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अब जमीन पर नहीं बैठेंगे सरकारी स्कूल के ये बच्चे, IIT स्टूडेंट्स ने निकाला हल

आईआईटी मद्रास के कुछ स्टूडेंट्स ने इसी प्रॉब्लम का एक समाधान खोजा और पुराने कार्डबोर्ड और प्लाईबोर्ड की मदद से एक सरकारी स्कूल के चार सौ बच्चों के लिए डेस्क तैयार कर दी।

 अब जमीन पर नहीं बैठेंगे सरकारी स्कूल के ये बच्चे, IIT स्टूडेंट्स ने निकाला हल

Saturday January 05, 2019 , 2 min Read

डेस्क तैयार करते IIT के स्टूडेंट्स


एक तरफ जहां डिजिटल और स्मार्ट एजुकेशन की बात हो रही है वहीं दूसरी तरफ देश के अधिकतर सरकारी प्राइमरी स्कूलों में बच्चे आज भी जमीन पर बैठते हैं। उन्हें डेस्क और बेंच नसीब नहीं होती। ऐसे में क्या हम भारत को पूरी तरह से एजुकेटेड देश बना सकते हैं। आईआईटी मद्रास के कुछ स्टूडेंट्स ने इसी प्रॉब्लम का एक समाधान खोजा और पुराने कार्डबोर्ड और प्लाईबोर्ड की मदद से एक सरकारी स्कूल के चार सौ बच्चों के लिए डेस्क तैयार कर दी।

IIT-M के 11 स्टूडेंट्स ने रीच (REACH) नाम से एक प्रोग्राम शुरू किया है जिसकी मदद से पर्यावरण को हानि न पहुंचाते हुए पुरानी चीजों से शिक्षण सामग्री तैयार किया जाता है। REACH प्रोग्राम को हेड करने वाले सब्यसाची मिश्रा ने कहा, 'शास्त्र नाम से 2016 में एक प्रोग्राम की शुरुआत हुई थी जिसके तहत REACH का जन्म हुआ। इस तरह से हम समाज की सेवा कर रहे हैं। बीते साल हमने बबल नाम से एक प्रोग्राम शुरू किया था जिसमें हमने स्कूली बच्चों को हैंडवॉश प्रदान किया।'

वे आगे कहते हैं, 'हमने देखा कि बच्चों के पास डेस्क और बेंच नहीं है इस वजह से उन्हें जमीन पर बैठना पड़ता है। इसलिए हमने सोचा कि क्यों न उनके लिए डेस्क तैयार की जाएं।' इस प्रोग्राम में एनजीओ टीच फॉर इंडिया ने भी मदद की और आईआईटी स्टूडेंट्स ने डेस्क बनाना शुरू किया। डेस्क तैयार करते हुए बच्चों की सुरक्षा का भी ख्याल रखा गया। डेस्क के कोनों से किसी बच्चे को चोट न लग जाए इसलिए कोनों पर टेप लगाए गए। अगस्त में इस कार्यक्रम की परिकल्पना की गई थी और अक्टूबर में डेस्क की पहली लॉट वितरित कर दी गई। 

अब IIT-M के स्टूडेंट्स की टीम सरकारी स्कूलों में बाकी सुविधा भी मुहैया कराने के विषय में सोच रही है। 2016 में इस कार्यक्रम की शुरुआत 'प्लेज अ बुक' (Pledge a Book) नाम से हुई थी। जिसके तहत पुरानी किताबों को लोगों के घरों और लाइब्रेरी से इकट्ठा किया गया और फिर उसे सरकारी स्कूल के बच्चों में वितरित किया गया। इसके बाद सिंक नाम से एक और कार्यक्रम शुरू हुआ था जिसके तहत बच्चों के लिए प्याऊ की व्यवस्था की गई और उन्हें बोतलें बांटी गईं।


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