राजीव गांधी के मुंह से बिस्किट खींच लेने वाले आईएएस टॉपर शेषन नहीं रहे
1955 बैच के आईएएस टॉपर रहे टीएन शेषन अपने जीते-जी शेषन एक किंवदंति सी बन गए थे। वह वर्ष 1990 से वर्ष 1996 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। एक बार उन्होंने राजीव गांधी के मुंह से यह कहते हुए बिस्किट खींच लिया था कि प्रधानमंत्री को वह चीज नहीं खानी चाहिए, जिसका पहले परीक्षण न हुआ हो।
टीएन शेषन का न होना, जैसे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक युग का विदा हो जाना। भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन नहीं रहे। उन्होंने 86 साल की उम्र में अपने चेन्नई स्थित आवास पर कल रात अंतिम सांस ली। 1955 बैच के आईएएस टॉपर रहे टीएन शेषन वर्ष 1990 से वर्ष 1996 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। उन पर भले ही कांग्रेसी होने का ठप्पा लगा था लेकिन कांग्रेस खुद उनके फैसलों से परेशान रहा करती थी।
शेषन अक्सर मजाक में कहा भी करते थे कि मैं नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खाता हूं। भारत में बीते तीन दशकों में टीएन शेषन से ज़्यादा नाम शायद ही किसी नौकरशाह ने कमाया हो। नब्बे के दशक में तो भारत में एक मज़ाक प्रचलित था कि भारतीय राजनेता सिर्फ़ दो चीज़ों से डरते हैं- एक ईश्वर, दूसरे टीएन शेषन से। वह अपनी एक साफ सुथरी छवि के साथ भारतीय अफ़सरशाही के सर्वोच्च पद कैबिनेट सचिव भी रहे।
एक वक़्त में मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकारों को भंग करने के बाद तत्कालीन मंत्री अर्जुन सिंह ने कहा था कि इन राज्यों में चुनाव सालभर बाद होंगे। शेषन ने तुरंत प्रेस विज्ञप्ति जारी कर याद दिला दी कि चुनाव की तारीख मंत्री नहीं, चुनाव आयोग तय करता है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर भी शेषन तल्ख रहे।
लालू, शेषन को जमकर लानतें भेजते हुए कहा करते कि
'शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे।'
कैबिनेट सचिव रहने के दौरान शेषन ने एक बार राजीव गांधी के मुंह से यह कहते हुए बिस्किट खींच लिया था कि प्रधानमंत्री को वह चीज नहीं खानी चाहिए, जिसका पहले परीक्षण न किया जा चुका हो। शेषण की प्रसिद्धि का एक कारण यह भी रहा कि उन्होंने जिस भी मंत्रालय में काम किया, उस मंत्री की छवि अपने आप ही सुधर गई लेकिन 1990 में मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद शेषन ने उन सभी मंत्रियों से मुँह फेर लिया।
टीएन शेषन के देश का मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की भी बड़ी रोचक दास्तान है। दिसंबर 1990 की रात करीब एक बजे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने जब शेषन के घर पहुंचकर पूछा कि क्या आप अगला मुख्य चुनाव आयुक्त बनना चाहेंगे तो करीब दो घंटे की मशक्कत के बावजूद वह सहमत नहीं हुए लेकिन राजीव गांधी से मिलते ही वह कुर्सी संभालने के लिए तैयार हो गए।
चुनाव आयोग में कार्यकाल समाप्त होने के बाद एक बार मसूरी की लाल बहादुर शास्त्री अकादमी ने उन्हें आईएएस अधिकारियों को सम्बोधित करने के लिए बुलाया।
उस दिन शेषन के भाषण का पहला वाक्य था-
'आपसे ज़्यादा तो एक पान वाला कमाता है।'
उनकी साफ़गोई ने ये सुनिश्चित कर दिया कि उन्हें इस तरह का निमंत्रण फिर कभी न भेजा जाए। उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी तो उसे छपवाने के लिए तैयार नहीं हुए क्योंकि उनका मानना था कि उससे कई लोगों को तकलीफ़ होगी।
उनका कहना था,
'मैंने ये आत्मकथा सिर्फ़ अपने संतोष के लिए लिखी है।' इस तरह अपने जीते-जी शेषन एक किंवदंति सी बन गए थे।
जब वह चेन्नई में ट्रांसपोर्ट कमिश्नर थे, तो लोग कहने लगे कि उन्हें ड्राइविंग और बस इंजन की जानकारी नहीं है, तो ड्राइवरों की समस्या कैसे हल करेंगे? इस पर शेषन ने ड्राइविंग के साथ बस का इंजन खोलकर दोबारा फिट करना सीखा। चेन्नई में बस हड़ताल के वक्त यात्रियों से भरी बस 80 किमी तक चलाकर ले गए।
भारतीय नौकरशाही के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर काम करने के बावजूद वह चेन्नई में यातायात आयुक्त के रूप में बिताए गए दो सालों को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय मानते थे। उस पोस्टिंग के दौरान 3000 बसें और 40,000 हज़ार कर्मचारी उनके नियंत्रण में थे। उन्होंने न सिर्फ़ बस की ड्राइविंग सीखी बल्कि बस वर्कशॉप में भी काफ़ी समय बिताया। वह इंजन को बस से निकाल कर दोबारा फ़िट कर देते थे। एक बार उन्होंने बीच सड़क पर ड्राइवर को रोक कर स्टेयरिंग संभाल ली और यात्रियों से भरी बस को 80 किलोमीटर तक चलाकर ले गए।