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आईएएस निधि का आखिरी सपना, कोई बच्चा सिग्नल पर तिरंगा बेचता नजर न आए

आईएएस निधि का आखिरी सपना, कोई बच्चा सिग्नल पर तिरंगा बेचता नजर न आए

Wednesday December 25, 2019 , 4 min Read

अपनी छोटी बहन के आईपीएस, और स्वयं बैंक मैनेजर से आईएएस अधिकारी बन चुकीं निधि चौधरी की जिंदगी का अब एक ही सपना बाकी बचा है कि पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को देश का कोई भी बच्चा किसी ट्रैफिक सिग्नल्स पर तिरंगा बेचता नजर न आए। ऐसा देखकर उन्हे देश की आजादी आधी-अधूरी सी लगती है।


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फोटो साभार: mumbaimirror



भारतीय रिजर्व बैंक के मैनेजर से आईएएस अधिकारी होने तक के सफर के कई रोचक-प्रेरक और दिलचस्प अध्याय हैं 2012 बैच की महाराष्ट्र कैडर की आईएएस निधि चौधरी के।


राजस्थान के अपने एक छोटे से गांव में कलेक्टर मैडम के नाम से मशहूर निधि चौधरी एक ऐसे क्षेत्र से आती हैं, जहां बेटियों का जन्म और पूरा जीवन कठिनाइयों से भरा होता है।


जब माता-पिता उनको स्कूल भेजते थे तो लोग ताने देने के अंदाज में उनके अभिभावकों से कहते थे कि अभी और कितना पढ़ाओगे लड़कियों को, कलेक्टर बनाना है क्या? एक समय वह था, और एक समय आज कि देखिए, वह कलेक्टर और उनकी बहन एसएसपी बन गई हैं।


जिंदगी के कुछ अधखुले पन्ने पलटते हुए वह कहती हैं,

उनके पठन-पाठन और उससे आगे का सफर बड़ा ही रोचक रहा है। उनकी छोटी बहन पहले ही आईपीएस परीक्षा पास कर चुकी थी। वह भी आरबीआई में मैनेजर के पद पर कार्यरत थीं। उन्हीं दिनों उनकी छोटी बहन ने उन्हें आईएएस अधिकारी बनने के लिए दिन-रात प्रेरित-बहुत प्रोत्साहित किया। उनका भी लक्ष्य शुरू से ही आइएएस बनकर समाज की सेवा करना था। वह हर हाल में समाज के लिए काम करना चाहती थीं।


बैंक मैनेजर के पद पर रहते हुए भी उन्होंने ज्यादा से ज्यादा इस दिशा में काम किया लेकिन आईएएस बनकर अब वह लोगों के लिए, देश-समाज के लिए ज्यादा बेहतर कुछ कर पा रही हैं।





निधि चौधरी बताती हैं कि उनके परिवार ने हर कदम पर उनकी मदद की। उन्हें आगे बढ़ने के लिए पूरा हौसला दिया। उनके पति ने बच्चे को संभाला और लक्ष्य तक पहुंचने में हर कदम पर साथ दिया। हर सफल पुरुष के पीछे एक औरत होती है, साथ ही हर सफल औरत के पीछे एक पुरुष होता है। उनका जीवन इसकी मिसाल है।

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आईएएस निधि चौधरी

उन्हें एक बात हमेशा हौसला देती रही है कि बस कुछ करना है, कभी डरना नहीं हैं, कुछ करके दिखाना है, यह सब बातें कभी हौसला टूटने नहीं देती हैं। उनके माता पिता ने सिर्फ उन्हें ही नहीं, उनकी बहनों को भी पढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष किया।


अब तो उनकी जिंदगी का एक ही बड़ा सपना है, जिसको मरने से पहले पूरा होते देखना चाहती हैं कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को कोई भी बच्चा देश के ट्रैफिक सिग्नल्स पर तिरंगा बेचता नजर न आए। ऐसा देखकर उन्हे देश की आजादी आधी-अधूरी सी लगती है।


निधि चौधरी चाहती हैं, हमारे समाज में बेटियों को यह बताया जाए कि वे किसी से कम नहीं हैं। उनकी तुलना लड़कों से नहीं की जानी चाहिए। देश का माहौल ऐसा बन गया है, जिसमें लड़कियों को लगता है कि वे सुरक्षित नहीं हैं।


बचपन से ही बच्चियों के संस्कार ऐसे बना दिए जाते हैं, जिसमें बड़ी होकर लड़कियों और महिलाओं को हमेशा सुरक्षा की बात डराती रहती है।


महिलाओं को ही एकजुट होकर यह सब बदलना होगा। यह बदलाव केवल औरतें ही ला सकती हैं। स्त्रियां नौ माह तक अपने पेट में बच्चे को पालती हैं तो यह भी उनकी ही जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को संदेश दें, कुछ इस तरह संस्कारित करें कि बेटा-बेटी बराबर होते हैं। उन्हें अपने बच्चों को यह भी मानने लायक संस्कारित करना होगा कि बेटियां बड़ी होकर कुछ कर गुजरें। अपने माता-पिता की प्रेरणा से ही वह और उनकी छोटी बहन दोनो ही प्रशासनिक अधिकारी बनकर आज देश-समाज की बेहतर सेवा कर पा रही हैं।