मिलिए थॉमस अल्वा एडिसन से ज्यादा अमेरिकी पेटेंट रखने वाले भारतीय मूल के वैज्ञानिक गुरतेज से
इतिहास ऐसे इनोवेटर्स और वैज्ञानिकों के एक समूह से भरा पड़ा है जिन्होंने हमारे जीने और काम करने के तरीके को नए सिरे से परिभाषित किया है। चाहें वह निकोला टेस्ला का इलेक्ट्रोमैगनेटिज्म पर किया गया काम हो, रोजलिंड फ्रैंकलिन का डीएनए सीक्वेंसिंग में योगदान, या एलन ट्यूरिंग का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर किया गया काम हो, हमेशा ही दुनिया के सर्वश्रेष्ठ दिमागों ने कुछ महत्वपूर्ण आविष्कारों और खोजों को जन्म दिया है जो मानव जाति को पुनर्जीवित करते हैं।
भारत में भी आविष्कारकों का एक समूह है। उदाहरण के लिए, गुरतेज संधू को ही ले लें। अमेरिका के इदाहो में रहने वाले आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र गुरतेज के पास प्रसिद्ध आविष्कारक थॉमस एडिसन की तुलना में अधिक पेटेंट हैं। पिछले 29 वर्षों से, गुरतेज ने 1,299 अमेरिकी पेटेंटों हासिल किए हैं। यह एडीसन से अधिक है, जिनके पास 1,093 अमेरिकी पेटेंट थे।
ScoopWhoop के अनुसार, गुरतेज वर्तमान में एक इनवेंटर होने के अलावा माइक्रोन टेक्नोलॉजी के वाइस प्रेजिडेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं।
सवाल उठता है कि गुरतेज की आविष्कार के प्रति रुचि कैसे विकसित हुई? दरअसल गुरतेज का जन्म लंदन में भारतीय माता-पिता के घर हुआ था। उन्होंने IIT दिल्ली में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। ठीक इसके बाद, वह फिजिक्स में डॉक्टरेट की पढ़ाई करने के लिए चैपल हिल स्थित उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय चले गए।
पीएचडी के दौरान, 58 वर्षीय गुरतेज को इंटीग्रेटेड सर्किट्स (integrated circuits) में रुचि हो गई और वे इसमें काफी कुशल भी हो गए। इसके बाद उन्हें दो जॉब ऑफर हुईं, एक टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स से और दूसरी माइक्रोन टेक्नोलॉजी से, जो उस समय जापान और अन्य देशों में सरकार द्वारा सब्सिडी वाली मेमोरी चिप निर्माताओं के खिलाफ संघर्ष कर रही थी।
हाथ में दो ऑप्शन लिए, गुरतेज इदाहो के बोइज (Boise) शहर स्थित माइक्रोन गए और वहां उन्होंने मूर की विधि (Moore’s Law) पर काम किया। समय के साथ उन्होंने चिप्स पर अधिक मेमोरी सेल्स को कॉपी करने का एक तरीका ढूंढ लिया, जिससे वे अधिक कुशल हो गए। इसने पेटेंट की सीरीज का नेतृत्व किया, जिसने उन्हें एक आविष्कारक का दर्जा हासिल कराया।।
जिस समय पेटेंट दायर किया गया था उस दौरान गुरतेज माइक्रोन के साथ काम कर रहे थे इसलिए पेटेंट का स्वामित्व कंपनी के पास था, हालांकि गुरतेज और उनके सहयोगियों ने उस पर काम किया था, जिसका उन्हें बोनस मिला था।
इसके अलावा, पिछले 15 वर्षों से गुरतेज ने बोइज स्टेट यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की बड़ी कंपनियों को मेंटॉर किया और बतौर फैकल्टी भी काम किया है। इदाहो स्टेट्समैन से गुरतेज के उल्लेख के बारे में बात करते हुए, विश्वविद्यालय के माइक्रोन स्कूल ऑफ मैटेरियल्स साइंस एंड इंजीनियरिंग के निदेशक विल ह्यूजेस ने कहा,
"खासा प्रभाव रखने के बावजूद वे काफी विनम्र हैं। और उन्होंने वैश्विक स्तर पर उभरती हुई प्रौद्योगिकी और उभरती हुई मैमोरी की नब्ज को पकड़ा है।”
गुरतेज ने न केवल अपने इनोवेशन्स के लिए पेटेंट हासिल किए हैं, बल्कि उन्होंने माइक्रोन जैसी नीचे जा रही कंपनी को भी उठा लिया, जो अब कोरिया में अपने प्रतिद्वंद्वी जैसे सैमसंग और एसके हाइनिक्स के साथ-साथ वैश्विक DRAM बाजार के 95 प्रतिशत पर कब्जा रखती है।