाम को मैं आश्रय में जाता हूं और बच्चों के साथ खेलता हूं।"


वे आगे बताते हैं,

" शाम 7.30 बजे तक मैं अपने घर वापस चला जाता हूं। जिन दिनों मैं नहीं पढ़ा रहा होता हूं, मैं लगभग सुबह 7 बजे शेल्टर में जाता हूं और काफी देर तक मैं बच्चों के साथ रहता हूं। मैं तब ऑफिस जाता हूं (दो कार्यस्थलों के बीच बारी-बारी से) और शाम को मैं कुछ कागजी काम करता हूं।”

सोलोमन एड्स को लेकर लोगों की अज्ञानता के बारे में दृढ़ता से महसूस करते हैं, और अपने काम के माध्यम से कुछ मिथकों को दूर करना चाहते हैं। वे बताते हैं, "जब मैं एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के बारे में बात करता था, तो लोगों को अक्सर संदेह होता था क्योंकि उन दिनों इस बारे में ज्यादा जागरूकता नहीं थी।" यहां तक कि करीबी दोस्त और परिवार भी इन बच्चों के लिए सोलोमन की चिंता को नहीं समझते थे।


सोलोमन आगे बताते हैं,

“मेरे रिश्तेदारों और दोस्तों ने मुझे हतोत्साहित किया क्योंकि इसके बारे में वे नहीं जानते थे, और बहुत कम ज्ञान था। मैं बहुत आलोचना से गुजरा और कई नकारात्मक विचारों का सामना किया। ज्यादा लोग ऐसे नहीं थे जो इन बच्चों की देखभाल करने के मेरे काम को सराहते थे।”

शुरुआत में सोलोमन ने उन बच्चों की खुद से देखभाल की। वे आगे बताते हैं,

“मैंने सबसे पहले अपने घर में अपने बच्चों और परिवार के साथ शेल्टर शुरू किया। हम सब एक साथ रह रहे थे, लेकिन हमारा घर इतना छोटा था कि तीन बच्चों को गोद लेने के बाद हम ज्यादा नहीं टिक सकते थे। इसलिए मुझे उन्हें एक बेहतर जगह पर स्थानांतरित करना पड़ा और तब शेल्टर स्थापित करने का महंगा काम शुरू हुआ।"

शेल्टर ट्रस्ट का निर्माण

सोलोमन को 2003 में बच्चों के लिए घर बनाने के लिए बाल कल्याण समिति के साथ अपना एनजीओ पंजीकृत करना पड़ा। उन्होंने शेल्टर ट्रस्ट के निर्माण के लिए अपने खुद के फंड का उपयोग किया। उन्होंने अपने खुद के फंड के साथ लगभग आठ बच्चों का सपोर्ट करना शुरू किया, जिसके बाद उन्हें दोस्तों और रिश्तेदारों, रोटरी क्लब ऑफ मद्रास, लायंस क्लब और अन्य संगठनों से फंड प्राप्त हुआ। लेकिन कर्मचारियों को काम पर रखने का बड़ा काम अभी बाकी था।





सोलोमन याद करते हैं,

"शेल्टर के लिए एक घर खोजने के बाद, लोगों को रोजगार देना एक बहुत बड़ा काम था, क्योंकि कोई भी एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के साथ आना और काम करना नहीं चाहता था।"


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एचआईवी पीड़ित बच्चों के साथ सोलोमन

इसके बाद सोलोमन के दिमाग में एचआईवी पॉजिटिव कर्मचारियों को काम पर रखने के आइडिया आया। उन्होंने इसके लिए पहले विभिन्न अस्पतालों और एनजीओ में संदेश भिजवाया जो एनजीओ और उनके बच्चों का समर्थन कर सकें। शेल्टर ट्रस्ट के पास अब 12 फुल-टाइम कर्मचारी हैं; वे एचआईवी पॉजिटिव हैं और कैंपस में रहते हैं।


