दिल्ली में ई-बसों का विस्तार हो तो घट सकती हैं प्रदूषण से होने वाली मौत
अभी दिल्ली में चलने वाली सरकारी बसें सीएनजी से चलती हैं. एक नए अध्ययन में यह कहा गया है कि अगर इन बसों को इलेक्ट्रिक बसों में तब्दील कर दिया जाए तो इस शहर में प्रदूषित हवाओं का उत्सर्जन 74.67 प्रतिशत तक कम हो सकता है.
दिल्ली में वायु प्रदूषण का मौसम फिर से आ रहा है और लोग सहमे हुए हैं. दूसरी तरफ 2022 की शुरुआत से दिल्ली की सड़कों पर कई नए तरीके की बसें भी दिख रही हैं. नीले या सफेद और हरे रंग से रंगी इन बसों पर ‘शून्य उत्सर्जन’ लिखा होता है. ये दिल्ली सरकार की बसें हैं जिनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है. दिल्ली सरकार ने इस साल के मई के महीने मे 150 नई इलेक्ट्रिक बसों को सड़कों पर उतारा था. इसके अलावा दिल्ली मे भारी मात्रा में प्राकृतिक गैस से चलने वाले सीएनजी बसें भी हैं.
सीएनजी बसों के चलने से दिल्ली की सड़कों पर कई हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड. इसके अलावा पार्टीकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 का भी उत्सर्जन होता है. पर इलेक्ट्रिक बसों से कोई उत्सर्जन नहीं होता है. क्योंकि यह ईंधन के लिए बैटरी पर आधारित होती हैं जिन्हें बिजली से चार्ज किया जाता है.
जापान के क्यूशू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने एक नए शोध में बताया है कि दिल्ली में अगर इलेक्ट्रिक बसों की विस्तार किया जाये तो इससे कई फायदे होंगे. इस शोध में एक ऐसे स्थिति की कल्पना की गई है जिसमें शहर के सार बस इलेक्ट्रिक बसों में तब्दील कर दिए जाएं.
यह शोध इस साल के सितंबर महीने में प्रकाशित हुआ था. इसमें यह अनुमान लगाने की कोशिश की गयी है कि अगर शहर के सारे बस इलेक्ट्रिक वाहन हों तो इससे लोगों के स्वास्थ्य और शहर में प्रदूषण इत्यादि पर क्या असर होगा. इसे समझने के लिए लिए शोधकर्ताओं ने एक मॉडल विकसित किया.
इस अध्ययन में दावा किया गया है कि दिल्ली में सार्वजनिक क्षेत्र में सम्पूर्ण इलेक्ट्रिक बस होने की स्थिति में शहर में 74.67 प्रतिशत ऐसे प्रदूषित गैस का उत्सर्जन रोका जा सकता है.
दिल्ली बस निगम (डीटीसी) के आंकड़ें कहते हैं कि शहर में कुल 7310 बसें हैं जिसमें से 7,060 सीएनजी से चलती हैं. इसके अतिरिक्त 250 इलेक्ट्रिक बसें भी हैं. सरकारी आंकड़ें कहते हैं कि एक सीएनजी बस प्रति दिन औसतन 200 किलोमीटर की दूरी तय करती है. ये बसें या तो दिल्ली बस निगम द्वारा चलायी जाती हैं या दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टी-मॉडल ट्रांसिट सिस्टम का हिस्सा हैं.
दिल्ली सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि 2025 तक दिल्ली में 8000 ई-बसें होंगी. ट्रांसपोर्ट विभाग के सूत्रों की माने तो अगले दो से तीन महीने में ही 50 नए ई-बस शहरों की सड़कों पर देखने को मिलेंगे. इनके अतिरिक्त 4000 नए ई-बसों के लिए भी जल्द ही नया टेंडर होने जा रहा है.
