₹5 में लंच और ₹10 में कपड़े, पढ़िए दादी की रसोई चलाने वाले अनूप खन्ना की प्रेरक कहानी
कटिंग चाय से कम की कीमत में गरीबों को खाना खिला रहे नोएडा के अनूप खन्ना, राष्ट्रपति भवन भी जा चुके हैं...
आज के इस दौर में जहां कटिंग चाय भी 7 रुपये की मिलती है, वहां एक ऐसा शख्स है जो अकेले खुद के दम पर जरूरतमंद लोगों को 5 रुपये में देसी घी का लंच करा रहा है।
जी हां, जिस शख्स की आज हम बात करेंगे वे पिछले 4 साल से गरीब लोगों को 5 रुपये में लंच और 10 रुपये में कपड़े उपलब्ध करवा रहे हैं। नोएडा में पिछले 25 साल से रहने वाले अनूप खन्ना (62) एक समाज सेवी हैं।
21 अगस्त 2015 को अनूप खन्ना ने अपनी मां के नाम से 'दादी की रसोई' खोली। यहां पर वे जरूरतमंद लोगों को मात्र 5 रुपये में लंच कराते हैं। अनूप खन्ना रोज दोपहर 12 बजे अपनी दुकान (नोएडा सेक्टर 29 गंगा शॉपिंग कॉम्पलेक्स) के सामने दो टेबल पर खाना लगाते हैं। वे एक दिन में 500 लोगों को खाना खिलाते हैं। ऐसा वे पिछले 4 साल से कर रहे हैं। लोगों को खाना खिलाने के अलावा वे उन्हें मात्र 10 रुपये में कपड़े भी उपलब्ध करवाते हैं।
अपने इन समाजोपयोगी कामों की बदौलत अनूप खन्ना आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। देश के लगभग सभी बड़े अखबारों, चैनलों और यहां तक कि बड़े-बड़े यूट्यूबर्स भी उन्हें लेकर विडियोज बना चुके हैं।
वे योरस्टोरी को बताते हैं,
'मेरा झुकाव शुरू से ही समाज के लिए काम करने की ओर था। जहां और जितना हो सकता है, मैं अपनी ओर से मदद करने के लिए तैयार रहता हूं। मेरा मानना है कि सभी को अपने हिस्से का योगदान समाज के उत्थान में देना चाहिए।'
मूलत: मुरादाबाद निवासी अनूप खन्ना बिहार बाढ़, केदारनाथ बाढ़ पीढ़ितों की भी मदद कर चुके हैं। अपने परोपकारी कामों के लिए उन्हें 4 बार राष्ट्रपति भवन से बुलावा भी आया है।
वह कहते हैं,
'मुझे दादी की रसोई के मॉडल को विस्तार से बताने के लिए राष्ट्रपति भवन बुलाया गया था। मैंने वहां अपने मॉडल के बारे में बताया। मुझे खुशी है कि आज देश में 400 से अधिक जगहों पर अलग-अलग लोग गरीबों को खाना खिला रहे हैं।'
खाने के अलावा अनूप खन्ना लोगों को कपड़े भी देते हैं। ये कपड़े पुराने होते हैं जो कोई व्यक्ति देकर जाता है। इसमें मात्र 10 रुपये लेकर आओ और मनचाहे कपड़े ले जाओ। साथ ही अगर आप महंगी शेरवानी, कोट भी लेना चाहें तो यह सुविधा भी आपको मिलती है। इसके लिए आपको शेरवानी या कोट को ड्राईक्लीन करवाकर वापस जमा कराना होता है।
अब अनूप खन्ना प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के जरिए लोगों को सस्ती दवाइयां भी उपलब्ध करवा रहे हैं। इसी साल 8 सितंबर को उनकी मां जिनके नाम पर दादी की रसोई चल रही थी, उनका स्वर्गवास हो गया।
अपनी मां को याद करते हुए वह कहते हैं,
'मेरी मां ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। उन्हीं के आशीर्वाद की बदौलत आज हम यहां हैं और उम्मीद है कि आगे भी उनका आशीर्वाद बना रहेगा।'