वे कहते हैं,

“जब वे 10 साल के हो जाते हैं तो हम बच्चों को बताते हैं कि एचआईवी पॉजिटिव होने का क्या मतलब है। हम उन्हें इस बात पर उन्मुख करना शुरू कर देते हैं कि वे यहाँ क्यों हैं, वे किस समस्या से गुजर रहे हैं, वे स्कूल जाने पर अपनी सुरक्षा कैसे करें, और वे स्थितियों और समाज को लेकर कैसे रिएक्ट करें। हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि वे नियमित रूप से अपनी दवा लेने के महत्व को समझें।”

आज, सभी 47 बच्चे जो उनकी देखरेख में हैं उनकी आयु तीन से 18 वर्ष तक है। उन बच्चों को अच्छे से पता है कि वे एचआईवी पॉजिटिव हैं, और उन्हें अपने जीवन के बाकी दिनों के लिए गोलियां लेने की आवश्यकता है। सभी अनाथ नहीं हैं; उनमें से अधिकांश सिंगल पैरेंट्स के घरों से आते हैं, जिन्हें बच्चे को सपोर्ट करना मुश्किल लगता है।


सोलोमन कहते हैं,

"प्रत्येक बच्चे को एक लाइसेंस प्राप्त होता है (बाल कल्याण समिति से), जो उन्हें 18 वर्ष की आयु तक हमारे समर्थन और देखभाल में रहने में सक्षम बनाता है।"

शेल्टर के बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला दिया जाता है। वह 18 साल की उम्र के बाद भी उन पर नजर रखना जारी रखते हैं, उच्च शिक्षा के लिए कुछ को सपोर्ट भी करते हैं। कुछ बच्चों ने वापस आकर कर्मचारियों के रूप में काम किया है। सोलोमन कहते हैं कि यह उनके लिए बहुत खुशी की बात है जब वे सभी उन्हें 'अप्पा' कहते हैं।

आगे का रास्ता

सोलोमन का कहना है कि उनके पास अपने एनजीओ के विस्तार की कोई योजना नहीं है, लेकिन वे अन्य परियोजनाओं जैसे "होमकेयर सपोर्ट प्रोजेक्ट" पर काम करना चाहते हैं।


वे कहते हैं,

“होमकेयर सपोर्ट के माध्यम से, हम अपने घरों में बच्चों की मदद करने की दिशा में काम कर रहे हैं। हम अंतिम उपाय के रूप में संस्थागत देखभाल प्रदान करना चाहते हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि बच्चों को अपने परिवारों के साथ रहना चाहिए और उन्हें सपोर्ट मिलना चाहिए। आमतौर पर, गरीबी और जागरूकता की कमी के कारण, इन बच्चों को अलग रखा जाता है और हमारी जैसी जगहों पर भेजा जाता है। हम इन परिवारों को एचआईवी पॉजिटिव बच्चे होने के बारे में जागरूकता पैदा कर रहे हैं।”

होमकेयर सपोर्ट प्रोजेक्ट के तहत, शेल्टर ट्रस्ट बच्चों को पोषण किट प्रदान करता है - जिसमें उनके घर पर एक अंडा, एक फल और एक दूध का पैकेट भेजा जाता है। इसके अलावा यह कुछ छात्रों को बैग, फीस, स्टेशनरी, और अन्य स्कूल की वस्तुओं के साथ भी सपोर्ट कर रहा है।


संगठन वर्तमान में इस परियोजना के माध्यम से शेल्टर से बाहर के 60 बच्चों की मदद कर रहा है, और लंबे समय में इसका विस्तार करना चाहता है।


अपने शेल्टर में बच्चों के भविष्य के लिए उनकी आशाओं और सपनों के बारे में बात करते हुए, सोलोमन कहते हैं,

“मेरी एकमात्र महत्वाकांक्षा यह है कि किसी भी अन्य बच्चे की तरह, वे बड़े हों, घर खोजें, घर बसाएं और उन्हें एक अच्छा जीवन व्यतीत करने को मिले। मुझे यह भी उम्मीद है कि एक दिन कोई व्यक्ति एक ऐसी सफल दवा के साथ आएगा जो एचआईवी और एड्स को ठीक करने में मदद करेगी। मैं चाहता हूं कि इन बच्चों का बेहतर भविष्य और अच्छा स्वास्थ्य हो।”