इस अध्ययन के शोधकर्ता तावोस हसन भट ने मोंगाबे-हिन्दी तो बताया कि अगर दिल्ली मे सारे सार्वजनिक बसें सिर्फ इलेक्ट्रिक बसें ही हो तो पीएम 2.5 का कुल उत्सर्जन हर साल 44 टन तक कम किया जा सकता है. इससे वायु प्रदूषण से हर साल होने वाले 1370 मौतों को रोका जा सकता है. कई लोग सांस की बीमारी से भी बच जाएंगे. शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसी स्थिति में हर साल स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले में लगभग 311 करोड़ रुपये की बचत भी होगी.
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पीएम 2.5 के उत्सर्जन को समझने के लिए भी एक मॉडल का विकास किया और इस तरह दिल्ली के 11 जिलों के उत्सर्जन का आंकलन किया. इस मॉडल में मौसम की जानकारी, यातायात के आंकड़ें, बसों द्वारा दी जाने वाली सुविधा, यात्रियों की संख्या इत्यादि का अध्ययन किया गया. इस आधार पर यह अनुमान लगाया गया कि वर्तमान में चल रही बसों को अगर इलेक्ट्रिक बसों से बदल दिया जाए तो स्थिति में क्या सुधार होगा. भट कहते हैं कि दिल्ली में अभी हर वर्ष पीएम 2.5 का उत्सर्जन लगभग 59.49 टन तक होता है.
इस अध्ययन में कहा गया कि सीएनजी बसों की तुलना में इलेक्ट्रिक बस कम यात्रियों को एक जगह से दूसरे जगह ले जा सकती हैं क्योंकि सीएनजी बसों की तरह वो दिन भर नहीं चल सकतीं. चार्जिंग के लिए दिन में उन्हें कुछ देर के लिए ठहरना ही पड़ेगा.
एक दूसरे वैश्विक अध्ययन के अनुसार दिल्ली में 17.8 प्रतिशत मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं. 2021 का ग्रीनपीस का यह शोध कहता है कि 2020 में पीएम 2.5 के उत्सर्जन के कारण दिल्ली में 54000 मौतें दर्ज की गई.
इलेक्ट्रिक बसों से जुड़ी चुनौतियां
इस अध्ययन के शोधकर्ता भट कहते हैं कि ई-बसों के बढ़ने से स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी फायदा भी होगा. लेकिन इस क्षेत्र में बहुत सी चुनौतियां भी हैं. “अगर सरकार सीएनजी बसों को हटा कर ई-बस चलना चाहती है तो इसके लिए बहुत निवेश की जरूरत है. लेकिन चुकी ई-बसों को चलाने में आने वाला खर्च सीएनजी बसों की तुलना में कम है तो यह लंबे समय में फायदे का ही सौदा साबित होने वाला है,” भट कहते हैं.
उनका यह भी कहना है कि ई-बसों के ईंधन के रूप में प्रयोग में आने वाली बैटरियों को चार्ज करने में लगने वाले बिजली का बोझ दिल्ली के ऊर्जा जरूरतों की तुलना में बहुत ज्यादा नहीं है. “हमनें इसका भी आंकलन किया है और पता लगाया कि अगर पूरे सार्वजनिक यातायात ई-बसों पर आधारित हो तो भी इसपर लगने वाले चार्जिंग का बोझ दिल्ली की पूरी ऊर्जा की जरूरतों का केवल 1.3 प्रतिशत ही होगा और अगर सरकार इसके चार्जिंग के लिए नवीन ऊर्जा का प्रयोग करे तो बिजली की मांग और घट जाएगी” भट आगे कहते हैं.
