ऑर्बिटर से अभी भी उम्मीदें कायम: अगर विक्रम लैंड करता तो योजना के मुताबिक क्या होता?
देश में होने वाली हर चीजों की तरह चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर के चांद के सतह पर उतरने के समय भी कई भावुक पल और नाटकीय मोड़ देखने को मिले। विक्रम लैंडर को भारतीय समयानुसार 6 सितंबर को 1:52 AM पर चांद की सतह पर उतरना था।
हालांकि चांद की सतह से सिर्फ 2.1 किलोमीटर पहले विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया। यह लैंडर 2 सितंबर को चंद्रयान 2 के ऑर्बिटर से अलग हुआ था और पिछले 5 दिनों से चांद की कक्षा में घूम रहा था।
इसरो चेयरमैन डॉ. के सिवन ने बताया कि सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था और सिर्फ 2.1 किलोमीटर पहले लैंडर से संपर्क टूट गया। उन्होंने बताया कि इसरो फिलहाल विक्रम लैंडर के भेजे डेटा का विश्लेषण करने में जुटा हुआ है।
सुबह के 3 बजे जारी एक आधिकारिक बयान में इसरो ने बताया,
'विक्रम लैंडर योजना के मुताबिक ही चांद की तरह बढ़ रहा था और 2.1 किलोमीटर की दूरी तक उसका प्रदर्शन सामान्य था। इसके बाद लैंडर से ग्राउंड स्टेशन का संपर्क टूट गया। डेटा का विश्लेषण किया जा रहा है।'
बेंगलुरु स्थित इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड सेंटर (ISTRAC) लगातार इस मिशन की निगरानी कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस कार्य में वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाने के लिए आईसीटीआरएसी में मौजूद थे। मोदी ने कहा कि उन्हें वैज्ञानिकों पर पूरा विश्वास है। उन्होंने कहा, 'हमें उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। आपने (इसरो वैज्ञानिकों ने) मानवता के लिए काफी कुछ किया है और मैं इस पूरे सफर में आपके साथ हूं।'
पीएम मोदी ने स्कूली बच्चों से भी मुलाकात की जो इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने आए थे। एक छात्र ने जब पीएम मोदी से पूछा कि जिंदगी में हमेशा आगे बढ़ने के लिए खुद को कैसे प्रेरित करें तो उन्होंने कहा कि अपनी विफलताओं को कंधे पर नहीं ढोना चाहिए, बल्कि उन्हें छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए।
इसरो वैज्ञानिक भी फिलहाल यहीं कर रहे हैं। अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। विभिन्न इक्विपमेंट से लैस ऑर्बिटर अभी भी अपनी दिशा में आगे बढ़ रहा है, जो कई टेस्टों को अंजाम देगा।
अगर विक्रम लैंड करता तो योजना के मुताबिक क्या होता?
चांद की सतह से 400 मीटर की दूरी से विक्रम लैंडर को दो इंजनों के साथ पैराबोलिक तरीके से उतारा जाना था। अपने अंतिम चरण के दौरान, विक्रम लैंडर को यह सुनिश्चित करना था कि वह एक विपरीत बल बनाए, जिससे चांद की सतह पर वह धीरे-धीरे लैंड करे। विक्रम के निचले हिस्सों में टचडाउन सेंसर भी लगे हैं।
सतह पर सफलापूर्वक उतरने के बाद इसे पेलोड्स की तैनाती का अभियान शुरू करना था, जिसे अभियान के सबसे अहम हिस्सों में से एक माना जाता है। इसरो के मुताबिक विक्रम लैंडर CHASTE (चंद्राज सरफेस थर्मों-फिजिकल एक्सपेरिमेंट), RAMBHA (रेडियो एनाटॉमी मून बाउंड हाइपरसेन्सिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फीयर ) और ILSA (इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी) ले जा रहा था।
इन पेलोड्स की सफलतापूर्वक तैनाती के बाद छह पहिए वाले प्रज्ञान रोवर को सुबह 5:30 बजे चांद की सतह पर चलने का काम शुरु करना था। रोवर के उतरते समय इसके सोलर पैनल ने बैटरी को शक्ति देता और यह एनएवी कैमरे के इस्तेमाल से अपने चारों तरफ के वातावरण को स्कैन करता ।
स्कैनिंग पूरी होने के बाद डेटा को विक्रम के जरिए धरती पर भेजने की योजना बनाई गई थी। इसके बाद इस स्कैन को मिशन कंट्रोल में प्रॉसेस किया जाता, जिसके आधार पर प्रज्ञान के आगे के रास्ता की योजना बनती।
किसी भी तरह की बाधा आने पर प्रज्ञान को अपने रॉकर बोगी सिस्टम का इस्तेमाल कर उससे निकलना था। यह 50 मिमी ऊपर और 50 मिमी नीचे के मूवमेंट रेंज से लैस है। इसके अलावा मिशन कंट्रोल प्रज्ञान को रुकने का निर्देश दिया होता और उसे एपीएक्सएस (अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर) पेलोड का इस्तेमाल करके चांद पर मौजूद चट्टानों की मिट्टी की मौलिक संरचना का पता लगाने का निर्देश देता।
चांद की सतह को समझने के लिए प्रज्ञान को अपने LIBS (लेजर इंडिकेटेड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोमीटर) पेलोड का इस्तेमाल करना था, जिससे चांद की सतह की मौलिक संरचना के बारे में जानकारी मिलती।
हालांकि अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। विक्रम लैंडर और ISRO के अगले कदम से जुड़े हर अपडेट को जानने के लिए योरस्टोरी के साथ बने रहें।