अनूप खन्ना के एक बेटा और एक बेटी है। बेटा हॉन्गकॉन्ग में सेटल है और बेटी बड़े मीडिया हाऊस में अच्छे पद पर कार्यरत हैं।
डिसिपिलिन (अनुशासन) और सिविक सेंस (नागरिक बोध) का ज्ञान जरूरी
अनूप खन्ना का मानना है कि इंसान को अगर जीवन में सफलता चाहिए तो अनुशासन और सिविक सेंस होना सबसे जरूरी है।
योरस्टोरी को वह बताते हैं,
'दादी की रसोई की यूएसपी यही है कि यहां सारा काम अनुशासन से होता है। हम यहां लोगों को सिर्फ खाना ही नहीं खिलाते बल्कि उन्हें अपने नागरिक बोध का एहसास भी कराते हैं। जब हम खाना खिलाते हैं तो यहां पर लोग एक लाइन में पार्किंग करते हैं। कोई भी अपने मन से उल्टी-सीधी गाड़ी पार्क नहीं करता। यही सब बातें अपने जीवन में भी होनी चाहिए।'
डिग्री और एजुकेशन में फर्क होता है
वह कहते हैं कि डिग्री और एजुकेशन में फर्क होता है। पहले के लोगों को एजुकेशन मिलती थी और आजकल के लोगों को डिग्री मिलती है और इसका फर्क दोनों पीढ़ियों के व्यवहार में नजर आता है।
वह कहते हैं,
'जो काम करो, मन से करो। अगर गाड़ी भी चलाना है तो मन से चलाओ ताकि आपको उसमें मजा आए। किसी भी काम को बेमन से करने पर उसमें सफलता के चांसेज एकदम खत्म हो जाते हैं।'
सरकार से मदद लेना नहीं, सरकार को चुनौती देना पसंद है
सरकार से सहयोग लेने की बात पर वह कहते हैं कि मुझे सरकार से हेल्प लेना नहीं बल्कि उसे चुनौती देना पसंद है। वह सरकार से कोई हेल्प नहीं मांगते।
वह कहते हैं,
'सरकार से हेल्प लेने का मतलब है कि उसका फोटोशूट करना। एक बार हेल्प लेने के बाद यहां काम कम और प्रचार ज्यादा होने लगेगा और यही सब मैं नहीं चाहता। साथ ही मैं सरकार को चुनौती देता हूं कि मैं 5 रुपये में लोगों को खाना दे रहा हूं, अब आप भी देकर दिखाइए।'
चुनाव भी लड़ चुके हैं
अनूप खन्ना अन्ना हजारे से काफी प्रभावित थे। अन्ना आंदोलन के समय उन्होंने 14 दिन तक अनशन भी किया था। साल 2012 में उन्होंने नोएडा से विधानसभा चुनाव भी लड़ा।
उन दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं,
'कई लोगों ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए कहा और मैंने भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली। मुझे पता था कि मैं चुनाव हारूंगा लेकिन फिर भी मैं लड़ा। आप यकीन नहीं करेंगे कि मुझे सिर्फ 648 वोट मिले और मैं सेकंड लास्ट नंबर पर रहा। उस चुनाव में डॉ. महेश शर्मा विधायक बने।'
वह कहते हैं कि राजनीति में वोट अच्छे कामों से नहीं बल्कि जाति, धर्म के कारण मिलते हैं।
वो सुबह कभी तो आएगी
वह कहते हैं,
'जब तक मेरे बस में है, मैं समाज सेवा करता रहूंगा। मेरा सिर्फ इतना मानना है कि आपका कॉन्सेप्ट क्लियर होना चाहिए। काम अपने आप हो जाएगा। दादी की रसोई में कई लोग मदद करने की पेशकश करते हैं। मैं उनसे मदद ना लेकर उन्हें उनके स्तर पर ऐसे समाजपयोगी काम करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं।'
अंत में गायक मुकेश के गाने 'वो सुबह कभी तो आएगी' को गुनगुनाते हुए वह कहते हैं,
'एक दिन वो सुबह आएगी जिस दिन देश में हर शख्स को दोनों टाइम भरपेट खाना मिलेगा।'