लेकिन भट बताते हैं कि ई-बस सीएनजी बसों की तुलना में थोड़ा कम प्रभावशाली है तो सरकार को ज्यादा ई-बस की व्यवस्था करनी होगी. “अगर 100 सीएनजी बसों के बराबर का प्रदर्शन चाहते हैं तो आपको लगभग 125 ई-बसों की व्यवस्था करनी होंगी. क्योंकि सीएनजी बसें दिन भर दिल्ली की सड़कों पर चल सकती हैं और ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को भार उठा सकती है लेकिन ई-बसें पूरे चार्ज होने पर भी दिन भर नहीं चल सकतीं और चार्जिंग के लिए बसों को ब्रेक लेना पड़ेगा,” भट ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
विशेषज्ञों का कहना है कि इलेक्ट्रिक बसों को चार्ज करने की चुनौती के लिए कोई अच्छा विकल्प अब तक नहीं आया है. ” हाल ही में भारत सरकार ने चार्जिंग के बदले बैटरी बदलने की नीति और संस्थान भी बनाने की शुरुआत की है लेकिन इलेक्ट्रिक बसों जैसे बड़े वाहनों के लिए यह प्रभावशल विकल्प नहीं होगा. क्योंकि इसमें बहुत समय और लोगों की जरूरत पड़ेगी. छोटे इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए यह विकल्प काम कर सकता है. इस तरह का प्रयोग पहले भी किया गया है लेकिन सफल नहीं हो पाया. अब भारत सरकार एक नए प्रयोग पर भी ध्यान दे रही है जहा बैटरी की जगह ऐसे कारीडोर तैयार किए जाये जहां ऊपर की ओर बिजली के तार लगे हो जिससे बसों को जरूरी ईंधन मिलता रहे. आजकल रेल गाडियां या मेट्रो में ऐसी व्यवस्था देखी जा सकती है,” संयोग तिवारी का कहना है जो ईवी ऊर्जा के संस्थापक हैं. ईवी ऊर्जा बैटरी चार्जिंग और बैटरी के व्ययसाय में है.
उन्होंने यह भी कहा कि इलेक्ट्रिक बसों के प्रयोग से प्रदूषण पर रोक तो लगेगी ही और सरकार का बसों को चलाने में लगने वाला खर्च भी कम होगा. क्योंकि सीएनजी बसों की तुलना में इलेक्ट्रिक बसों के संचालन और देख रेख में कम खर्च आता है. दिल्ली में इलेक्ट्रिक बसें ग्रॉस कांट्रैक्ट मॉडल पर काम करती हैं जहां सरकार इलेक्ट्रिक बसों को खरीदती नहीं है बल्कि बस कंपनियों को उनके सेवाओं के लिए कुछ निर्धारित शुल्क देती है. बसों की देख-रेख, चार्जिंग की ज़िम्मेदारी, साफ-सफाई, चालक और कंडक्टर जैसी चीजों का खयाल कंपनियों को करना होता है. सरकार इन कंपनियों को प्रति किलोमीटर के आधार पर एक नियत रकम का भुगतान करती है.
प्रोमित मुखर्जी, ओबजर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ओआरएफ) में एक शोधकर्ता हैं. उन्होंने सीएनजी बसों से इलेक्ट्रिक बसों की यात्रा में आने वाले चुनौतियों के बारे में मोंगाबे-हिन्दी को बताया. वो कहते हैं, “हम अगर दिल्ली में इलेक्ट्रिक बसों को बढ़ावा देना चाहते हैं तो हमें इसके लिए प्रचुर मात्रा में कुशल लोगों की जरूरत होगी. दूसरी बात यह है कि सीएनजी या पेट्रोल बसों की तुलना में इलेक्ट्रिक बसों में बस कोई और कंपनी बनाती है पर उसमे प्रयोग होने वाली बैटरी कोई और कंपन बनाती है. कई बार दोनों में तालमेल की कमी होती है जिसपर ध्यान देने की जरूरत है,” प्रोमित ने यह भी कहा कि दिल्ली में ज़्यादातर बसें निजी है अतः सरकार को निजी क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है ताकि ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक बसें शहर में चल सकें.
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर : नई दिल्ली में इंद्रप्रस्थ डीटीसी बस डिपो के पास एक व्यस्त सड़क. तस्वीर - मनीष कुमार / मोंगाबे